अहमदाबाद : लुभावने विज्ञापनों से रहें सावधान, बुजुर्ग दंपति ने रुपये खोया, 4 साल बाद भी नहीं मिले रुपये!

अहमदाबाद :  लुभावने विज्ञापनों से रहें सावधान, बुजुर्ग दंपति ने रुपये खोया, 4 साल बाद भी नहीं मिले रुपये!

अगर कोई आपको जमीन में निवेश का लुभावने विज्ञापन देता है तो सावधान हो जाइए

अगर कोई आपको जमीन में निवेश का लुभावने विज्ञापन देता है तो सावधान हो जाइए। क्योंकि उसी लुभावने विज्ञापन में आपको पैसे का नुकसान हो सकता है। इसी तरह अहमदाबाद के श्यामल में रहने वाले एक बुजुर्ग दंपति ने 2014 में नल सरोवर के पास निवेश किया था। जिसमें उनका पैसा डूब गया। हालांकि चार साल तक पूरे मामले को कंज्यूमर प्रोटेक्शन एंड एक्शन कमेटी के पास ले जाने के बाद आखिरकार उन्हें इंसाफ मिल ही गया। वहीं विपक्षी को परिवादी को देय राशि का भुगतान करने का आदेश दिया गया है। भावनाबेन खंडेरिया और उनके पति मधुसूदन खंडेरिया वरिष्ठ नागरिक हैं और अहमदाबाद के श्यामल इलाके में रहते हैं। भावनाबेन एक सेवानिवृत्त बैंक कर्मचारी हैं।

भावनाबेन सेवानिवृत्त हुईं, तो वे भविष्य को लेकर चिंतित थी

2013 में जब भावनाबेन सेवानिवृत्त हुईं, तो वे भविष्य को लेकर चिंतित थी और निवेश करने को तैयार थी। उन्होंने 2014 में एक विज्ञापन से नल सरोवर के पास झांप गांव में इंडिया ग्रीन रियलिटी की ग्रीनलैंड योजना में निवेश किया था। जिसमें योजना थी कि अगर आप प्लॉट खरीदते हैं और तीन साल बाद प्लॉट नहीं रखते हैं तो बिल्डर दोगुना पैसा लौटाएगा। यदि कोई योजना है तो विभिन्न सुविधाओं के साथ आकर्षक पुरस्कार भी होंगे। ऐसे ब्रोशर प्रकाशित किए गए थे। जिसे देख वृद्ध दंपत्ति ने निवेश किया था।

धन प्राप्ति की जगी आस


हालांकि, जब 2018 में पूरा मामला सीआईडी ​​क्राइम में गया और जालसाजों को गिरफ्तार किया गया तब दंपति को पता चला। जिसके बाद उनके पैरों तले से जमीन खिसक गई। क्योंकि उसने भविष्य की चिंता में निवेश किया था। हालांकि उन्हें दुगना पैसा मिलना तो दूर, पूंजी भी फंस गई थी। जिसके बाद बिल्डर के ऑफिस से अनेक धक्का खाने पर सिर्फ वादे ही मिलते रहे। जिसके बाद बुजुर्ग दंपत्ति ने 2019 में उपभोक्ता संरक्षण एवं कार्य समिति में शिकायत की थी। आज 2022 यानी 4 साल हो गए हैं। तब उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने शिकायतकर्ता के पक्ष में फैसला सुनाते हुए शिकायतकर्ता बुजुर्ग दंपती को पैसे मिलने की उम्मीद जगाई।

संचालकों ने 2009 में योजना शुरू की


कंज्यूमर प्रोटेक्शन एंड कार्य समिति के अध्यक्ष मुकेश पारिख की मानें तो ग्रीनलैंड स्कीम में कई लोगों ने निवेश किया था। जिसमें 2018 में जब सीआईडी ​​क्राइम केस दर्ज किया गया तो पता चला कि योजना के संचालकों ने 2009 में योजना शुरू की थी। जिसमें कुल 783 लोगों से 42 करोड़ से अधिक लिए गए और प्रबंधकों ने योजना विकसित नहीं कर धोखाधड़ी की। उस मामले में उस समय के संचालकों विनोद ठाकर, वीरेंद्र ठाकर, अमित सामंता, असलम अफरीदी, अक्षय शाह और परासर पांड्या के खिलाफ मामला दर्ज 
कर कार्रवाई की गई थी। हालांकि, जब शिकायतकर्ता को पैसा नहीं मिला तो पूरा मामला उपभोक्ता संरक्षण एवं कार्य समिति तक पहुंचा और वहां से मामला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग तक पहुंचा।

आयोग ने पैसा देने का आदेश दिया


आयोग ने तब नोट किया कि संचालकों ने जनता से पैसे वसूलने के इरादे से योजना के लालची विज्ञापन बनाकर लोगों को गुमराह किया था। इसलिए आयोग ने बुजुर्ग दंपति के मामले में उनकी सहमति के अनुसार 22.30 लाख का भुगतान करने का आदेश दिया। साथ ही 9 प्रतिशत ब्याज सहित राशि तथा 25 हजार की अन्य राशि मानसिक प्रताड़ना, वेदना एवं आघात तथा 15 हजार शिकायत व्यय के रूप में 30 दिन के भीतर भुगतान करने का आदेश दिया है।  उपभोक्ता संरक्षण और कार्य समिति के अध्यक्ष ने कहा है कि कई अन्य लोग इस योजना के शिकार हुए हैं। फैसले की तारीख के मुताबिक पैसा नहीं मिला तो दंपति ने आगे केस लड़ने की भी इच्छा जताई है। गौरतलब है कि घर में भावना बेन और उनके पति के अलावा कोई नहीं है। लिहाजा भावनाबेन की पेंशन से उनकी रोजी-रोटी चलती है।

पेंशन के बिना बुजुर्ग दंपति की हालत और भी खराब होती

पेंशन के बिना बुजुर्ग दंपति की हालत और भी खराब होती। क्योंकि कोरोना के समय उन्हें उनका पैसा नहीं मिला तो उनका गुजारा करना मुश्किल हो गया। दंपति फिर केवल एक ही उम्मीद के साथ बैठे थे कि उनका पैसा जल्द ही वापस आ जाएगा ताकि वे अपने जीवन के अंतिम क्षणों को बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के खुशी-खुशी व्यतीत कर सकें। साथ ही सुझाव दिया कि दूसरों को भी ऐसे लोगों से सावधान रहना चाहिए।
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