महाराष्ट्र : जब छात्रों के माता-पिता नहीं दे पाए फीस तो प्रिंसिपल ने किया कुछ ऐसा कि अब हर कोई कर रहा है उनकी तारीफ

महाराष्ट्र : जब छात्रों के माता-पिता नहीं दे पाए फीस तो प्रिंसिपल ने किया कुछ ऐसा कि अब हर कोई कर रहा है उनकी तारीफ

अपने बच्चों को परेशान होता देख प्रिंसिपल ने क्राउडफंडिंग करते हुए अपने स्कूल के छात्रों की मदद के लिए 1 करोड़ रुपये जुटा लिए

पढ़ाई हर बच्चे के जीवन का अहम हिस्सा होता है। बच्चों के लिए उनके शिक्षक और शिक्षकों के लिए उनके बच्चे बहुत महत्वपूर्ण होते है। ऐसे में मुंबई के पवई में स्कूल प्रिंसिपल ने अपने बच्चों के लिए जो किया उसे जानकार हर कोई उनकी तारीफ कर रहा हैं। कोरोना काल में आर्थिक तंगी से लाखो छात्र अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ने को मज़बूर हो गए। ऐसा ही कुछ हाल रहा मुंबई के पोवई इलाके के एक स्कूल का जहाँ माता-पिता की नौकरी छूट जाने या उनके वेतन में कटौती की वजह से बहुत से बच्चों की फीस लंबित थी और उनकी पढाई का नुकसान हो रहा था। अपने बच्चों को परेशान होता देख  प्रिंसिपल ने क्राउडफंडिंग करते हुए अपने स्कूल के छात्रों की मदद के लिए 1 करोड़ रुपये जुटा लिए। इस तरह प्रिंसिपल के इस कदम से कुल फीस का लगभर 95% से अधिक कवर हो चुका है। 
आपको बता दें कि हम जिस स्कूल की बात कर रहे है उसका नाम पवई इंग्लिश हाई स्कूल है और यहाँ की प्रिंसिपल शर्ली पिल्लई ने कहा कि कुछ दान देने वाले भविष्य में भी योग्य छात्रों को स्पॉन्सर करने के इच्छुक हैं। इसी संकट की घडी में प्रिंसिपल ने इन पैसो से ऐसे छात्रों की फीस भरी गई ,जिनके अभिभावकों का काम छूट गया और वे अपने बच्चो की स्कूल फीस देने में असमर्थ हो गए। निजी स्कूल की प्रिंसिपल ने बताया कि फीस देने असमर्थ हो चुके छात्रों में करीब 95 फीसदी की फीस क्राउड फंडिंग से जुटा ली गई। 
इस बारे में प्रिंसिपल शिर्ली पिल्लई  ने बताया की जब वह छात्रों की समस्याओ को सुनती उन्हें काफी दुविधा होती कि कैसे इस समस्या का हल निकला जाए। कोरोना काल में स्कूल के खर्चे थे और स्टाफ की सैलरी देनी ही थी। मेरी जिंदगी का आधा हिस्सा यहीं गुजरता है। रोज करीब-करीब 10 घंटे स्कूल में ही रहती हूं। सब ठीक चल रहा था कि कोविड आ गया। सरकार की गाइडलाइन के हिसाब से ऑनलाइन क्लास शुरू हुई, लेकिन बच्चे धीरे-धीरे क्लास करना कम करते जा रहे थे। प्रत्येक क्लास में दर्जनों बच्चे ऐसे रहते, जिनकी फीस नहीं जमा हो पा रही थी। उनके पेरेंट्स से बात करने पर उनकी आर्थिक स्थिति के बारे में जानकारी होती। अब हमें तो स्कूल के खर्च देने ही थे। टीचर्स को पेमेंट देने थे। पैसे नहीं आएंगे तो क्या करेंगे। बस यहीं से मैंने क्राउड फंडिंग करने की योजना बनाई। मैं केंद्रीय विद्यालय से पढ़ी हूं। तो उसके वॉट्सऐप एल्युमिनाई ग्रुप में मैंने इसे लेकर पोस्ट किया। वहां से बहुत अच्छा रेस्पांस मिला। एक कंपनी ने 5 लाख तो एक कंपनी ने 14 लाख रुपये की मदद की। ये हमारे लिए चमत्कार से कम नहीं था। बच्चों की जो हम मदद करना चाहते थे, उसमें कुछ स्टेप्स आगे बढ़ गए। इसके बाद कुछ ही दिनों में करीब 1 करोड़ रुपये हमारे पास आ गए।”
बता दें कि  प्रिंसिपल शिर्ली पिल्लई के साथ उन्हें प्रयास का बेहतर परिणाम मिला। शुरुआत में एक कंपनी ने पांच 5 तो एक कंपनी 14 लाख रुपये की मदद की। इसके बाद यह सिलसिला चलता गया और कुछ ही दिनों में 1 करोड़ रुपये की राशि जमा हो गई। शिर्ली पिल्लई कहती है कि उनके स्कूल ने 3 साल में 1 रुपये की भी वृद्धि स्कूल के फीस में नहीं की है। आगे भी उनका प्रयास है कि पूर्व निर्धारित फीस के साथ ही स्कूल आगे जाए जिसका लाभ अधिकांश छात्र ले सकें।