ममता व करुणा से ओतप्रोत था हीरा बा का जीवन!

ममता व करुणा से ओतप्रोत था हीरा बा का जीवन!

हमें भी मिला था उनका अपार वात्सल्य

Ganpat-Bhansali

लगता है आसमाँ में सितारों की कमी है,  खुदा जमी से सितारे बुला रहा हैं

जीवन यात्रा का एक शतक जिंदादिली व दरियादिली के साथ पूर्ण कर हीरा बा ने आज सदा-सदा के लिए चिर स्थायी विदाई ले ली। एक राजस्थानी कवि की मायड़ भाषा मे रची ये पंक्तियां "जनणी जणे तो एड़ा जणे, के दाता के सूर, नी तो रिजे बाँझड़ी मत ना गवाज़े नूर', माँ हीरा बा के स्वर्गवास पर स्मृत हो गई। एक ऐसी सादगी पसंद महिला जिसने जीवन जीने का सही अर्थ जान लिया था। काम, मोह, लोभ, भय से सदा परे हीरा बा को कभी इस बात का गुमान नहीं था कि वो दुनिया के मानचित्र में अपना विशिष्ट स्थान रखने वाले व दुनिया की पांचवी बड़ी इकोनॉमी ताकत के रूप में उभर रहे हिंदुस्तान के यशश्वी व गौरवशाली प्रधानमंत्री की माँ हैं। बेटा भारत का प्रधानमंत्री और वो एक मध्यमवर्गीय परिवार की महिला की भांति सादगीपूर्ण पहनावे में एक सिम्पल सी बेडशीट युक्त साधारण से बेड पर बैठी आगुन्तकों से ऐसे मिलती। मानो गांवों-कस्बों में एक सीधी-सादी महिला मेलजोल रखती हो। चूंकि मैंने व मेरे साथी राजेश माहेश्वरी, पंकज बूब व मनीष कापड़िया वर्ष 2014 में गांधीनगर स्थित उनके पुत्र पंकजभाई कापड़िया के निवास पर माँ हीरा बा से बिना किसी एपोइंटमेंट व बिना किसी की सिफारिश से मुलाकात की थी व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के व्यक्तित्व व कर्तत्व पर हमारे  'जीआरपी मीडिया पब्लिकेशन्स' द्वारा प्रकाशित व हम तीनों सम्पादकों G गणपत भंसाली R राजेश माहेश्वरी व P पंकज माहेश्वरी द्वारा सयुंक्त रूप से संपादित पुस्तक 'सी एम टू पी एम नरेंद्र मोदी' का री-विमोचन आदरणीया हीरा बा के कर कमलों द्वारा ही कराया गया था। 

जैसे ही हीरा बा के निधन के समाचार न्यूज चैनलों पर दिखे तो 8 वर्ष पुराने वे दृश्य स्मृति पटल पर ताजा हो गए जहां हमने हीरा बा के चरणों मे लगभग 30 मिनिट से ज्यादा समय का सदुपयोग किया था व हीरा बा से हमारे साथी मनीष कापड़िया से ठेठ गुजराती में संवाद किया था व उन्होंने हमें अच्छा रिस्पॉन्स दिया था।  वो परिदृश्य भी मेरी स्मृति में संजोए हुए हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सबसे छोटे भाई पंकजजी मोदी की धर्मपत्नी सीताबेन स्वंय एक ट्रे में चार स्टील की गिलासों में शीतल जल की मनुहार करने आई थी व उन्होंने हमें चाय की भी मनुहार की थी। हम एक एक कर उस झूले पर भी झूले थे जिस पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व उनकी मातृश्री हीरा बा भी यदा-कदा झूलते नजर आते थे। हमें कहीं भी ऐसा अहसास तक नहीं हुआ कि ये घर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मातृश्री का निवास स्थल है व इस घर में मोदी जी अमूमन आते रहते थे। 

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जब हम हीरा बा के समीप उनके चरणों मे बैठे थे तो हमें अत्यंत ही गौरव की अनुभूति हो रही थी। हालांकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के व्यक्तित्व व कर्तत्व पर हमारे GRP मीडिया समूह ने व हमारे सयुंक्त सम्पादन में अब तक तीन पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है व तीनों का विमोचन भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, उनकी मातृश्री हीरा बा तथा पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी एवं गुजरात की पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती आनंदीबेन पटेल आदि अनेक नेताओं के द्वारा हुआ है। पूर्व उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू, पूर्व विदेश मंत्री स्व. सुषमा स्वराज, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, अर्जुन मेघवाल, गजेंद्र सिंह शेखावत, पूर्व केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी,  थांवर चन्द गहलोत, रविशंकर प्रसाद, गिरिराज सिंह आदि दर्जनों मंत्रियों की इन पुस्तकों की प्रतियां प्रदान करने का व सभी से रूबरू मिलने का अवसर हमें मिला था। 

हालांकि पीएम नरेन्द्र मोदी से मुझे 5 बार रूबरू होने का अवसर मिला है। 3 बार बतौर गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में व 2 बार बतौर प्रधानमंत्री के रूप में मुझे सानिध्य मिला। उसमें एक बार तो सूरत में 70 हजार लोगों के बीच नरेन्द्र मोदी की उपस्थिति में मंच संचालन का दायित्व निभाने का सुअवसर मुझे मिल पाया। 

बहरहाल विषय करुणा की प्रतिमूर्ति हीरा बा के व्यक्तित्व व उनसे जुड़ी स्मृतियों का है तो यह हर किसी के लिए प्रेरक व अनुकरणीय उदाहरण है कि हीरा बा द्वारा प्रदत्त संस्कारों की सम्पदा सिर्फ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही संजोए हुए नहीं है बल्कि उनके सभी भाई व बहिन तथा छोटे से बड़े तमाम परिवार जनों में समाए हुए हैं व उन सभी ने आत्मसात किया है। तभी तो प्रधानमंत्री  नरेन्द्र मोदी के भाई, भतीज आदि सादगी व सरलतापूर्वक जीवन जी रहे है। हीरा बा की सभी सन्तानो का एक भी उदाहरण ऐसा मौजूद नहीं है कि उन्होंने कभी भी अपने भाई व बड़े पापा के प्रधानमंत्री होने का रोब झाड़ा हो या कोई वेजा फायदा उठाया हो। 

स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी मीडिया के समक्ष यह कह चुके हैं कि इसका श्रेय मेरे भाइयों व भतीजों को जाना चाहिए जो सादगीपूर्ण जीवन जीते हैं व उन्होंने मुझ पर कभी भी किसी बात का दबाव नहीं बनाया। यह वाकई विरला उदाहरण ही है अन्यथा आज सत्ता की चाशनी का स्वाद चखने हेतु हर कोई लालायित नज़र आता है व पूरे कुनबे को छोटे से छोटा नेता विधायक, सांसद, मंत्री बना देखना चाहता है व नेताओं के भाई भतीज के साथ साथ उनके दूर-दूर तक के रिश्तेदार लाल बत्ती की गाड़ियों में घूमते-फिरते नजर आते हैं व रोब झाड़ते दिखाई देते हैं। 

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उल्लेखनीय है कि जब हमने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के व्यक्तित्व व कर्तव्य पर वर्ष 2012, 2014 व 2019 के वर्षों में तीन अलग-अलग पुस्तकों का प्रकाशन किया था तब उनके परिचितों से लेकर गूगल तक उनके परिवार, मित्रों के बारे में सम्पूर्ण जानकारी खंगाली थी। यह सर्वविदित है कि नरेन्द्र मोदी के पिता का नाम दामोदर दास मोदी था। दामोदर दास मोदी के पांच भाई थे - नरसिंह दास, नरोत्तम दास, जगजीवन दास, कांतिलाल व जयंतीलाल। सूत्रों के अनुसार कांतिलाल व जयंतीलाल शिक्षक के रुप मे सेवारत होकर सेवा निवृत्त हुए। यह भी पता चला कि जयंती लाल की बहन लीनाबेन के पति विसनगर में बस कंडक्टर के रूप में अपनी आजीविका अर्जित करते थे। यह सर्वविदित है कि नरेंद्र मोदी के भाइयों में सबसे बड़े भाई है सोमाभाई जो कि स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत थे और सेवा निवृत्त हो गए हैं व वर्तमान में वे समाजसेवा करते हुए अहमदाबाद में ओल्डएज होम (वृद्धाश्रम) चलाते हैं। पुणे में एक स्वयं सेवी संगठन में जब सोमाभाई बतौर अतिथि उपस्थित थे तो वहां मंच संचालक ने यह बता दिया कि वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सगे भाई हैं, तो सोमाभाई ने सफाई दी कि प्रधानमंत्री व मेरे बीच एक पर्दा है जिसे सिर्फ में ही देख सकता हूं पर आप नहीं देख सकते। उन्होंने कहा कि मैं नरेंद्र मोदी का भाई अवश्य हूं लेकिन प्रधानमंत्री का नहीं। प्रधानमंत्री के लिए तो में 123 देशवासियों में से एक हूं, जो सभी उसके भाई बहिन हैं। 

दूसरे भाई के रूप में प्रल्हादभाई हैं। वे नरेन्द्र मोदी से महज दो साल छोटे हैं। वे अपनी आजीविका कमाने हेतु अहमदाबाद में एक किराने की दुकान चलाते हैं व उनके टायर का शोरूम होने की भी जानकारी मिली है। यह भी बताया जाता है कि लम्बे समय से उनका अपने भाई नरेंद्र मोदी से सम्पर्क नहीं हुआ है। न्यूज चैनल पर प्रसारित एक इन्टरव्यू में उन्होंने बताया भी था कि पिछले 13 वर्षों में उनकी व नरेंद्र मोदी की बहुत कम ही मुलाकात व बातचीत हो पाई है । 

मोदी जी के तीसरे भाई का नाम अमृतभाई है व उनकी पत्नी का नाम चंद्रकांता बेन है। अमृत भाई एक फिटर के रूप में रिटायर हुए। यह जानकर आश्चर्य होगा कि प्रधानमंत्री के सगे भाई अमृतभाई की वर्ष 2005 में तनख्वाह मात्र 10 हजार रु प्रति माह थी। अब वे अपने 47 वर्षीय सपुत्र संजयभाई व उनकी पत्नी व 2 बच्चों के साथ अहमदाबाद के घाटलोदिया विस्तार में 4 कमरों के मकान में रिटायरमेंट की जिंदगी गुजार रहे हैं। ताज्जुब यह भी है कि वर्ष 2009 में खरीदी गई कार उनके घर के बाहर कवर से ढकी रहती है, कारण ज्यादातर वे स्कूटर ही काम मे लेते हैं व उनके परिवार के किसी भी सदस्य ने अभी तक हवाई जहाज की यात्रा तक नहीं की। ताज्जुब यह भी है वे अपने भाई नरेन्द्र मोदी से मुख्यमंत्री व प्रधानमंत्री बनने के बाद सिर्फ 2 बार ही उनसे मिल पाए हैं। पहली बार 2003 में मुख्यमंत्री की शपथ ली तब व दूसरी बार 2014 में पीएम अहमदाबाद में घर पर मिले थे। 

मोदी जी के सबसे छोटे भाई पंकजभाई मोदी हैं जो कि माँ हीरा बा के साथ आज भोर तक थे। पंकजभाई सूचना विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं। उनकी खुशनसीबी है कि माँ हीरा बा के साथ रहने के कारण बड़े भाई व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से भेंट हो जाती थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की एक बहिन है जिनका नाम वासंतीबेन है। उनके पति हसमुखभाई एलआईसी में सेवारत थे।  5 भाइयों की बहिन वासंती एक हाउस वाइफ हैं। परिवार जनों की सादगी व प्रधान मंत्री के भाई, भतीज होते हुए एक साधारण नागरिक जैसे रहना विरले उदाहरण हैं। 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तो युवावस्था से ही 'रमता जोगी' की तरह घर छोड़े हुए राष्ट्र सेवा में समर्पित थे। वे यश कीर्ति व आडम्बर से सदा दूर रहे। आज जब मातृश्री हीरा बा के निधन पश्चात उनकी अर्थी को कंधा देकर श्मशान घाट गए व मुखाग्नि दी तो उस क्रिया के सम्पन्न होते ही वे 'न थकूंगा व न रुकूँगा' की तर्ज पर कर्तव्य पथ पर निकल पड़े और पश्चिम बंगाल की विभिन्न परियोजनाओं का उद्घाटन किया व वन्दे भारत आदि ट्रेनों को वर्च्यूल रूप से हरी झंडी बताई। वे 'शोक' से 'अशोक' की स्थिति में आ गए। 

प्रत्येक व्यक्ति को अपनी जन्मदायिनी व ममतामयी माँ के प्रति गहरा लगाव रहता है लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए वे किसी मोटीवेटर से कम नहीं थी। उन्होंने आज नम आंखों से विदाई दी और माँ से जुड़ी अनुभूतियां प्रकट की और बताया कि माँ में मैंने हमेशा त्रिमूर्ति की अनुभूति की है। उन्होंने अपनी माँ द्वारा दी गई सीख को दोहराया कि काम करो हमेशा बुद्धि से व जीवन जियो शुद्धि से। उन्होंने आज यह भी बताया कि 100 वें जन्म दिवस पर अपनी माँ द्वारा दी गई सीख मुझे हमेशा याद रहती है। 

हीरा बा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर अपार स्नेह उंडेलती थी। जब-जब भी प्रधानमंत्री गांधीनगर आते व अपनी माँ से मिलते तो जीवन के दसवें दशक में भी उनकी आंखों में चमक पैदा हो जाती थी। वे उनसे आत्मीय भाव से बतियाती, बेटे नरेंद्र मोदी का हाथ अपने हाथ में लेती, कभी  मिठाई खिला कर उनका मुंह मीठा कर छोटे से रुमाल से मुंह साफ करती। तो कभी अपनी पोटली से रुपये निकाल कर भेंट स्वरूप देती, कभी गीता पकड़ाती। कभी द्वार पर आकर बेटे को विदा करती। 

हीरा बा ताउम्र जागरूकता पूर्वक जीवन जीती रही। अपने घर में परिवारजनों के भरण पोषण हेतु दूसरों के घरों में बर्तन तक मांजे। वे गत 5 दिसम्बर को 99 वर्ष की उम्र में भी लोकतंत्र के पर्व  पर अपना वोट देने मतदान सेंटर तक पहुंच गई। जब जब भी वोट हुए तो हीरा बा कभी ऑटो रिक्शा से तो क़भी कार से मतदान कर के लौटी। उनका इंटरव्यू लेने वाले अहमदाबाद के पत्रकार बताते हैं कि 2014 से पहले वे अमूमन कहती दिखती कि उनका बेटा वडाप्रधान अवश्य बनेगा। चूंकि उन्होंने भरपूर जीवन जिया व जीवन यात्रा के शतक की और प्रवेश कर चुकी थी, लेकिन उनका सान्निध्य जितना ज्यादा मिलता वो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए अनंत ऊर्जा का हेतु बनता। लेकिन परम् पिता परमेश्वर की मर्जी ये आगे हम सभी लाचार है। प्रभु दिवंगत आत्मा को सदगति प्रदान करें। ऐसी आदर्श व ममतामयी माँ हीरा बा के देहावसान पर ह्र्दयपूर्वक श्रद्धासुमन।

उनके निधन पर किसी शायर की ये पंक्तियां मुझे याद आती है...

एक सूरज था कि तारों के घराने से उठा।

आंख हैरान है क्या शख्स जमाने से उठा।।

 

एक और शेर...

बिछुड़ा कुछ इस अदा से कि रुत ही बदल गई।

एक शख्स सारे शहर को विरान कर गया।


शांति, ॐ शांति, ॐ   शांति, ॐ शांति

ह्रदय के उद्गार - गणपत भंसाली द्वारा (सूरत-जसोल)
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स्त्रोत : गूगल आदि माध्यम