ब्रिटिश हकूमत के पास अपनी जायदाद गिरवी रख जनहित में ट्रेन चलाई सेठ गुलाबचंद सालेचा ने

ब्रिटिश हकूमत के पास अपनी जायदाद गिरवी रख जनहित में ट्रेन चलाई सेठ गुलाबचंद सालेचा ने

अंग्रेजी शासन की अवहेलना कर पचपदरा के नमक को कोलकाता ले जाकर वहां इस्ट इण्डिया कम्पनी के सामने नमक बेच फिरंगी हूकुमत को ललकारा था

सेठ तो अनगिनत होंगे, लेकिन सच्चे मायने में जिनमें सेठपणा था, वे थे स्वर्गीय गुलाबचंद जी सालेचा। पचपदरा ही नहीं वरन तमाम क्षेत्र आज भी खुद को उनका ऋणी मानता हैं। जब भी उनका नाम आता है तो सम्मान और अदब से लोगों के सिर खुद ब खुद झुक जाते हैं। एक ऐसा महामानव, जिसने अपनी जन्मभूमि की तरक्की के लिए अपनी जायदाद तक फिरंगियों के पास गिरवी रख दी। तभी तो उस महामना को तत्कालीन समय में नगरसेठ की उपाधि से नवाजा गया। 
पचपदरा की गुलाब गाड़ी को शायद ही कोई भूल पाया होगा। रेलगाड़ी के ईंजन की वह छुक-छुक दशकों बाद भी लोगों के जेहन में जिन्दा है। अंग्रेजी शासनकाल में, जिस वक्त आवागमन के साधन नहीं के बराबर थे, उस समय सेठ गुलाबचंद सालेचा पचपदरा साल्ट के नमक उधोग के हितों के लिए गोरी सल्तनत से भिड़े। मारवाड़ में उधोग के नाम पर अगर उस वक्त कुछ था तो वह था पचपदरा साल्ट का एकमात्र नमक उधोग। इस उधोग पर फिरंगी शासन का नियन्त्रण था। अंग्रेजी शासन की अनुमति के बिना न तो नमक उत्पादन किया जा सकता था और न ही नमक बेचा जा सकता था। बालद(बैलों) और बंजारे ही नमक परिवहन का मुख्य जरिया थे। नमक को देश के कोने-कोने तक पंहुचाते और वहां से मसाले व अन्य खाद्य पदार्थ यहां लाते थे। 
गुलाब गाड़ी से पहले एक अहम जिक्र करना चाहूंगा, जिससे आप में से शायद अधिकांश अनभिज्ञ होंगे। इतिहास की किताबों में हमने पढ़ा होगा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने नमक सत्याग्रह कर नमक कानून को तोड़ा था, लेकिन हकीकत यह है कि महात्मा गांधी से करीब 8 साल पहले ही पचपदरा में फिरंगियों के खिलाफ इस क्रांति का शंखनाद हो चुका था। सेठ साहब अंग्रेजी शासन की अवहेलना कर यहां के नमक को कोलकाता ले गए और वहां इस्ट इण्डिया कम्पनी के सामने नमक बेचकर फिरंगी हूकुमत को ललकारा। कद में नाटे लेकिन बेहद ही रौबदार शख्स और उस जमाने में फर्राटेदार अंग्रेजी में बातचीत करने वाले इस शख्स से गोरे अफसर भी खौफ खाते थे। 
नमक कानून तोड़ने के बाद सेठ साहब लवण उत्पादक खारवाल समाज के कुछ प्रतिष्ठित लोगों के शिष्टमंडल को अपने खर्चे पर साथ लेकर शिमला गए। अंग्रेज रेजिमेंट के अफसरों से मिले और पचपदरा के नमक परिवहन के लिए रेलगाड़ी शुरु करने की मांग की। कामर्शियल उद्देश्य से रेल सेवा की तो अफसरों ने हामी भर दी लेकिन शर्त यह रखी कि 16 साल में लागत वसूल होनी चाहिए। तब सामने बैठे सेठों के उस सेठ गुलाबचंद सालेचा ने शपथ पत्र दिया कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो अंग्रेजी सल्तनत को उनकी निजी जायदाद से वसूली का अधिकार रहेगा। सेठ गुलाबचंद सालेचा की बदौलत रेलगाड़ी शुरू हो गई और इसका नाम हो गया गुलाब गाड़ी। लागत 9-10 साल में ही वसूल हो गई लेकिन यात्री भार कम हो गया। रेल बंद नहीं हों इसके लिए सेठ साहब ने अपने एक आदमी को रेल्वे स्टेशन पर मुकर्रर किया। उसकी ड्यूटी थी कि रोजाना पचपदरा से बालोतरा के 50 टिकट बिकने चाहिए और इसमें कमी रहे तो शेष टिकट खरीदना और रेल्वे को इसका भुगतान करना। इस तरह गुलाब गाड़ी चल निकली। 
पचपदरा में उस वक्त तालाबों के अलावा पेयजल का जरिया नहीं था। सेठ गुलाबचंद ने पचपदरा को पेयजल स्कीम से जुडवाया। रेलगाड़ी के टैंकरों से पानी पचपदरा लाया जाता। रेल्वे स्टेशन के हौद में पानी खाली किया जाता और यहां से गांव के नाड़ी तालाब के पास बने हौद तक पाइप लाइन से पानी की सप्लाई की जाती। सेठ गुलाबचंद सालेचा के ये तो थे गुलाम भारत के दौरान के जनहितकारी कार्य। देश की आजादी के बाद भी वे जनहित कार्यो में जुटे रहे। जरूरतमंदों के लिए उनके द्वार हमेशा खुले रहते थे। बाडमेर जिला मुख्यालय पर राजकीय कन्या महाविद्यालय उनके ही प्रयासों की देन है। शिक्षा व विकास के लिए जीवन पर्यन्त समर्पित रहे। उनके इन्हीं परोपकारी कार्यो के लिए सेठ साहब को नगर सेठ की उपाधि से नवाजा गया।  
आज भी कहीं जिक्र होता है तो यही कहा जाता हैं कि सेठों का सेठ तो एक ही था, नगर सेठ गुलाबचंद । बताया जाता है कि गुलाबचंद सालेचा मूलतः पचपदरा निवासी सेठ धनसुखदास के पुत्र थे। व्यापारिक कारणों व आवागमन के साधन नहीं होने से उनका परिवार मध्यप्रदेश के गंज मसौदा में बस गया। इसके करीब 50 साल बाद वे बैलगाडियों का काफिला लेकर सपरिवार जैन तीर्थ नाकोडा यात्रा पर आए थे। पचपदरा के सेठ सागरमल सालेचा निःसंतान थे। उनके स्वर्गवास के बाद सेठानी ने गुलाबचंद सालेचा को गोद ले लिया और वे वापस यहीं के होकर रह गए। गुलाबचंद परिवार की वंशबेल बढी। उनके चार पुत्रों ने भी व्यापार और राजनीति में गांव और परिवार का नाम रोशन किया। 
वर्ष 1979 में 94 साल की उम्र में नगरसेठ गुलाबचंद सालेचा का स्वर्गवास हो गया। इस दुःखद समाचार के बाद घरों में चूल्हे तक नहीं जले। कृतज्ञ पचपदरा ने नम आंखों से अपने प्यारे नगरसेठ को अंतिम विदाई दी। उनके सम्मान और अविस्मरणीय याद में गुलाब सर्कल पर प्रतिमा स्थापित की गई। यहां से गुजरने वाला हर शख्स सिर झुका कर इस महामानव को सम्मान देता है, जिसका कि वे सच्चे अर्थों में हकदार हैं। नगर सेठ गुलाबचंद सालेचा के कद का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ महीनों पहले पचपदरा में रिफाइनरी के कार्य शुभारंभ के दौरान आयोजित जनसभा के दौरान अपने उद्बोधन से पहले उस महामानव के कृतित्व और व्यक्तित्व को मंच से याद करते हुए कहा था कि पचपदरा की यह धन्य धरा सेठ गुलाबचंद सालेचा जैसे भामाशाहों की उर्वरा धरती है, उसे मैं नमन करता हूं।
धन्य है पचपदरा की धर्मधरा,  जिसके उपवन में गुलाबचंद जैसे गुलाब खिले। सादर नमन, कोटि-कोटि वन्दन, पचपदरा सदैव आपका ऋणी रहेगा ।
(जितेन्द्र सिंह खारवाल, पत्रकार )
9414532672
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