सोशल मीडिया की रामायण; ऑनलाईन हजारों दोस्तों से बेहतर है वास्तविक जीवन में खास यार हों! क्या कहते हो....
By Loktej
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युवाओं में बढ़ते डिप्रेशन के रेट के पीछे एक कारण सोशल मीडिया पर इस उम्र के लोगों का अत्यधिक समय बिताना भी वजह मानी जाती है
आज के समय सोशल मीडिया हमारे जीवन का हिस्सा बन चुकी है। हिस्सा क्या कहें, आज के समय तो सोशल मीडिया ही हमारी जिंदगी बन चुकी है। एक समय अपने खाली समय में खुद का मनोरंजन करने के लिए, दूरदराज बैठे या बिछड़े दोस्तों से जुड़े रहने के लिए सोशल मीडिया का अविष्कार किया गया था पर आज लोग अपना अच्छा-खासा समय सोशल मीडिया पर बिताना पसंद करते हैं। सामान्य तौर पर भारतीय दिन के 2।4 घंटे सोशल मीडिया यानि फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यू ट्यूब पर बिताते है। इसमें में चिंताजनक बात ये है देश के युवा यानी 18 से 24 साल के युवक सोशल मीडिया पर अपना बहुत अधिक समय बिता रहे हैं। हमारे युवा किस तरह से फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया साइट्स पर जुड़े हैं इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि फेसबुक पर देश के 97.2 मिलियन और इंस्टाग्राम पर 69 मिलियन वो भारतीय यूजर हैं जो 18 से 14 साल की उम्र के हैं।
सोशल मीडिया के जितने फायदे हैं उससे बहुत ज्यादा नुकसान देखने को मिल रहा है। निरंतर सोशल मीडिया इस्तेमाल करने वालों को कई प्रकार की समस्या से जूझना पड़ रहा हैं जिसमें रिस्की कंटेन्ट, व्यवहार में बदलाव, लुक्स और बॉडी को लेकर गलत अवधारणा, खुद को दूसरों से कम समझने जैसे मानसिक अस्वास्थ्यता शामिल हैं। युवाओं में बढ़ते डिप्रेशन के रेट के पीछे एक कारण सोशल मीडिया पर इस उम्र के लोगों का अत्यधिक समय बिताना भी वजह मानी जाती है। सोशल मीडिया पर एक दिक्कत ये भी है कि जो आपको देखना पसंद है अल्गोरिदम की वजह से उसी तरह की चीजें बार-बार आपके सामने आने लगती हैं और इसका असर दिमाग पर गलत तरह से पड़ने लगता है।
यूनिसेफ के अनुसार भारत में 18 से 24 साल के 7 में से 1 भारतीय डिप्रेशन के शिकार हैं। हमारे देश में डिप्रेशन या किसी भी मेंटल हेल्थ पर बातचीत लोग आसानी से स्वीकार नहीं करते हैं और हालांकि इसके प्रति लोगों को जागरुक करने की लगातार कोशिश की जा रही है। डिप्रेशन से ग्रसित व्यक्ति में आत्म सम्मान की कमी, संवाद में दिक्कत, एकाग्रता के अलावा खुद को नुकसान पहुंचाने के लक्षण भी नजर आते हैं। सोशल मीडिया के कारण युवा अपनी वास्तविक दुनिया से दूर होते जा रहे है। सोशल मीडिया पर सैकड़ों दोस्त रहने के बाद पड़ोस में रहने वाले लोगों को नहीं पहचानते। इसके अलावा लोग सोशल मीडिया पोस्ट पर मिलने वाले लाइक्स को अपने प्रति लोगों की स्वीकृति या मान्यता की तरह से देखते हैं और उसी के आधार पर अपने या दूसरों के लिए इमेज भी बनाते हैं। पिछले कुछ सालों में बॉडी डिस्मॉर्फिया में भी वृद्धि हुई है। बॉडी डिस्मॉर्फिया एक ऐसी मेंटल हेल्थ से जुड़ी स्थिति है जिसमें लोग अपने आप में हमेशा कोई न कोई कमी ढूंढते रहते हैं।
टाइम्स जर्नल के एक शोध में ये बात सामने आ चुकी है कि 32 फीसदी लड़कियों ने ये माना था कि जब उन्हें अपनी बॉडी अच्छी नहीं लग रही होती है, तो उस वक्त इंस्टाग्राम उन्हें और बुरा महसूस कराने लगता है। फेसबुक के भी एक इंटरनल रिसर्च में ये बात सामने आई है कि 43 फीसदी यूजर्स ऐसे पोस्ट शेयर करने के लिए प्रेशर महसूस करते हैं जिसमें वो अच्छे दिख रहे हों।
ऐसे में साइकोलॉजिस्ट कहते है कि सोशल मीडिया पर ज्यादा बने रहने से अच्छा है हम अपनी वास्तविक जिंदगी और उससे जुड़े लोगों पर ध्यान दें। पोस्ट पर लाइक्स पाने से बेहतर दोस्तों के साथ हँसे बोले। दुनिया की मान्यता पाने की जगह हमें खुद को प्यार करने और स्वीकार करने की जरूरत है। हमे ये समझना चाहिए कि हम रियल दुनिया में है और वर्चुअल दुनिया में दिखने वाली हर चीज सच या बिलकुल वैसी नहीं है।
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