पांच बच्चों को पालने पोसने वाली माँ आज हैं बेघर और लाचार, बच्चों ने शादी के बाद घर से निकाला

पांच बच्चों को पालने पोसने वाली माँ आज हैं बेघर और लाचार, बच्चों ने शादी के बाद घर से निकाला

लोगों पर आश्रित कविता बेन की कहानी हैं दुखद

70 वर्षीय कवयित्री इस समय बस स्टैंड के मुख्य द्वार के पास एक पेड़ के नीचे बैठकर अपने जीवन के दिन बिता रही हैं। ऐसा नहीं है कि कविता बेबस है और उसके कोई बच्चे नहीं हैं, उसके 5 बेटे और एक बेटी है लेकिन उसके पास रहने के लिए कोई घर नहीं है। कविताबेन ने अपने दम पर बच्चों को पाला, लेकिन जब माँ कि देखभाल करने का समय आया, तो पाँचों बेटे उसे छोड़कर अपनी पत्नियों के साथ रहने लगे। बेटी अपने परिवार में व्यस्त है।
कविताबेन अपनी हालत पर बताते हुए भावुक होकर कहती हैं वह कहने लगा कि बेटों की पत्नियां बोलती हैं कि उनको पाले या बच्चों का जीवन बनाये! कविता अब बस स्टैंड पर एक पेड़ के नीचे अपनी जिंदगी बिता रही है। कविता बताती है कि वह गलियों में फेरी लगाती थी और पुराने कपड़ों के बदले बर्तन बेचा करती थी। यह काम उसका पति भी करते थे। वो सभी शिव नगर में किराए के मकान में रहते थे। करीब 25-30 साल पहले जब उसके पति की मौत हुई तो वह अकेली रह गई थी। पति की मृत्यु के समय पुत्रों की आयु 18-20 वर्ष होगी।
इस समय उनके पास उस समय कोई काम नहीं था, इसलिए माँ घर-घर जाकर काम करती रहीं। जब बेटे शादी के योग्य थे, तो उन्होंने शादी करा दी, लेकिन जैसे ही उनकी शादी हुई और वो अपनी अपनी दुल्हनें ले आए तो सब अलग रहने लगे। अब बेटे अपनी पत्नियों के साथ नैनीताल में रहते हैं और बूढ़ी कविता के पास किराया देने के लिए पैसे नहीं थे इसलिए वह बस स्टैंड के पास रहने लगी। कविता का कहना है कि शुरू में बेटे यहां बस स्टैंड पर उनसे मिलने आते थे लेकिन बड़े दिनों से यहां नहीं आए हैं। 
वह कहती है कि वह नहीं जानती कि कैसे कॉल करना है और उसके पास उसके बेटों का फोन नंबर नहीं है। कोरोना के ज़माने में खाने के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा कि जब बस स्टैंड पर रौनक होती है तो यात्री कुछ न कुछ देते हैं, लेकिन अब लोग सुबह-शाम ही रोटी देते हैं।
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