अहमदाबाद : 10 साल पहले अपने दो बच्चों को नदी में फेंक खुदकुशी का प्रयास करने वाली महिला को जानें क्या सज़ा मिली है

अहमदाबाद  : 10 साल पहले अपने दो बच्चों को नदी में फेंक खुदकुशी का प्रयास करने वाली महिला को जानें क्या सज़ा मिली है

घटना के बाद पैदा हुए महिला के दोनों बच्चों को ध्यान में रखकर अदालत ने दिखाई दरियादिली

शहर की एक सत्र अदालत ने एक दशक पहले एक महिला को आत्महत्या के प्रयास के दौरान अपने दो बच्चों की हत्या करने के आरोप में सात साल जेल की सजा सुनाई थी। जबकि महिला ने ऐसा दावा किया कि उसने आत्महत्या का प्रयास नहीं किया था और ना ही उसका इरादा अपने बच्चों को मारने का था। हालांकि उसके जीवित बच जाने के बाद दर्ज किये गये बयान में उसने स्वीकार किया था कि उसने अपने बच्चों के साथ आत्महत्या का प्रयास किया था।
आपको बता दें कि ये घटना 16 जुलाई 2012 की है, जब मंजुला राठौड़ ने अपने दो बच्चों अंकिता (2.5) और जयेश (3.5) को सरदार ब्रिज से नदी में फेंक दिया और फिर वो भी कूद गई। इस घटना में वो तो बच गई, लेकिन उसके दोनों बच्चे डूब गए। एलिसब्रिज पुलिस ने उसके खिलाफ दो बच्चों की हत्या का मामला दर्ज किया है। राठौड़ ने राजस्थान के जालोर में शादी की थी और वह एक सामाजिक समारोह के लिए अहमदाबाद में अपने मायके आई थीं। इस कृत्य के लिए महिला पर आईपीसी की धारा 302 के तहत हत्या का मुकदमा चलाया गया।
अदालत में सुनवाई के दौरान महिला ने अपने बचाव में कहा कि वह नीचे देखने की कोशिश कर रही थी तभी वो फिसल गई और उसके दोनों बच्चे जो उसकी बाहों में नदी में गिर गये। हालांकि, घटना के बाद जब उसे बचाया गया था और इलाज के लिए वीएस अस्पताल में भेजा गया था तब महिला ने अपने बच्चों के साथ आत्महत्या करने के प्रयास की बात को स्वीकार किया था।
मामले की सुनवाई के बाद, अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि बच्चों की मौत आकस्मिक नहीं थी। हालांकि अदालत ने अपराध को आईपीसी की धारा 302 के तहत हत्या ना मानते हुए आईपीसी की धारा 299 के तहत गैर इरादतन हत्या माना। अदालत ने इस अपराध के लिए आरोपी महिला को सात साल कैद की सजा सुनाई। अदालत ने इस घटना के बाद पैदा हुए महिला के दोनों बच्चों को ध्यान में रखा और महिला को मात्र सात साल की सजा सुनाई।अदालत ने कहा कि इन बच्चों को अपनी मां के अपराध का दंड नहीं मिलना चाहिए। कोर्ट ने बाल कल्याण अधिकारी, सामाजिक सुरक्षा अधिकारी और कानूनी सहायता समिति के सचिव को दोनों बच्चों के ठहरने और भरण-पोषण की व्यवस्था करने का आदेश दिया। ऐसा होने तक अदालत ने आदेश दिया कि बच्चे अपनी मां के साथ रहें। साथ ही संबंधित जेलर को बच्चों की भलाई के लिए उचित कदम उठाने का आदेश दिया गया।