लो, यहां 207 वेंटिलेटर आ गया लेकिन किसी के पास पैकिंग खोलने की फुर्सत ही नहीं थी!

लो, यहां 207 वेंटिलेटर आ गया लेकिन किसी के पास पैकिंग खोलने की फुर्सत ही नहीं थी!

बिना ऑपरेटर के धूल खाते रहे वेंटिलेटर, साल में तीन बार भर्ती करने के प्रयास के बाद नहीं मिले पर्याप्त ऑपरेटर

कोरोना महामारी के कारण लोगों की समस्या खतम ही नहीं हो रही। पर फिर भी कुछ नेता मानों अपनी जिद पर अड़े हो की कोई काम करना ही नहीं है। जिसके कारण आम लोगों की जान खतरे में पड़ रही है। बिहार में भी नेताओं की लापरवाही का कुछ ऐसा ही उदाहरण सबके सामने आया। यह खबर सुनकर खुद आप भी अपने गुस्से पर काबू नहीं रख पाओगे। जहां महामारी के दौरान राज्य में ऑक्सीज़न की और वेंटिलेटर की कमी के कारण लोग मर रहे थे। वहीं बिहार में आकार पड़े हुये 200 से भी अधिक वेंटिलेटर बिना पेकिंग खोले पड़े रहे थे। जब स्वास्थ्य मंत्री से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा की वेंटिलेटर को ओपरेट करने वाले नहीं है, जिसके कारण वह पड़े रहे है। 
प्राप्त जानकारी के अनुसार, सरकारी अस्पतालों में इन वेंटिलेटरों को इन्स्टोल ना कर सकने का सबसे बड़ा कारण यह था कि इसके लिए सरकार को 140 ऑपरेटर कि जरूरत है। जबकि स्वास्थ्य विभाग के पास अभी मात्र 77 ऑपरेटर है। जब यह पूरा झोल सामने आया तो स्वास्थ्य विभाग द्वारा पेकिंग हुये पड़े वेंटिलेटरों को निजी अस्पतालों में इस्तेमाल के लिए देने का आदेश दे दिया है। वैसे तो यह आदेश 2 मई के दिन दिया गया था, पर 16 मई तक मात्र 24 वेंटिलेटर ही निजी अस्पतालों में इन्स्टोल किए जा सके है। 
मंत्री पांडे के अनुसार, वेंटिलेटर का इस्तेमाल ना हो सकने का मुख्य कारण एनेस्थीसिस्ट का ना होना है। एक साल में उन्होंने तीन बार एनेस्थीसिस्टों को भर्ती करने का प्रयास किया। इसके लिए महीने कि 1.5 लाख पगार देने की घोषणा भी की गई, पर फिर भी 140 के सामने उन्हें 77 ही एनेस्थेसीस्ट मिल पाये। बिहार के राज्य स्वास्थ्य समिति ने कहा की निजी अस्पतालों में जो सरकारी वेंटिलेटर दिये गए है, उसके लिए अस्पताल मरीज से 2000 से अधिक शुल्क नहीं ले पाएंगे। बता दे की पीएम केयर फंड से मार्च 2020 में 60 हजार वेंटिलेटर की खरीदी की गई थी। जिसमें से 17 हजार वेंटिलेटर विभिन्न राज्यों को दिया गया था।