वागड़ में जीवन्त है शैव उपासना की सदियों पुरानी अनूठी परंपरा : पार्थेश्वर महापूजा अनुष्ठान

वागड़ में जीवन्त है शैव उपासना की सदियों पुरानी अनूठी परंपरा : पार्थेश्वर महापूजा अनुष्ठान

शैव, शाक्त और वैष्णव उपासना पद्धतियों के अनूठे संगम वाग्वर अंचल (बांसवाड़ा, डूंगरपुर और समीपवर्ती क्षेत्र) में कई अनूठे अनुष्ठानों की परम्परा में आज भी पार्थेश्वर शिवलिंग पूजन की परिपाटी बरकरार है जिसे श्रावण मास के दौरान् कहीं-कहीं पूरे उत्कर्ष पर देखा जा सकता है।

पार्थेश्वर शिवलिंग पूजन अनुष्ठान पार्थेश्वर चिन्तामणि कहा जाता है


इसी प्राचीन महत्त्व के अनुष्ठान की झलक वागड़ अंचल के कई मन्दिरों, मठों एवं आश्रमों में हर साल देखने को मिलती है। इनमें पूरे श्रावण मास में पार्थेश्वर शिवलिंग पूजन अनुष्ठान की अनोखी पद्धति का दिग्दर्शन होता है। इस अनुष्ठान को मनोकामना पूर्ति करने वाला होने के कारण पार्थेश्वर चिन्तामणि भी कहा जाता है।
इसमें किसी शुद्ध स्थान से रोजाना मिट्टी खोद कर लायी जाती है और कलात्मक ढंग से इसके छोटे-छोटे शिवलिंग बनाने के साथ ही शिव, पार्वती, नन्दी, गणेश आदि की प्रतिमाएं बनायी जाती हैं। रोजाना अलग-अलग आकृतियों में यंत्रनुमा सजाकर रखे जाने वाले इन शिवलिंगों की रूद्रार्चन मंत्रों के साथ विधि-विधान से पूजा की जाती है। दिन भर वैदिक विधि-विधान के साथ पूजन-अर्चन व शैव अनुष्ठानों के बाद आरती के उपरान्त इनका रोजाना ही विधि-विधान से जलाशय में विसर्जन कर दिया जाता है और अगले दिन फिर यही प्रक्रिया अपनायी जाती है।

जलाशयों की मिट्टी से बनाते हैं शिवलिंग


इस अनूठे अनुष्ठान के अन्तर्गत रोजाना पवित्र स्थलों ख़ासकर जलाशयों के किनारे से मिट्टी लायी जाती है और प्रतिदिन मंत्रोच्चार व वैदिक ऋचाओं की अनुगूंज के साथ इसके 11 हजार अर्थात निर्धारित संख्या में शिवलिंग बनाए जाते हैं।
हर रोज इन पार्थिव लिंगों को मनोहारी मण्डल यंत्र के रूप में सजावट की जाती है व मध्य में शिव परिवार की प्रतिमाएं बनाकर प्रतिष्ठित की जाती हैं।  इनमें सूर्य आकृति, नागपाश, त्रिकोण, कच्छपाकृति, सम चर्तुअस्त्र, पन्चकोण, धनुषाकृति आदि का दिग्दर्शन होता है। रोजाना हजारों की संख्या में बनाए जाने वाले शिवलिंगों की मंत्रों के साथ प्राण-प्रतिष्ठा की जाती है और षोड़शोपचार से पूजा के बाद रूद्राष्टाध्यायी पाठ से अभिषेक होता है। दिन भर यह अनुष्ठान चलता रहता है।
शाम को उत्तर पूजन व आरती के साथ ही इसका एक-एक दिन पूरा होता है। आम तौर पर सवा लाख पार्थिव लिंग बनाकर अनुष्ठान होता है। इस क्रम में रोजाना 11 हजार शिवलिंग बनाए जाते हैं।

ये है पुरातन मान्यता


पुरातन काल से मान्यता चली आ रही है कि इस प्रकार पार्थिव (मिट्टी के) लिंगपूजन से शिव प्रसन्न होकर मनोकामना पूरी करते हैं व इससे भगवान शिव की कृपा का शीघ्र अनुभव होता है।


शास्त्रों के अनुसार पार्थेश्वर शिव का पूजन भोग और मोक्ष प्रदाता है। सृजन से लेकर विसर्जन तक के सफर का दिग्दर्शन कराने वाला यह अनुष्ठान अनकहे ही जीवन के यथार्थ और कर्मयोग से आनंद एवं ईश्वर की प्राप्ति का संदेश देता प्रतीत होता है।


इसे हर वर्ण-जाति के स्त्री-पुरुष कर सकते हैं। यह अनुष्ठान वेदोक्त विधि से नदी या तालाब के किनारे, वन में, पर्वत पर, शिवालय अथवा किसी भी पवित्र स्थान पर किए जाने का विधान है। इसमें शिवलिंग निर्माण के लिए मिट्टी किसी शुद्ध स्थान से निकाली हुई होनी चाहिए।


पार्थेश्वर लिंग पूजन विधान के अनुसार ब्राह्मण के लिए श्वेत, क्षत्रिय के लिए लाल, वैश्य के लिए पीली और शूद्र के लिए काली मिट्टी से शिवलिंग बनाने की परंपरा है। विधान के अनुसार मृतिका नहीं मिलने की स्थिति में जो भी शुद्ध मिट्टी उपलब्ध हो, उससे सावधानीपूर्व शिवलिंगों का निर्माण किया जाना चाहिए।


इस विधा के विशेषज्ञों के मुताबिक इस प्रकार के पूजन का उल्लेख द्वादश ज्योतिर्लिंगों की श्रृंखला में अंतिम घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग के प्रादुर्भाव से मिलता है जिसमें घुश्मा नामक ब्राह्मणी ने मिट्टी के शिवलिंग बनाकर अनवरत पूजा-अर्चना कर भगवान शिव को  प्रसन्न किया। ज्योति स्वरूप शिव के प्रकट होने पर शिव से उसने वरदान लिया कि वे वहीं निवास करेंगे। तभी से घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग जग विख्यात हुआ। मृतिका के शिवलिंग बनाने के लिए श्रद्धालुओं में ख़ासी श्रद्धा और उत्साह रहता है। बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक पार्थेश्वर बनाकर भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने का दौर श्रावण मास भर चरम यौवन पर रहता है।


इस समय वागड़ अंचल में विभिन्न स्थानों पर पार्थेश्वर चिन्तामणि अनुष्ठान हो रहे हैं जो कि श्रावण अमावास्या को पूर्ण होंगे। वागड़ अंचल में अमान्त पद्धति प्रचलित है जिसमें श्रावण मास का समापन अमावास्या को होता है।


विभिन्न शिवालयों, आश्रमों और मठों में शास्त्र में निष्णात पंड़ितों के कोमल हाथों से रोजाना निर्मित होने वाले मिट्टी के हजारों शिवलिंग और इनकी अनूठी पूजा पद्धति शिवभक्तों के लिए कौतूहल व श्रद्धा का केन्द्र बनी हुई रहती है और रोजाना बड़ी संख्या में शिवभक्तों का जमघट इनके दर्शन के लिए लगा रहता है।

(डॉ. दीपक आचार्य)
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