अहमदाबाद : एक ऐसा गांव जहां किसी भी घर पर छत नहीं, पक्का छत बनाने से डरते हैं लोग, जानें वजह

अहमदाबाद : एक ऐसा गांव जहां किसी भी घर पर छत नहीं,  पक्का छत बनाने से डरते हैं लोग, जानें वजह

सनोसरा गांव के लोग आज भी अपने घर पर छत नहीं बनाते बल्कि पाइप वाले घर में रहते हैं

 कच्छ में नलिया हाउस बनाने की विधि पहले से ही चल रही है। लेकिन भूकंप के बाद जब कच्छ विकास की तेज रफ्तार में शामिल हुआ तो लोगों ने दो मंजिला ईंटों के मकान बनाने शुरू कर दिए। लेकिन आज भी कच्छ में एक ऐसा गांव है जहां लोग घर की छत नहीं बनाते। सदियों पुरानी मान्यता के अनुसार सनोसरा गांव के लोग आज भी अपने घर पर छत नहीं बनाते बल्कि पाइप वाले घर में रहते हैं।

चारों तरफ पहाड़ियों के बीच बसे सनोसरा गांव में करीब 500 घर हैं


चारों तरफ पहाड़ियों के बीच बसे सनोसरा गांव में करीब 500 घर हैं। इस गांव में, जिसमें ज्यादातर मालधारी समुदाय के लोग रहते हैं, जब मालधारी पहली बार बसने आए, तो मोमाई माताजी के बगल के मंदिर में माताजी की पूजा शुरू कर दी। ग्रामीणों के अनुसार माताजी के प्रण लिया था कि गांव का कोई भी परिवार अपने घर की छत पर पक्का नही बनाएंगे। जबकि कोई कहता है कि गांव वालों ने खुद से छत न बनाने का प्रण लिया क्योंकि माताजी में आस्था के कारण लोग छत वाले माताजी के मंदिर से अपने घरों को खास नहीं बनाना चाहते थे। ऐसे ही कई कारणों में से तथ्य यह है कि जब से गांव बसा था तब से लेकर अब तक यहां किसी ने अपने घर पर छत नहीं बनाई है। इस गांव में ही नहीं बल्कि आसपास के गांवों में रहने वाले कई लोग इन मान्यताओं के अनुसार अपने घरों पर पक्की छत नहीं बनाते हैं।
व्यवसायिक रोजगार के लिए जिले के अन्य कस्बों और गांवों में प्रवास करने के बाद भी, मूल सनोसरा गांव के कई मूल निवासी अभी भी इस परंपरा को बनाए रखते हैं और एक पतरा वाले घर में रहते हैं। ग्रामीणों के अनुसार यहां के कई अन्य गांवों में रहने वाले परिवारों ने भवन निर्माण की नई आकर्षक पद्धति में भी बिना पक्की छत के मकान इस तरह बनाया है कि दूर से देखने वालों को यह नहीं लगता कि मकान है। नलिया या पतरे से आज भी घर बनाते हैं। 

कई लोगों ने इस प्रथा के खिलाफ जाकर पक्का घर बनाया....लेकिन


माताजी के प्रति आस्था के बीच इस गांव में यह भी प्रचलित मान्यता है कि अगर कोई इस बचन के खिलाफ जाकर कंक्रीट की छत बना ले तो वह अंधा हो जाएगा। गांव के बड़ों से मिली कहानियों के अनुसार कई लोगों ने इस प्रथा के खिलाफ जाकर पक्का घर बनाया, लेकिन फिर उनकी आंखों की रोशनी चली गई। तो उनमें से बहुतों को अपनी गलती का एहसास हुआ और छत को गिराने पर पुनः आंख की रोशनी मिली।  
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