DNA रिपोर्ट के मेल न खाने पर भी दुष्कर्मी को छोड़ा नहीं जा सकता; हाईकोर्ट की टिप्पणी

अपने बच्चों के देखभाल करने वाली बच्ची के साथ पत्नी की अनुपस्थिति में दस दिनों तक किया दुष्कर्म

बॉम्बे हाई कोर्ट ने 14 साल की एक लड़की के साथ हुए दुष्कर्म मामले में आरोपी के जमानत के लिए डीएनए को पुख्ता सबूत मनाने इंकार करते हुए बच्ची के साथ रेपकर उसे गर्भवती करने के आरोपी को जमानत देने से इनकार कर दिया है। सुनवाई के दौरान आरोपी के वकील ने कोर्ट में डीएनए रिपोर्ट पेश कर दावा किया कि आरोपी लड़की के गर्भ में पल रहे बच्चे का पिता नहीं है, इसलिए उसे जमानत दी जानी चाहिए। इस पर कोर्ट ने कहा कि डीएनए टेस्ट को इस मामले में निर्णायक सबूत नहीं माना जा सकता है। कोर्ट ने आगे कहा कि भले ही डीएनए परीक्षण यह निष्कर्ष निकालता है कि एक बच्चा जैविक पिता नहीं है, यह कोई निर्णायक सबूत नहीं है कि कोई बलात्कार नहीं हुआ था। इसके बाद पीठ ने आरोपी की याचिका को खारिज कर दिया।

डीएनए परीक्षण यह निर्णायक सबूत नहीं


आपको बता दें कि अदालत ने माना कि भले ही एक गर्भवती बलात्कार पीड़िता का डीएनए परीक्षण यह निर्णायक सबूत नहीं हो सकता है कि बलात्कार नहीं हुआ था। न्यायमूर्ति भारती डोंगरे ने कहा "इसमें कोई संदेह नहीं है कि डीएनए विश्लेषण साक्ष्य का उपयोग पुष्टि के लिए किया जा सकता है। भले ही डीएनए परीक्षण से पता चलता है कि जमानत आवेदक बच्चे का पिता नहीं है, पीड़िता की गवाही पर विश्वास नहीं किया जा सकता है। आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत दर्ज अपने बयान में, उसने कहा कि उसने उसके साथ जबरन यौन संबंध बनाए।

क्या है मामला


मामले की बात करें तो आरोपी ने अपने बच्चों के देखभाल के लिए आने वाली 14 साल की बच्ची के साथ लगातार 10 दिनों तक दुष्कर्म किया। एक दिन अचानक लडक़ी के पेट में दर्द होने पर लड़की के माता-पिता उसे डॉक्टर के पास ले गए, जहां पता चला कि वह गर्भवती थी। इसके बाद उसने अपनी मां को घटना की जानकारी दी और माँ पुलिस में प्राथमिकी दर्ज कराई।


शिकायत के आधार पर नवी मुंबई पुलिस ने संदिग्ध आरोपी को गिरफ्तार कर लिया। हाईकोर्ट ने इस आरोपी की जमानत अर्जी खारिज करते हुए कहा कि इस स्तर पर पीड़िता की गवाही पर संदेह करने का कोई कारण नहीं है। पीड़ित परिवार की नाजुक स्थिति को देखते हुए इस बात की भी संभावना है कि पीड़िता और उसके परिवार पर आरोपी का दबाव होगा।

कर्नाटक में भी सामने आया ऐसा ही मामला


अन्य एक मामले में कर्नाटक हाई कोर्ट ने भी डीएनए जांच को पुख्ता सबूत नहीं माना और आरोपी को रिहाई देने से इंकार कर दिया। कर्नाटक के मैसूर की रहने वाली 43 वर्षीय बस कंडक्टर पर अपने 12 वर्षीय रिश्तेदार के साथ बलात्कार करने और उसे गर्भवती करने का आरोप है। उसका शारीरिक शोषण भी किया गया। इस पूरे मामले में आरोपी के खिलाफ पोक्सो और आईपीसी की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था। डीएनए टेस्ट में आरोपी और पीड़िता के सैंपल का मिलान नहीं हो रहा है. इसलिए बाद में आरोपी ने हाईकोर्ट में आरोपों को खारिज करने की मांग की, जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया और कहा कि डीएनए टेस्ट मैच नहीं होने पर भी उस आधार पर पूरे मामले को रद्द नहीं किया जा सकता है।
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