सूरत : चीन की चालाकी और अमेरिका-यूरोप की आर्थिक मंदी ने लेबग्रोन हीरों के कारोबार को अस्थिर कर दिया है!

सूरत : चीन की चालाकी और अमेरिका-यूरोप की आर्थिक मंदी ने लेबग्रोन हीरों के कारोबार को अस्थिर कर दिया है!

पिछले पांच सालों से सूरत के हीरा कारोबारियों ने लेबग्रोन डायमंड (प्रयोगशाला में बनने वाले हीरे) के कारोबार में खूब पैसा कमाया है। लेकिन रशिया-यूक्रेन जंग, अमेरिका-यूरोप में आर्थिक मंदी और चीनी चालबाजी ने लेबग्रोन डायमंड की अब तक चली आ रही सक्सेस स्टोरी को मानो ब्रेक सी लगा दी है। चीन के उत्पादकों ने लेबग्रोन रफ के भाव तोड़ने का चक्रव्यूह रचा हुआ है और इसी कारण सूरत और मुंबई में लेबग्रोन रफ के भावों में क्वालिटी वाइज कमी आई है और बाजार में अस्थिरता के हालात हैं।

वैसे पिछले पांच वर्षों में लेबग्रोन डायमंड के कारोबार में 600% की ग्रोथ देखी गई। वर्ष 2017-18 में जहां 1404 करोड़ रूपयों के लेबग्रोन डायमंड का निर्यात हुआ था, वहीं 2021-22 में ये आंकड़ा 8503 करोड़ पर पहुंच गया था। कारोबार में आये इस उछाल का ही नतीजा था कि सूरत में 2500 आधुनिक मशीनों से लेबग्रोन डायमंड का उत्पादन तेजी से बढ़ रहा है। सूरत में 10 बड़ी डायमंड कंपनियां और एमएसएमई श्रेणी की 300 इकाइयां औसत साल भर में 2 लाख कैरेट लेबग्रोन डायमंड का उत्पादन कर रही हैं। 

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार लेबग्रोन डायमंड के बढ़ते प्रोडक्शन के बीच दुनिया भर में इसकी कम होती डिमांड ने कारोबार का संतुलन विगत कुछ समय में बिगाड़ दिया है। जानकार कहते हैं कि जब असली हीरों की ही डिमांग नहीं है, तो लेबग्रोन डायमंड की मांग कैसे बनेगी। असली हीरों की आयात 25 प्रतिशत और लेबग्रोन डायमंड की आयात में 45 प्रतिशत की कमी आई है। ऐसे में भारत में लेबग्रोन डायमंड का स्टॉक बढ़ता जा रहा है और कारोबारियों को नुकसानी के हालात बन गये हैं। 

कारोबारियों की खस्ता हालत का पता इसी तथ्य से चलता है कि 60 हजार रूपये प्रति कैरेट की कीमत वाले लेबग्रोन डायमंड को कारखानेदार 3 से 5 हजार रूपये की दर पर बेचने को मजबूर देखे गये हैं। कारोबारियों को ऐसा अपनी वर्किंग कैपिटल साइकल को कायम रखने के लिये करना पड़ा रहा है। वैसे जानकार मानते हैं कि वर्तमान परिस्थिति में घबराने की जरूरत नहीं है। सूरत में लेबग्रोन रफ का ओवर प्रोडक्शन था और रफ के भाव भी अधिक थे। अमेरिका और युरोप में स्थिति सुधरने पर लेबग्रोन डायमंड का बाजार स्थित हो जायेगा। अभी घटी दरों पर जो निवेशक या जौहरी खरीदारी कर रहे हैं उन्हें लंबी अवधि में लाभ होगा। जिस प्रकार कोरोना के दो सालों के बाद अमेरिका और युरोप में डिमांड निकली थी, वैसे ही इस बार भी कीमतें बढेंगी। 

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