कश्मीर घाटी की हुंआ जनजाति की लंबी उम्र का ये राज जान लें, इनकी औसत आयु है 120 साल!

कश्मीर घाटी की हुंआ जनजाति की लंबी उम्र का ये राज जान लें, इनकी औसत आयु है 120 साल!

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कहते हैं “पहला सुख निरोगी काया!” जीवन में स्वस्थ शरीर और निरोगी जीवन किसी आशीर्वाद से कम नहीं। हम में से बहुत लोग बेहतर जीवन के लिए बहुत कुछ करते हैं। घंटों जिम में पसीने बहाना, कसरत करना, सेहतमंद फल खाना और ना जाने क्या क्या! ऐसे में सुनने में बहुत अजीब लगेगा कि एक ऐसी जगह हैंजहाँ सामान्य जीवन जीते हुए और कुछ भी नया किये बिना लोग आम तौर पर 120 साल या उससे ज्यादा जिंदा रहते हैं और महिलाएं 65 साल की उम्र तक गर्भ धारण कर सकती हैं। आम तौर पर उम्र बढऩे के साथ जहाँ शहरों में रहने वाले लोग दवाओं पर निर्भर होने लगते है, वहीं कश्मीर में हुंजा घाटी एक ऐसी जगह है, जहां के लोगों को यह पता ही नहीं, कि दवा आखिर होती क्या है।

आपको बता दें कि डॉ. रॉबर्ट मैक्कैरिसन द्वारा ‘पब्लिकेशन स्टडीज इन डेफिशिएन्सी डिजीज’ में जानकारी लिखने के बाद इस जनजाति के बारे में पहली बार पता चला था। इसके बाद ‘जर्नल ऑफ द अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन’ में एक लेख प्रकाशित हुआ, जिसमें इस प्रजाति के जीवनकाल और इतने लंबे समय तक स्वस्थ बने रहने के बारे में बताया गया।  लेख के अनुसार, यहां के लोग शून्य से भी कम तापमान में ठंडे पानी में नहाते हैं। कम खाना और ज्यादा टहलना इनकी जीवन शैली है। यहाँ के लोगों के बारे में जानकर दुनिया भर के डॉक्टर हैरान हैं। सब ने यहीं माना है कि इनकी जीवनशैली ही इनकी लंबी आयु का राज है। ये लोग सुबह जल्दी उठते हैं और बहुत पैदल चलते हैं।
  
आपको बता दें कि यह हुंजा घाटी गिलगित-बाल्टिस्तान के पहाड़ों में स्थित भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा के पास स्थित है। यहाँ के लोगों की संख्या तकरीबन 87 हजार है। यहां के लोग पहाड़ों की साफ हवा और पानी में अपना जीवन व्यतीत करते हैं। यहाँ के लोग खूब पैदल चलते हैं और कुछ महीनों तक केवल खूबानी खाते हैं। ये लोग जो उगाते है वही खाते हैं। खूबानी के अलावा ये लोग मेवे, सब्जियां और अनाज में जौ, बाजरा और कूटू ही खाते है। इसके अलावा यहाँ अखरोट का खूब इस्तेमाल होता हैं। आपको बता दें कि धूप में सुखाए गए अखरोट में बी-17 कंपाउंड पाया जाता है, जो कैंसर से बचाव में मददगार होता है। 
गौरतलब है कि भले ही शहरी जिंदगी ने जीवन को सुविधाओं से भर दिए हैं, लेकिन हमने उसकी भारी कीमत भी चुकाई है। ये कुदरत के करीब रहने वाले लोग आज भी ना सिर्फ शहरी लोगों से अधिक खुश हैं बल्कि उनके बहुत स्वस्थ भी हैं।