इस बार वैदिक होली जलाओ!

इस बार वैदिक होली जलाओ!

वैदिक होली के कारण पर्यावरण में बनी रहती है शुद्धता

कुछ ही दिनों में होली का त्याहार आने वाला है। इस निमित्त पर हर गली, चौराहे पर होलिका दहन का कार्यक्रम रखा जाएगा। पिछले कई सालों से विभिन्न समुदायों द्वारा लोगों को वैदिक होली जलाने की मुहिम चलाई जा रही है। इस बार विभिन्न साधु संतों द्वारा भी लोगों को वैदिक होली जलाने की ही गुजारिश की गई है। हिन्दू मिलन मंदिर के महंत स्वामी अंबरीषानंद, अटल आश्रम-पाल के बटुकगिरी बापू, कंठेरिया हनुमान मंदिर के प्रभुगिरी बापू तथा अमरोली के सीताराम बापू सहित कई संतो तथा महंतो ने गौवंश की देखभाल के लिए वैदिक होली जलाने का लोगों को अनुरोध किया है।
उल्लेखनीय है कि 17 मार्च को सूरत सहित गुजरात के विभिन्न स्थानों पर होलिकादहन होगा। जिसमें पिछले कई सालों से लोकजागृति के उपलक्ष में लोगों को वैदिक होलिका जलाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। इस बारे में हिन्दू मिलन मंदिर के स्वामी अंबरीषानंद कहते है कि होली हिन्दू संस्कृति का एक महत्व का त्यौहार है। भक्त प्रहलाद के साथ जुड़े इस त्यौहार के साथ लोगों की भी आस्था जुड़ी हुई है। हालांकि होलिकादहन के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले लकड़ी के कारण पेड़ों का नाश होता है। जिसके चलते वैदिक होली मनाने का ही लक्ष्य रखने से पेड़ों को भी बचाया जा सकेगा।
अटलआश्रम के बटुकगिरी बापू ने इस बारे में बताया कि गाय के गोबर से होलिका जलाने से पर्यावरण की रक्षा होगी। बालकों तथा भविष्य में आने वाली पीढ़ियों में संस्कार का सिंचन होगा। लोगों के अंदर से बदला लेने की भावना दूर हो जाये, यहीं होलिकादहन का मुख्य हेतु है। अमरोली स्थित लंकाविजय हनुमान मंदिर के पुजारी सीताराम बापू का कहना है कि वैदिक होली पर्यावरण बचाने का एक सटीक माध्यम है। गौमाता के गोबर से होलिकादहन के कारण वातावरण कि शुद्धता और पवित्रता भी बनी रहेगी। लकड़ियों का इस्तेमाल होने से पेड़ों को काटना भी बंद हो जाएगा। वैदिक होलिका दहन से लोगों को पर्यावरण और मनुष्य की तंदूरस्ती की भी रक्षा होगी और साथ ही युवा पेढ़ी को गौमाता की रक्षा का संदेश भी मिलेगा।
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