जब बीमार दादी को देखने के लिए 200 किलोमीटर साइकल चलाकर घर पहुंची पौती

जब बीमार दादी को देखने के लिए 200 किलोमीटर साइकल चलाकर घर पहुंची पौती

बिना माता-पिता को बताए जयपुर से भरतपुर के लिए निकल गई 17 वर्षीय आरती, बीच में रास्ता भटक जाने के कारण करना पड़ा 40 किलोमीटर का अधिक सफर

कहते है दादा-दादी और पौते के बीच का रिश्ता काफी अनोखा होता है। कोई भी बालक अपने माता-पिता से भी अधिक प्यार अपने दादा-दादी से करता है। अपने पौते या पौती को लगने वाली छोटी सी चोट भी दादा-दादी को व्याकुल कर देती है। वहीं दादा-दादी को भी किसी परेशानी में देखकर उनके पौते-पौतियों का दिल नहीं चलता। ऐसा ही एक मामला राजस्थान से सामने आया है, जहां 17 साल की एक पौती ने अपनी दादी को मिलने के लिए साइकल से जयपुर से भरतपुर पहुँच गई थी। पौती को पता चला की उसकी दादी की तबीयत खराब है तो बस वह निकल पड़ी तुरंत ही उनसे मिलने के लिए।
अपनी इस सफर के दौरान आरती रास्ता भी भूल गई थी और आग्रा की और निकल गई थी। जब मार्ग में उसने फतेहपुर सीकरी का बोर्ड देखा तो उसे आभास हुआ कि वह रास्ता भटक गई है। वह अपने मार्ग से गलत दिशा में 20 किलोमीटर आगे आ गई थी। इसके चलते आरती वापिस आई और फिर से अपने मार्ग पर लौटी। इस तरह आरती का सफर 40 किलोमीटर बढ़ गया।
आरती कहती है कि वह अपने सभी रिशतेदारों से मिलने के लिए साइकल से ही जाती है। जब आरती को पता चला कि उसकी दादी कि तबीयत खराब है तो उसने दादी से मिलने की जिद की। पर आरती की माँ ने उसे कुछ दिनों बाद जाने कहा, पर आरती अकेले ही अपने दादा-दादी को मिलने पहुँच गई। आरती के माता-पिता को तो इस बात का अंदाजा भी नहीं था की आरती अपने दादा-दादी से मिलने के लिए भरतपुर चली गई है। 
आरती 11वीं क्लास में पढ़ती हैं। उन्हें साइकिल से सफर करने का शौक है। आरती की एक बड़ी बहन और एक बड़ा भाई भी है, जो पढ़ाई कर रहे हैं। पिता ब्रजेश जयपुर के अर्जुन नगर में किराना की दुकान चलाते हैं। दादी और दादा भरतपुर के डेहरा गांव में रहते हैं। आरती की दादी लज्जा देवी डेहरा गांव के आंगनबाड़ी में सहायिका के पद पर काम करती हैं, जिसके कारण वे गांव में ही रहते हैं। उसकी दादी को मौसमी बीमारी थी। उन्हें बुखार था।
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