टेक्टोनिक प्लेटों के बने नए नक्शे ने बढ़ाई चिंता, यूरोप की ओर खिसक रहा है भारत!

टेक्टोनिक प्लेटों के बने नए नक्शे ने बढ़ाई चिंता, यूरोप की ओर खिसक रहा है भारत!

ऑस्ट्रेलिया के एडिलेड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने तैयार किया टेक्टानिक प्लेटों का नया नक्शा

पृथ्वी की सतह में हो रहे परिवर्तनों का अध्ययन करने के लिए पृथ्वी के वैश्विक भूगर्भीय क्षेत्रों यानी भूमि के हिस्सों और टेक्टोनिक प्लेटों का एक नया नक्शा तैयार किया गया है। यह मानचित्र भूकंप और ज्वालामुखी विस्फोट जैसी प्राकृतिक आपदाओं का अध्ययन कर रहे लोगों के लिए उपयोगी होगा। दुनियाभर में आने वाले भूकंपों के लिए जमीन की सतह के नीचे मौजूद टेक्टोनिक प्लेटों को जिम्मेदार बताया जाता है। ये प्लेटें जब एक दूसरे से टकराती हैं तो इससे भूकंप के झटके महसूस होते हैं। कई बार तो इनके टकराने से सुनामी जैसे हालात भी पैदा हो जाते हैं। अब ऑस्ट्रेलिया के भूवैज्ञानिकों ने धरती पर मौजूद सभी टेक्टोनिक प्लेटों का एक नया नक्शा तैयार किया है। यह अध्ययन ऑस्ट्रेलिया के एडिलेड विश्वविद्यालय में पृथ्वी विज्ञान विभाग के व्याख्याता डॉ डेरिक हेस्ट्रॉक और उनके सहयोगियों द्वारा किया गया था।
इस बारे में डॉ डेरिक ने कहा "हमने प्लेटो के सीमा क्षेत्र और पुराने महाद्वीपीय क्रस्ट के गठन की तुलना की और इसका अध्ययन किया। महाद्वीप एक पहेली की तरह जुड़े हुए हैं। हर बार वे एक पहेली की तरह जुड़ते और टूटते हैं। हमारा अध्ययन आपको यह पता लगाने में मदद करेगा कि हम पुराने टुकड़े की तुलना में एक पुराने टुकड़े को एक नया बनाने के लिए कैसे जोड़ सकते हैं। इस मानचित्र में दो बातें प्रमुख हैं। पहला यह कि नक्शे में भारतीय प्लेट और ऑस्ट्रेलियाई प्लेट के बीच का माइक्रोप्लेट शामिल है। दूसरा यह कि भारत यूरोप की ओर खिसक रहा है।
रिसर्च में बताया गया है कि टेक्टोनिक प्लेट्स की बाउंड्री जोन धरती के क्रस्ट का 16 फीसदी जबकि महाद्वीपों का हिस्सा कवर करती हैं। टीम ने तीन नए भूवैज्ञानिक मॉडल तैयार किए: एक प्लेट मॉडल, एक प्रांत मॉडल और एक ऑरोजेनी मॉडल। ऑरोजेनी मॉडल महाद्वीप पर पहाड़ों के बनने की मैकेनिज्म से संबंधित है। टीम ने बताया कि शोध के दौरान उन्हें 26 ऑरोजेनी का पता चला। इनके कारण ही अलग-अलग महाद्वीपों में पहाड़ों का निर्माण हुआ। इनमें से कुछ तो सुपरकॉन्टिनेंट के निर्माण से भी संबंधित हैं। इनमें से कई प्लेटें सुपरकॉन्टिनेंट बनाने में मदद कर रही हैं। डॉ। डेरिक ने दिखाया कि उसका काम टेक्टोनिक प्लेटों के निर्माण का अध्ययन करना था। उनकी अद्यतन सीमाओं को भी समझें ताकि भूकंप और ज्वालामुखी जैसी प्राकृतिक आपदाओं का आकलन किया जा सके।
डॉ डेरिक ने कहा कि वर्तमान टेक्टोनिक प्लेट मानचित्र स्थलाकृतिक मॉडल और वैश्विक भूकंपीय गतिविधि पर आधारित था। इसे 2003 से अपडेट नहीं किया गया है। हमारे नए नक्शे में कुछ माइक्रोप्लेट भी शामिल हैं। जैसे तस्मानिया के दक्षिण में मैक्वेरी माइक्रोप्लेट और कैप्रिकॉन माइक्रोप्लेट जो भारतीय और ऑस्ट्रेलियाई प्लेटों को अलग करता है। सबसे ज्यादा बदलाव पश्चिम-उत्तरी अमेरिका की प्लेटों में देखने को मिला है। यह पैसिफिक प्लेट से घिरा है, जो सैन एंड्रियास और क्वीन चार्लोट फॉल्ट्स को जोड़ती है। लेकिन अब इन फॉल्ट के बीच 1500 किमी चौड़ी इनर लाइन यानी घाटी मिल गई है। जिससे इन दोनों प्लेटों के बीच की दूरी बढ़ती जा रही है।
उसके बाद से सबसे बड़ा बदलाव मध्य एशिया में हुआ है। नए मॉडल से पता चलता है कि विरूपण क्षेत्र भारत के उत्तर में देखा जा रहा है। क्योंकि भारतीय प्लेट लगातार यूरेशियन प्लेट की ओर खिसक रही है। वैज्ञानिकों ने यह नहीं बताया है कि इसका भारत की भौगोलिक और भूगर्भीय स्थितियों पर क्या प्रभाव पड़ेगा। लेकिन इतना तय है कि भविष्य में भारत का इस पर कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा। अध्ययन हाल ही में अर्थ-साइंस रिव्यू जर्नल में प्रकाशित हुआ था। डॉ. डेरिक ने कहा, "हमारा नक्शा पिछले दो मिलियन वर्षों में पृथ्वी पर आए 90 प्रतिशत भूकंपों और 80 प्रतिशत ज्वालामुखी विस्फोटों की पूरी तस्वीर देता है।" जबकि मौजूदा मॉडल सिर्फ 65 फीसदी भूकंप देता है। इस मानचित्र की सहायता से लोग प्राकृतिक आपदाओं की गणना कर सकते हैं।
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