इतिहास: जानिए कौन है कैप्टन विक्रम बत्रा, जिसने अकेले ही पाकिस्तान को घुटने पर ला दिया था, दुश्मन भी जिसे कहता था “शेर”

इतिहास: जानिए कौन है कैप्टन विक्रम बत्रा, जिसने अकेले ही पाकिस्तान को घुटने पर ला दिया था, दुश्मन भी जिसे कहता था “शेर”

“या तो तिरंगा लहराकर आऊंगा, या फिर तिरंगा में लिपटा हुआ आऊंगा, पर आऊंगा जरुर!” और “दिल मांगे मोर” जैसे डायलॉगों से आज भी लोगों के दिलों में जिन्दा है कैप्टन विक्रम बत्रा

सिद्धार्थ मल्होत्रा और कियारा आडवाणी की फिल्म 'शेर शाह' आज यानी 12 अगस्त को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर रिलीज हो गई है। यह फिल्म कैप्टन विक्रम बत्रा के जीवन पर आधारित है। फिल्म में सिद्धार्थ मल्होत्रा ने कैप्टन विक्रम बत्रा का किरदार निभाया है। कारगिल युद्ध में विक्रम बत्रा ने सबसे महत्वपूर्ण 5 पॉइंट जीतने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। विक्रम बत्रा महज 24 साल की उम्र में अपने साथी को बचाने की कोशिश में शहीद हो गए थे।
कौन थे विक्रम बत्रा?
कैप्टन विक्रम बत्रा का जन्म 9 सितंबर 1974 को हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में हुआ था। अपने पिता से देशभक्ति की बातें सुनकर विक्रम बत्रा में बचपन से ही देशभक्ति की भावना आ गई थी। अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद, विक्रम बत्रा चंडीगढ़ चले गए और यहां के डीएवी कॉलेज से विज्ञान में स्नातक किया। इस दौरान उन्हें एनसीसी (नेशनल कैडेट कोर) के सर्वश्रेष्ठ कैडेट के रूप में भी चुना गया और उन्होंने गणतंत्र परेड में भी भाग लिया। इसके साथ ही उन्होंने सेना में शामिल होने का फैसला किया। विज्ञान से स्नातक करने के बाद, विक्रम बत्रा को सीडीएस (संयुक्त रक्षा सेवा) के माध्यम से सेना के लिए चुना गया था। जुलाई 1996 में, उन्हें देहरादून के भारतीय सैन्य अकादमी में भर्ती कराया गया। दिसंबर 1997 में अपना प्रशिक्षण पूरा करने के बाद उन्हें 6 दिसंबर, 1997 को जम्मू के सोपर में सेना की 13 वीं जम्मू और कश्मीर राइफल्स में लेफ्टिनेंट के रूप में तैनात किया गया था। जून 1999 में, विक्रम बत्रा की टुकड़ी को कारगिल युद्ध के लिए भेजा गया था। हंप और रॉकी नैब जीतने के बाद, विक्रम को लेफ्टिनेंट से कप्तान के रूप में पदोन्नत किया गया था। कैप्टन विक्रम बत्रा को तब श्रीनगर-लेह मार्ग पर सबसे महत्वपूर्ण चौकी 5140 को पाकिस्तानी सेना के नियंत्रण से मुक्त कराने का काम सौंपा गया था।
इसके बाद कैप्टन बत्रा ने अपनी टुकड़ी से दुश्मन पर सीधा हमला किया। उसने मोर्चा संभाला और बहादुरी से पाकिस्तानी घुसपैठियों की धूल झाड़ दी। 20 जून 1999 को सुबह तीन बजे कैप्टन बत्रा ने इस चौकी पर पाकिस्तान को हराकर भारतीय तिरंगा फहराया। प्वाइंट 5140 युद्ध के रास्ते में एक बहुत ही महत्वपूर्ण रणनीतिक बिंदु था, क्योंकि यह ऊंचाई और सीधी चढ़ाई पर आया था। वहां छिपे पाकिस्तानी घुसपैठिए ऊंचाई से भारतीय सैनिकों पर गोलियां और पत्थर फेंक रहे थे। इस चौकी को जीतने के बाद कप्तान बत्रा दूसरे अहम पॉइंट 4875 जीतने वाले थे। ये बंकर समुद्र तल से 17,000 फीट की ऊंचाई पर था। कैप्टन विक्रम बत्रा ने 20 जून, 1999 को सुबह 3:30 बजे प्वाइंट 5140 पर भारतीय ध्वज फहराने के बाद एक रेडियो संदेश में कहा "ये दिल मांगे मोर।" यह पंचलाइन पूरे देश के साथ-साथ भारतीय सेना में लोकप्रिय हो गई। 7 जुलाई 1999 को मिशन पूरा होने वाला था। इस समय युद्ध के दौरान हुए एक विस्फोट में लेफ्टिनेंट नवीन बुरी तरह घायल हो गए थे। अपने साथी अधिकारी का बचाव करते हुए कप्तान ने कहा, "यहाँ से चले जाओ, तुम्हारी एक पत्नी और बच्चे हैं।" 
कैप्टन बत्रा लेफ्टिनेंट नवीन को बचाने के लिए वापस जा रहे थे, तभी उनके सीने में दुश्मन की गोली लग गई और 'जय माता दी' कहते हुए वो स्वर्ग को सिधार गये। कैप्टन विक्रम बत्रा का साहसिक कार्य पाकिस्तानी सेना को बिखरने के लिए काफी था। कैप्टन बत्रा की डेल्टा कंपनी ने बंकर 4750 और 4875 पर दुश्मन की चौकियों को नष्ट कर दिया।
आपको बता दें कि विक्रम बत्रा के साहसिक कार्य से पाकिस्तानी सेना भी वाकिफ थी। पाकिस्तानी सेना ने भारत के इस पोते के लिए कोडनेम 'शेर शाह' का भी इस्तेमाल किया। अपने बेटे के बारे में कैप्टन के पिता जीएल बत्रा ने कहा कि कमांडिंग ऑफिसर लेफ्टिनेंट कर्नल वाईके जोशी ने उनके बेटे का नाम शेर शाह रखा। शेरशाह के अलावा उन्हें 'कारगिल का शेर' भी कहा जाता था। कैप्टन बत्रा हमेशा कहते थे कि मैं ऊंचाई पर स्थित पोस्ट पर तिरंगा लहराकर आऊंगा या तिरंगे में लपेटकर आऊंगा, लेकिन आऊंगा जरुर।” 15 अगस्त 1999 को, विक्रम बत्रा को भारत सरकार द्वारा मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
कैप्टन बत्रा के जुड़वां भाई विशाल बत्रा ने कहा कि उन्हें अपने भाई के बलिदान की खबर तब मिली जब वह दिल्ली में थे। उनकी बड़ी बहन हिमाचल प्रदेश के मंडी में थीं। वह गर्भावस्था के पांचवें महीने में थी। दूसरी बहन दिल्ली में थी और आठ महीने की गर्भवती थी। जब बड़ी बहन को अपने भाई की शहादत की खबर मिली तो उसे गहरा धक्का लगा और इसी वजह से उसका गर्भपात हो गया। दोनों बहनें छोटे भाई को विदा करने पालमपुर आई थीं। परिवार विक्रम-विशाल लव-कुश को बुलाता था। विशाल बत्रा ने एक मीडिया इंटरव्यू में कहा कि विक्रम मार्च 1999 में कमांडो की ट्रेनिंग पूरी करके घर आया था। वह दिल्ली में एक निजी कंपनी में कार्यरत था। वह विक्रम को लेने दिल्ली के निजामुद्दीन स्टेशन गया और यहां उनके कमांडो साथियों से मिला। अपने भाई के मुंडा हुआ सिर और दुबला पतला शरीर देखकर स्वास्थ्य के बारे में पूछा। जिस पर विक्रम ने जवाब दिया कि प्रशिक्षण के दौरान वो एक मर्द बन गए है। 16 जून को कैप्टन ने द्रास सेक्टर के अपने भाई विशाल को पत्र लिखकर कहा, ''प्रिय कुशु, मां-बाप का ख्याल रखना... यहां कुछ भी हो सकता है...!'' 
आज डिजिटल प्लेटफॉर्म पर रिलीज फिल्म 'शेर शाह' में सिद्धार्थ मलोहत्रा ने कप्तान विक्रम बत्रा का रोल निभाया है जबकि अभिषेक बच्चन ने 2003 में आई 'एलओसी कारगिल' में कैप्टन विक्रम बत्रा की भूमिका निभाई थी।