सालों से चली आ रही यह परंपरा आज भी मंदिर में ही कायम है
अहमदाबाद शहर के जगन्नाथ मंदिर में भक्तों को काली रोटी-उड़द दाल (सफेद दाल) की प्रसाद दी जाती है। सालों से चली आ रही यह परंपरा आज भी मंदिर में ही कायम है। रथयात्रा भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा से जुड़ा एक हिंदू त्योहार है। अहमदाबाद के जगन्नाथ मंदिर का 300 साल पुराना इतिहास है। ब्रिटिश शासन के दौरान भी भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकल थी। महंत नरसिंहदासजी ने ई.स. १८७८ में पहली बार आषाढ़ सुदी दूज के दिन शुरू की थी। गुजराती कैलेंडर के अनुसार, पूरे भारत में आषाढ़ सूद दूज के दिन रथयात्रा शुरू की जाती है। भारत में मुख्य रथयात्रा जगन्नाथ पुरी की रथयात्रा है। इसके अलावा अनेक शहरों में भी इसी दिन रथयात्रा का आयोजन किया जाता है।
गुजरात के अहमदाबाद में जगन्नाथ मंदिर से निकलने वाली रथ यात्रा गुजरात की सबसे बड़ी रथ यात्रा है और इस साल भगवान जगन्नाथ की 145वीं रथ यात्रा पारंपरिक रूप से आषाढ़ दूज के दिन निकलेगी। भगवान को भोग लगाने के लिए बनाये जा रहे प्रसाद की फाईल तस्वीर
भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा के साथ-साथ काली रोटी- उड़द की दाल (सफेद दाल)का भी विशेष महत्व है। महंत नरसिंहदासजी सेवा भावी थे और कोई भूखा न रहे इसका भी ध्यान रखते थे। अहमदाबाद शहर के जगन्नाथ मंदिर के आस पास वर्षों पहले मीलें हुआ करती थी और आस पास के क्षेत्रों में श्रमिक एवं गरीब लोग रहते थे। महंत नरसिम्हादासजी महाराज गरीबों को खाना खिलाते थे। भोजन में मालपुवा और दूधपाक दिया जाता था। यह परंपरा तब से आज तक जारी है। इसे काली रोटी ढोली दाल (सफेद दाल)कहा जाता है। मंदिर में आने वाले सभी भक्तों को मालपुवा, बंदी और गाठिया का प्रसाद दिया जाता है। जबिक जगन्नाथ मंदिर भंडारा में भक्तों को मालपुवा और दूधपाक दिया जाता है।
अहमदाबाद जगन्नाथ मंदिर के गदीपतियों का एक ही लक्ष्य रहा है कि भूखे को भोजन और प्यासे को पानी देना। वर्षों से चली आ रही परंपरा को आज भी जीवंत रखा गया है। बड़ी संख्या में भक्त मंदिर में आते हैं। साथ ही आषाढ़ दूज के दिन भगवान जगन्नाथ सामने भक्तों को दर्शन देने के लिए निकलेंगे। वहीं भक्तों ने भी निज मंदिर में भगवान का दर्शन करते हैं और भगवान को प्रिय मालपुवा का प्रसाद लेकर धन्यता का अनुभूति करते हैं।