लॉकडाउन और पलायन का एक साल; बीच रास्ते बीमार दोस्त अमृत को खोने वाला सैयुब अब सूरत नहीं लौट रहा!

लॉकडाउन और पलायन का एक साल; बीच रास्ते बीमार दोस्त अमृत को खोने वाला सैयुब अब सूरत नहीं लौट रहा!

सैयुब कहते है कि अमृत उनके घर का एकमात्र कमाने वाला व्यक्ति था। उसके चले जाने के बाद अब उसका परिवार दो वक्त की रोटी के लिए भी तरस रहा है।

भारत में कोरोना के कारण पड़े पहले लोकडाउन को एक साल हो गया है। लोकडाउन के बाद कई श्रमिक गुजरात और अन्य राज्यों में से पलायन कर रहे थे। इस दौरान कई तरह कि करुण घटनाएँ सामने आई थी। एक ऐसी ही घटना में एक मित्र ने अपने ही हाथों में अपने मित्र को दम तौड़ते हुये देखा था, जिसकी तस्वीरें सभी की आँखों में आँसू ले आई थी। 
कोरोना के डर से ट्रक में बैठे लोगों ने निकाल दिया था ट्रक से 
न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, 14 मई 2020 का वो दिन, बुखार और सांस की तकलीफ से परेशान अमृत कुमार को कुछ लोगों ने कोरोना के डर के कारण ट्रक से उतार दिया। ट्रक में बैठे अन्य लोगों को अमृत के भी खतरनाक कोरोना वायरस से संक्रमित होने का डर लगा था। इसलिए उन्होंने उसे उतार दिया। सूरत से यूपी के लिए एक ट्रक में सवार होकर जा रहे अमृत के मित्र सैयुब ने भी अमृत के साथ ट्रक छोड़ दी।
शुरुआती दिनों में अमृत ने की थी मदद
उस दिन को याद करते हुये सैयुब कहते है कि ट्रक ड्राईवर ने उन्हें अमृत को छोडकर आगे बढ्ने की सलाह दी थी। पर इस बात के लिए उनका दिल नहीं माना था। इसके बाद उन्होंने अमृत को नजदीक के एक अस्पताल में पहुंचाया, जहां दोनों का कोरोना रिपोर्ट नेगेटिव आया। पर अमृत को डॉक्टर बचा नहीं पाये। वह अपने गाँव देवरी अमृत के शब के साथ पहुंचे।  सैयुब कहते है कि अमृत उनके घर का एकमात्र कमाने वाला व्यक्ति था। उसके चले जाने के बाद अब उसका परिवार दो वक्त की रोटी के लिए भी तरस रहा है। सैयुब के घर की हालत भी कुछ ज्यादा ठीक नहीं है, पर वह अब उसे सूरत आने को मना कर रहे है। सैयुब बताते है कि जब वह सूरत पहुंचे थे, तो शुरुआती दिनों में अमृत ने उनकी काफी सहायता की थी। दोनों एक साथ एक ही घर में रहते थे। 
गाँव में नहीं हो पा रही कमाई
अपनी इच्छा होते हुए भी वह अमृत के परिवार की सहायता नहीं कर पाते। इस बात का दुख सैयुब को हमेशा रहता है। वह कहते है कि अमृत के पिता को चलने में दिक्कत है, पर किसी तरह वह घर के लिए एक वक्त के खाने का जुगाड़ कर लेते है। अपने बारे में बताते हुये सैयुब कहते है कि गाँव में उन्होंने जाली और खिड़की बनाने का काम शुरू किया है। जहां सूरत में वह महीने के 17 से 18 हजार कमा लेते थे, गाँव में 3 से 4 हजार की कमाई भी मुश्किल से हो रही है।
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