जब हमारी जमीन नहीं रहेगी, तब क्या करेंगे हम? : नरेश टिकैत

जब हमारी जमीन नहीं रहेगी, तब क्या करेंगे हम? : नरेश टिकैत

कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर बैठे किसानों से मिलने गाजीपुर बॉर्डर पहुंचे भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेश टिकैत ने कहा कि "अगर यही सरकार रही तो हमारी जमीन भी हमारे पास नहीं रहेगी। प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को अपने सलाहकार के बजाय किसानों से राय लेनी चाहिए।"

गाजीपुर बॉर्डर, 23 फरवरी (आईएएनएस)| कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर बैठे किसानों से मिलने गाजीपुर बॉर्डर पहुंचे भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेश टिकैत ने कहा कि "अगर यही सरकार रही तो हमारी जमीन भी हमारे पास नहीं रहेगी। प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को अपने सलाहकार के बजाय किसानों से राय लेनी चाहिए।" यहां पहुंचने पर किसानों ने नरेश टिकैत का ढोल-नगाड़ों के साथ स्वागत किया गया। इस दौरान टिकैत ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, "बीते तीन महीने से चल रहे विरोध प्रदर्शनों के अलावा जगह-जगह महापंचायतों का दौर जारी है, सरकार और किसानों के बीच बातचीत भी अब बंद हो चुकी है। धरने पर बैठेने की हमारी मजबूरी है, 90 दिन से हम यूं ही नहीं बैठे हुए हैं। हमारे 200 से ज्यादा लोग कुर्बानी दे चुके हैं। कड़ाके की सर्दी में हमारे बुजुर्गो ने खुले आसमान तले रातें गुजारी हैं। इन सबकी तपस्या को हम बेकार नहीं जाने देंगे।"

यह पूछे जाने पर कि सरकार और आप लोगों के बीच बात क्यों नहीं बन रही है? टिकैत ने कहा, "ये तो सरकार की जिम्मेदारी है, सबकुछ उसी के हाथ में है। सरकार चाहे तो गतिरोध खत्म हो सकता है। यह ज्यादा बड़ा काम नहीं है। .. हमारा सवाल है कि इन्होंने इस तरह का बिल बनाया ही क्यों? बनाने से पहले किसानों से सलाह- मशविरा कर लेते। ऐसे कानून से तो किसान बर्बाद हो जाएंगे।"

टिकैत ने चिंता जताते हुए कहा, "हमें तो अपनी जमीन बचाने की पड़ी हुई है, यही सरकार रही तो हमारे पास जमीन भी नहीं रहेगी, तब हम क्या करेंगे?"

इस सवाल पर कि क्या इस कानून से किसानों की जमीन चली जाने का भी डर है? उन्होंने कहा, "कॉन्ट्रैक्ट फार्मिग बड़ा ही गंदा मसला है और सब कुछ लिखित में है। बिल्कुल साफ है। इसमें गलतफहमी की कोई बात ही नहीं है। बस इतना समझ लीजिए कि यह लागू हुआ तो किसान बर्बाद हो जाएगा, फकीर हो जाएगा।"

सरकार की तरफ से संशोधन प्रस्ताव मांगा गया और तीनों कानूनों को 18 महीने तक रोके जाने की बात कही गई, तब क्या समस्या है? इस सवाल के जवाब में नरेश टिकैत ने कहा, "हम तो कह ही रहे हैं कि रोक दीजिए, 18 महीने के बजाय पूर्ण रूप से रोक लगा दीजिए। आपकी भी बात रह जाएगी और हमारी भी। एमएसपी पर अलग से कानून बन जाए और आंदोलन करने वालों पर किए गए मुकदमे वापस लिए जाएं, हम बस इतना चाहते हैं।"

यह पूछे जाने पर कि क्या किसानों का गुस्सा चुनाव में बाहर आएगा? किसान नेता ने जोर देते हुए कहा, "बिल्कुल! गुस्सा चुनाव में निकलेगा। जिन लोगों की बेईज्जती हुई है, वे जब मौका, मिलेगा तब गुस्सा निकालेंगे। सरकार को नाराज लोगों को मनाने के लिए बहुत कुछ करना पड़ेगा।"

पश्चिम उत्तर प्रदेश जाट बहुल क्षेत्र है और इस बिरादरी के गुस्से का असर चुनाव पर पड़ सकता है। जाट बहुल इलाकों में नरेश टिकैत का अच्छा दबदबा माना जाता है। मगर आईएएनएस ने जब उनसे पूछा कि "आप वोटरों को किसकी तरफ जाने पर जोर देंगे?" तब टिकैत ने कहा, "हम वोटरों से कुछ नहीं कहेंगे, हम तो कहते आए हैं कि जिसको मर्जी करे, उसको वोट दो। हमारा किसी पार्टी से कोई लेना-देना नहीं है। हम किसानों के लिए लड़ते हैं, किसी पार्टी के लिए नहीं।"

नरेश टिकैत ने इस आंदोलन को 'आत्मसम्मान की लड़ाई' बताया और कहा, "आत्मसम्मान के बिना हम जिंदा नहीं रह सकते।"

हाल ही में कुछ किसानों ने अपनी उगाई फसलों को खुद ही बर्बाद कर दिया। इस पर चिंता व्यक्त करते हुए टिकैत ने कहा, "नुकसान तो हमारा हो रहा है, लेकिन वह भगवान की दी हुई फसल है, हम उसे बच्चे की तरफ से पालते हैं। बहुत निराशा के माहौल में इस तरह का कदम उठाया जाता है। ये एक आत्महत्या जैसा कदम है, जिन किसानों ने ऐसा किया है, हमने उन्हें मना किया है।"

नरेश टिकैत ने आगे कहा, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह, सरकार में इन्हीं दोनों की चल रही है। हम तो यही कहेंगे कि ये किसी अच्छे सलाहकार से कृषि कानूनों पर सलाह लें, उनकी सलाह पर चलें तो बड़ा अच्छा रहेगा।"

हालांकि इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा, "सरकार की तरफ से अगर रक्षामंत्री किसानों से बात करते तो ये मसला सुलझ सकता है, वो अच्छे इंसान हैं, वो रास्ता जरूर निकाल लेंगे।"

सरकार और किसान संगठनों के बीच 11 दौर की वार्ता हो चुकी है, लेकिन अभी तक कोई नतीजा नहीं निकल सका है। बातचीत फिर से शुरू हो, इसके लिए किसान और सरकार दोनों तैयार हैं, लेकिन अभी तक वह मुहूर्त नहीं निकल पाया है।  तीन नए अधिनियमित कृषि कानूनों के खिलाफ किसान पिछले साल 26 नवंबर से ही राष्ट्रीय राजधानी की विभिन्न सीमाओं पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।