अहमदाबाद : पंचमहाल के मुस्लिम व्यापारी द्वारा बनाए गये चोपड़ों का हिंदू व्यापारियों में है डिमांड, यह है खासियत

अहमदाबाद : पंचमहाल के मुस्लिम व्यापारी द्वारा बनाए गये चोपड़ों का हिंदू व्यापारियों में है डिमांड, यह है खासियत

पिछले 6 पीढ़ियों या करीब सौ साल से हिंदू भाइयों के लिए कारोबार से जुड़ी तरह-तरह की चोपड़ें तैयार कर रही है

गुजरात राज्य के पंचमहल जिले में स्थित गोधरा शहर और इसका इतिहास पूरे देश के लिए चर्चा का विषय है। गोधरा को लेकर लोगों में कई भ्रांतियां हैं। जब लोग गोधरा का नाम सुनते हैं तो उन्हें गोधरा कांड याद आता है, सांप्रदायिक विवाद और सांप्रदायिक दंगे याद आते हैं, लेकिन गोधरा में वास्तविक स्थिति कुछ अलग है।  गोधरा में हर धर्म, जाति, पंथ के लोग रहते हैं। इतना ही नहीं, परंतु शांति, अहिंसा और भाईचारे से रहते हैं। उसका एक उत्तम उदाहरण गोधरा के मुस्लिम व्य़ापारी द्वारा प्रदान किया गया है। गोधरा के शराब बाजार इलाके में कागदी नाम की एक दुकान पिछले 6 पीढ़ियों या करीब सौ साल से हिंदू भाइयों के लिए कारोबार से जुड़ी तरह-तरह की चोपड़ें तैयार कर रही है।

चोपड़ा  संबंधित आइटम दुकान में उपलब्ध हैं


गोधरा शहर के शराब बाजार इलाके में कागदी नाम से मशहूर स्टेशनरी की एक पुरानी और जानी-मानी दुकान है। कागदी वर्तमान में छठी पीढ़ी द्वारा संचालित व्यवसाय है। अब्दुल कादर नाम के एक मुस्लिम व्यापारी ने पुराने जमाने की मशीनों और हाथ का इस्तेमाल कर हिंदू भाइयों के लिए उनके व्यापार से संबंधित अलग-अलग चोपड़े जैसे कि देसी नामा का चोपड़ा, विभिन्न प्रकार के पत्रक, फर्म बुक, चमड़े का चोपड़े, विभिन्न प्रकार के छोटे और बड़े नोट,  नोट्स, वह अपनी दुकान में हर तरह की चोपड़ों से संबंधित सामान जैसे अलग-अलग तरह की रोजमर्रा की, छोटी और बड़ी अडदिया, वसूली की अलग-अलग तरह की चोपड़े, सौदा चोपड़ा आदि संबंधित आइटम अपने दुकान में बनाते हैं।

पुराने जमाने के अनुसार चोपड़ों के बनाने का कार्य प्रारंभ किया जाता है


हिन्दू भाइयों का महान पर्व है दीपावली, दीपावली और धनतेरस के दिन हिन्दू भाई नव वर्ष की शुरुआत चोपड़ों की पूजा से नए व्यापार की शुरुआत करते हैं, जिनके लिए नव वर्ष में चोपड़ों की पूजा का बड़ा धार्मिक महत्व है। जिसे ध्यान में रखते हुए अब्दुल कादर द्वारा दीवाली से तकरीबन तीन महीना पहले से ही  अपने हाथ से डोरा तथा मशीनों का उपयोग कर पुराने जमाने के अनुसार चोपड़ों के बनाने का कार्य प्रारंभ किया जाता है। अब्दुल कादर द्वारा दिवाली त्योहार के अवसर पर लगभग 1500 से 2000 चोपड़ें बेची जाती हैं, उनकी दुकान में चार आदमी काम करते , वे चोपड़े बनाकर अपनी रोजी रोटी भी कमाते हैं। 
चोपड़े दिखाता कर्मचारी
 

हस्तशिल्प की चोपड़ें पंचमहाल और महिसागर के कई हिंदू व्यापारियों द्वारा ले जाया जाता है


अब्दुल कादर चोपड़ों का कच्चा माल अहमदाबाद शहर से यानि कागज के धागे और चमड़े या चोपड़ा कवर के लिए दीवाली से चार-पांच महीने पहले और फिर आर्डर के अनुसार मंगा लेते हैं। इसके बाद आर्डर के अनुसार पहले कागज को अलग-अलग आकार की चोपड़ों की साइज में कटिंग कर उसका बाइंडिंग कर या पक्का धागे से सिलाई कर चोपड़े तैयार कर बेचते हैं। 
कागदी पेढ़ी के मालिक अब्दुल कादर से बात करते हुए उन्होंने कहा, "मैं पिछले 50 सालों से हिंदू व्यापारियों के लिए उनके नव वर्ष दीवाली से लेकर आगामी दीवाली तक के तारीख की चोपड़ें बना रहा हूं। मैं दीवाली से तीन से चार महीने पहले चोपड़ें बनाना शुरू करता हूं।  हस्तशिल्प की चोपड़ें पंचमहाल और महिसागर के कई हिंदू व्यापारियों द्वारा ले जाया जाता है। इस व्यापार में यह मेरी छठी पीढ़ी है। मेरे दादाजी भी इस व्यवसाय में थे और मेरे बच्चे भी मेरे साथ इस व्यवसाय में हैं।
 
चोपड़ें गुणवत्ता के आधार पर 150 से 1200 तक की कीमतों में उपलब्ध

अब्दुल कादर द्वारा बेची जाने वाली चोपड़ें गुणवत्ता के आधार पर 150 से 1200 तक की कीमतों में उपलब्ध हैं। इसके अलावा अब्दुल कादर द्वारा आर्डर करने पर चोपड़ें भी बनाई जाती हैं। हालांकि अब्दुल कादर एक मुस्लिम होने के बावजूद वह हिन्दू भाइयों के लिए उनके पवित्र त्यौहार दिवाली निमित्त चोपड़ा बनाते हैं और हिंदू व्यापारी भाईयों अपने धार्मिक त्यौहार दीवाली के लिए अपना हिसाब (लेखा-जोखा) लिखने तथा चोपड़ा पूजन के लिए चोपड़ा मुस्लिम व्य़ापारी भाई के पास से खरीदते है तो गोधरा शहर हिन्दू-मुस्लिम समाज की एकता का उत्तम उदाहरण पेश करता है। 
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