सरकार व स्वास्थ्य मंत्रालय सोशल मिडिया पर डायाबीटीज़ के इंसुलिन इंजेक्शन के प्रति गलत भ्रम फ़ैलाने वालों को रोके : यूनाइटेड डाईबीटीज़ फोरम
By Loktej
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आजकल लोगों में डायाबिटीज़ (मधुमेह) की बीमारी काफी देखने को मिलती, जोकि आगे चलकर अन्य बीमारियों का कारण बनती है। डायाबिटीज़ दो प्रकार की होती है - एक टाईप १ जो ५ प्रतिशत मरीज़ों को ही होती है और ज्यादातर बच्चों में पायी जाती है। उसका इलाज केवल नियमित तौर पर इंसुलिन इंजेक्शन ही है। वहीं टाईप २ डायाबिटीज़ ९५ प्रतिशत मरीज़ो को होता है और यह दवाई व खानपान से कंट्रोल होता है। साथ ही १० या १५ साल बाद इनमें से काफी लोगों को इंसुलिन इंजेक्शन की जरुरत पड़ती है।
टाईप १ डायाबिटीज़ ज्यादातर बच्चों में होता है। उसका इलाज केवल नियमित तौर पर इंसुलिन इंजेक्शन है। देश-विदेश सभी जगह इसका इलाज एक ही है। लेकिन कुछ लोगों द्वारा सोशल मिडिया पर यह भ्रम फैलाया जा रहा है कि इसका इलाज उनकी गोली , योग व ध्यान इत्यादि से ठीक हो सकता है। जिससे लोगों के झांसे में आने के कारण यदि बच्चों को इंसुलिन इंजेक्शन ना दिया गया या बंद कर दिया गया तो उनकी जान को खतरा पैदा हो सकता है। इसलिए ' यूनाइटेड डाईबीटीज़ फोरम' के अध्यक्ष डॉ. मनोज चावला, सेक्रेटरी डॉ. राजीव कोविल व ट्रैज़रर डॉ. तेजस शाह ने स्वास्थ्य मंत्रालय, भारत सरकार व अन्य संस्थाओं को लेटर भेजकर आग्रह किया गया कि भ्रम फ़ैलाने वालों को रोका जाय।
'यूनाइटेड डाईबीटीज़ फोरम' एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. मनोज चावला कहते है," इंसुलिन पाचक ग्रंथि (पेंक्रिया) द्वारा बनाया जाता है। यह शरीर में कार्बोहाइड्रेट को एनर्जी में बदलने का काम इंसुलिन करती है। जब पेंक्रिया में इंसुलिन बनना बंद हो जाता है, तो ग्लूकोज एनर्जी में परिवर्तित नहीं हो पाता है और ब्लड वेसेल्स में जमा होकर डायाबिटीज़ की बीमारी का रूप ले लेता है। टाईप १ डायाबिटीज़ का इलाज केवल इंसुलिन इंजेक्शन है। यदि लोग गलत अफवाहों या बिना पढ़े-लिखे के कहने में आकर इंसुलिन इंजेक्शन बंद करते हैं, तो बच्चों की जिंदगी खतरे में आ सकती है। इसलिए सरकार व स्वास्थ्य मंत्रालय सोशल मीडिया में ऐसे गलत भ्रम फ़ैलाने वालो को रोके, इसलिए यह पत्र भेजा गया है। "