कहानी बनासकांठा के एक ऐसे गैर-सैनिक शख़्स की जिसने अंतिम समय तक अपनी सरजमीं की सेवा की

कहानी बनासकांठा के एक ऐसे गैर-सैनिक शख़्स की जिसने अंतिम समय तक अपनी सरजमीं की सेवा की

भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान एक नहीं बल्कि दो बार भारतीय सेना की मदद करके पाकिस्तान पर दिलाई जीत

स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव के दौरान 1971 के भारत विजय के इतिहास को दर्शाने वाली अजय देवगन की फिल्म 'भुज: प्राइड ऑफ इंडिया' 13 अगस्त को रिलीज होने जा रही है। गुजरात के बनासकांठा के सीमावर्ती इलाकों में आज भी 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान की लड़ाई के समय सुई गांव के एक योद्धा रणछोड़दास रबारी उर्फ पागी को युद्धों में सेना की मदद करने और पाकिस्तान पर कब्जा करने में उनकी भूमिका के लिए याद किया जाता है। है। भुज: प्राइड ऑफ इंडिया, 1971 के युद्ध की घटनाओं को दर्शाती एक हिंदी फिल्म, बनास के लोगों के लिए गर्व का स्रोत है।
हम बात कर रहे हैं एक ऐसे हीरो की जिसने हमारे दुश्मन देश पाकिस्तान के खिलाफ एक नहीं बल्कि दो बार जंग जीतने में अहम भूमिका निभाई। वो हीरो हैं रणछोड़भाई रबारी उर्फ पागी। रणछोड़ रबारी, उर्फ़ पगिना ने कई बार भारतीय सेना की मदद की। युद्ध के दौरान जब सेना के पास गोला-बारूद ख़त्म हो गया था तो रणछोड़ रबारी ने एक ऊंट पर गोला-बारूद लाकर सेना की मदद की। पागी यानी 'मार्गदर्शक', वो व्यक्ति जो रेगिस्तान में रास्ता दिखाए। 'रणछोड़दास रबारी' को जनरल सैम मानिक शॉ इसी नाम से बुलाते थे। गुजरात के बनासकांठा ज़िले के पाकिस्तान सीमा से सटे गाँव पेथापुर गथड़ों के थे रणछोड़दास। भेड़, बकरी व ऊँट पालन का काम करते थे। जीवन में बदलाव तब आया जब उन्हें 58 वर्ष की आयु में बनासकांठा के पुलिस अधीक्षक वनराज सिंह झाला ने उन्हें पुलिस के मार्गदर्शक के रूप में रख लिया। हुनर इतना कि ऊँट के पैरों के निशान देखकर बता देते थे कि उस पर कितने आदमी सवार हैं। इन्सानी पैरों के निशान देखकर वज़न से लेकर उम्र तक का अन्दाज़ा लगा लेते थे। कितनी देर पहले का निशान है तथा कितनी दूर तक गया होगा सब एकदम सटीक आँकलन जैसे कोई कम्प्यूटर गणना कर रहा हो।
उन्होंने गांव में चौकीदार के रूप में अपना काम शुरू किया। चूँकि उनके पास उस समय पैरों के निशान पहचानने की अद्भुत कला थी, इसलिए उन्होंने यहाँ कई चोरी को सुलझाया। इसके बाद 1962 में, उन्हें पुलिस विभाग में नियुक्त किया गया था। भारतीय सेना को भी उनकी कला के बारे में पता चला। उस समय 1965 के युद्ध में भी जब पाकिस्तानी सेना विघाकोट आई थी तो रणछोड़ पागी ने मरुभूमि में भूली हुई सेना की बहुत मदद की और पाकिस्तानी सेना में कितने लोग हैं और वे कहां छिपे हैं, इसकी भी पूरी जानकारी दी। .
इसके अलावा 1971 के युद्ध के दौरान, भारतीय सैनिकों ने भारतीय सेना को समय पर ऊंटों द्वारा गोला-बारूद पहुंचाकर धोरा और भलवा स्टेशनों पर कब्जा कर लिया। भारतीय सेना ने अंततः 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान पर विजय प्राप्त की। पाकिस्तान में तीन पुलिसकर्मियों को मार कर बैरक में लौटने के बाद पाकिस्तान को बार-बार धूल चटाने में माहिर रणछोड़ रबारी ने रु. पचास हजार के इनाम की भी घोषणा की गई। इस प्रकार, सुइगाम पुलिस स्टेशन को जंबाज रणछोड़ रबारी के रूप में  एक मुखबिर, एक पथप्रदर्शक, रेगिस्तान का एक जमींदार, चोरों और घुसपैठियों के लिए संकट और सीमा पार पाकिस्तानियों की आवाजाही की सटीक जानकारी देने वाला विश्वसनीय सूत्र मिल गया था।
रणछोड़ पागी के पोते विष्णु रबारी ने कहा कि पुलिस अक्सर दादा रणछोड़भाई सावाभाई रबारी के आदमी, जानवरों और पक्षियों के कदमों की पहचान करने में उनकी कुशलता के कारण उनसे मदद मांगते थे। 1962 में, डीवाईएसपी वनराज जाला साहब ने पाकिस्तान के एक निजी काम में रणछोड़भाई की मदद लेनी पड़ी। वहीं पुलिस को रेगिस्तान में होने वाली घटनाओं को समझने के लिए पागी की बहुत जरूरत थी। 1965 युद्ध की आरम्भ में पाकिस्तान सेना ने भारत के गुजरात में कच्छ सीमा स्थित विधकोट पर कब्ज़ा कर लिया, इस मुठभेड़ में लगभग 100 भारतीय सैनिक हत हो गये थे तथा भारतीय सेना की एक 10000 सैनिकोंवाली टुकड़ी को तीन दिन में छारकोट पहुँचना आवश्यक था। तब आवश्यकता पड़ी थी पहली बार रणछोडदास पागी की! रेगिस्तानी रास्तों पर अपनी पकड़ की बदौलत उन्होंने सेना को तय समय से 12 घण्टे पहले मञ्ज़िल तक पहुँचा दिया था। सेना के मार्गदर्शन के लिए उन्हें सैम साहब ने खुद चुना था तथा सेना में एक विशेष पद सृजित किया गया था 'पागी' अर्थात पग अथवा पैरों का जानकार। भारतीय सीमा में छिपे 1200 पाकिस्तानी सैनिकों की लोकेशन तथा अनुमानित संख्या केवल उनके पदचिह्नों से पता कर भारतीय सेना को बता दी थी, तथा इतना काफ़ी था भारतीय सेना के लिए वो मोर्चा जीतने के लिए।

1971 युद्ध में सेना के मार्गदर्शन के साथ-साथ अग्रिम मोर्चे तक गोला-बारूद पहुँचवाना भी पागी के काम का हिस्सा था। पाकिस्तान के पालीनगर शहर पर जो भारतीय तिरंगा फहरा था उस जीत में पागी की भूमिका अहम थी। सैम साब ने स्वयं ₹300 का नक़द पुरस्कार अपनी जेब से दिया था। 1971 के युद्ध में रणछोड़भाई पागी बोरियाबेट से ऊंट पर सवार होकर पाकिस्तान गए और धोरा इलाके में पाकिस्तानी सेना के छिपे होने की जानकारी भारतीय सेना को दी। इसलिए भारतीय सैनिकों ने धोरा पर चढ़ाई की और हमला किया। भारतीय सैनिकों के काफिले के सामने दोपहर के तुरंत बाद बमवर्षक मारा गया। ताकि भारतीय सेना की 50 किमी. एक अन्य दूर के शिविर से, रणछोड़ पागी एक ऊंट पर गोला-बारूद लाकर सेना को सौंप दिया। जब रणछोड़भाई समय पर गोला-बारूद पहुंचा रहे थे, भारतीय वायु सेना के लड़ाकू विमानों ने धोरा और भलवा स्टेशनों पर कब्जा कर लिया। हालांकि, ऊंट को समय पर गोला बारूद पहुंचाकर भारत-पाकिस्तान दोनों युद्धों में भारतीय सेना की मदद के दौरान रणछोड़भाई राबारी खुद घायल हो गए थे। 
27 जून 2008 को सैम मानिक शॉ की मृत्यु हुई तथा 2009 में पागी ने भी सेना से 'स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति' ले ली। तब पागी की उम्र 108 वर्ष थी ! जी हाँ, आपने सही पढ़ा... 108 वर्ष की उम्र में 'स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति'! सन् 2013 में 112 वर्ष की आयु में पागी का निधन हो गया।
रणछोड़भाई के 31 साल 2 महीने और 26 दिनों के सफल प्रदर्शन की मान्यता में, भारतीय सेना द्वारा तीन पदक प्रदान किए गए, जिनमें संग्राम सेवा पदक, मेरिटोरियम सेवा के लिए पुलिस पदक भारतीय पुलिस पदक और ग्रीष्मकालीन सेवा स्टार शामिल हैं।  इसके अलावा बी.एस.एफ. स्तंभ संख्या 990 पर रणछोड़ दास बी.ओ.पी. पूरी चौकी को खड़ा कर दिया गया है, वहीं उनकी प्रतिमा भी स्थापित कर दी गई है। रणछोड़भाई रबारी का 18 जनवरी 2013 को निधन हो गया। उनकी दो अंतिम इच्छाएं पूरी हुईं। उनकी इच्छा थी कि उनके शव के सिर पर पगड़ी रखी जाए और दाह संस्कार केवल खेत में ही किया जाए। दोनों की इच्छा के अनुसार गार्ड ऑफ ऑनर देकर अंतिम संस्कार किया गया।
युवा इतिहासकार प्रो. प्रकाश सुथार ने कहा कि इतिहास को देखने से ऐसा लगता है कि भारत-पाकिस्तान युद्ध 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान द्वारा भारत के विभिन्न शहरों पर हवाई हमले शुरू करने के बाद शुरू हुआ और केवल 13 दिनों तक चला। 16 दिसंबर को भारत की जीत हो गई। 1965 और 1971 के दोनों युद्धों में अहम भूमिका निभाने वाले सुई और बनासरत्न के सीमावर्ती गांव के योद्धा रणशोधभाई पागी का अहम योगदान रहा है।