उत्सव : कल हमारे घर पधारेंगे प्रथम पूज्य आराध्य देव गणपति, जानिए कौन-कौन से मुहूर्त हैं शुभ

उत्सव : कल हमारे घर पधारेंगे प्रथम पूज्य आराध्य देव गणपति, जानिए कौन-कौन से मुहूर्त हैं शुभ

दो साल तक कोरोना नियंत्रण में रहने के बाद सार्वजनिक रूप से गणेशोत्सव की अनुमति दी गई है

गणपति के आगमन की तैयारियां सभी जगह लगभग पूरी हो गई हैं। प्रथम पूज्य देव, आराध्य देव गणपति की पूजा के साथ ही कल से गणेश महोत्सव शुरू हो जाएगा। ढोल नगाड़ों के साथ नगर परिक्रमा के बाद गणपति बप्पा स्थापित होंगे। दो साल बाद इस महोत्सव को लेकर आयोजकों में भी खासा उत्साह है। घरों में जहां लोग तैयारी में जुटे हैं वहीं शहर के विभिन्न जगहों पर पांडाल सज चुके हैं। गणेश स्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 6:23 से 9:48 बजे तक है।

कोरोना के बाद इस बार सार्वजनिक रूप से गणेशोत्सव की अनुमति

आपको बता दें कि दो साल तक कोरोना नियंत्रण में रहने के बाद सार्वजनिक रूप से गणेशोत्सव की अनुमति दी गई है। जिसके चलते इस बार गणेशोत्सव पर्व को लेकर श्रद्धालुओं में उत्साह का माहौल देखने को मिल रहा है। अहमदाबाद की कई सड़कों, सोसाइटियों, फ्लैटों, घरों, दफ्तरों में गणेश जी की स्थापना की जाएगी। शास्त्रों के अनुसार विशेष रूप से निर्मित मिट्टी के गणपति को बनाने और स्थापित करने में वास्तविक महिमा है और यह सर्वोत्तम फल देता है। इस वर्ष अनंत चतुर्दशी 9 सितंबर को है और उसी दिन अपने ही घर, शहर, कस्बे, गली, हर जगह और अपनी आस्था के अनुसार तीन दिन, पांच दिन, सात दिन या दस दिन तक स्थपित रखने के बाद गणपति महाराज को विसर्जित करेंगे। ज्योतिषाचार्य की मानें तो इस बार की गणेश चतुर्थी बेहद खास है। इस साल करीब-करीब वो सारे योग-संयोग बन रहे हैं, जो गणेश जी के जन्म पर बने थे। गणपति का आगमन चित्रा नक्षत्र, रवि योग और शुक्लइ योग में होगा। गणेश चतुर्थी पर दोपहर के समय चित्रा नक्षत्र में ही पार्वती जी ने मिट्टी के गणेश बनाए थे और उसमें प्राण डाले थे। रवि योग और शुक्लग योग दोनों को काफी शुभ माना गया है।

क्यों मनाते हैं गणेश चतुर्थी

धार्मिक मान्योता है कि गणेश चतुर्थी के दिन ही गणपति जी का जन्मल हुआ था। इस दिन माता पार्वती ने मिट्टी का पुतला बनाकर उनमें प्राण डाले थे। ये गणेश उत्स व 10 दिनों तक चलता है। 10 दिनों तक उत्सहव चलने को लेकर मान्याता है कि भाद्रपद मास के शुक्ल  पक्ष की चतुर्थी के दिन ही वेद व्यांस जी के साथ गणपति ने महाभारत को लिपिबद्ध करने का कार्य शुरू किया था। ये काम दस दिनों तक चला था। लगातार काम करते हुए उनके शरीर पर धूल, मिट्टी की परत जमा हो गई थी। 11वें दिन उन्होंलने नजदीक में मौजूद सरस्वरती नदी में स्नालन किया था। तब से ये त्योमहार दस दिनों तक मनाया जाने लगा। चतुर्थी के दिन गणपति को लाया जाता है और 11वें दिन उनका विसर्जन किया जाता है।