अति सर्वत्र वर्जयेत : 74 प्रतिशत किशोर और युवा हैं मोबाइल से जुड़ी इस गंभीर बीमारी से परेशान

अति सर्वत्र वर्जयेत : 74 प्रतिशत किशोर और युवा हैं मोबाइल से जुड़ी इस गंभीर बीमारी से परेशान

सौराष्ट्र विश्वविद्यालय के संशोधन में सामने आई बात

आजकल हर किसी के लिए फोन उनके जीवन का एक अभिन्न अंग बन चुका है। फोन व्यक्ति का काम काफी आसान बना देता है। ऐसा लगता है जानो मोबाइल व्यक्ति का ही एक अभिन्न अंग बन गया हो। आजकल कोई भी व्यक्ति बिना मोबाइल के नहीं रह पाता है। मोबाइल हाथ में ना होने पर उसे एक बैचेनी सी होने लगती है। मनोविज्ञान की भाषा में इसे नोमोफोबिया के नाम से पहचाना जाता है। सौराष्ट्र विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान भवन के छात्र अमी पुरोहित और डॉ धारा दोशी के अनुसार, आज ज्यादातर लोग खास कर किशोर और युवा वर्ग के लोग नोमोफोबिया से पीड़ित हैं। 
सौराष्ट्र विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान भवन के छात्रों द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में 74 प्रतिशत किशोरों और युवाओं ने कहा, "हम मोबाइल के बिना बेचैन महसूस करते हैं। वहीं 27% बुजुर्गों ने भी मोबाइल के बिना बेचैनी महसूस होने की बात कबूल की। 55 साल से ऊपर के 18% लोगों ने कहा कि वह भी मोबाइल के बिना बेचैनी महसूस करते है। सर्वे में 89 फीसदी युवाओं ने यह भी कहा कि सुबह उठते ही उनका सबसे पहला काम मोबाइल के जरिए सोशल मीडिया चेक करना है। बुजुर्गों में यह प्रतिशत 36 प्रतिशत उयर 55 साल से अधिक उम्र के लोगों में यह प्रमाण 13 प्रतिशत है। 
विज्ञान और टेक्नोलोजी की दुनिया में आज दुनिया बहुत आगे निकल चुकी है। समय-समय पर बदलते तकनीक के कारण लोगों के जीवन में बदलाव आते रहता है।  पहले व्यक्ति के पास स्मार्टफोन नहीं था, उनके पास कीपैड वाले साधारण फोन थे। जब तक व्यक्ति के पास ये साधारण फोन थे, वे मोबाइल का ज्यादा इस्तेमाल नहीं करते थे, लेकिन स्मार्टफोन के लॉन्च के होने के बाद से ही मोबाइल के लिए लोगों की दीवानगी बढ़ गई है। अधिकतर युवाओं के हाथ में हर समय स्मार्टफोन होता है। कुछ लोग तो स्मार्टफोन का इस्तेमाल करके दिन-रात गेम भी खेलते हैं। 
मोबाइल की मदद से कोई भी व्यक्ति अपने मात्र के स्पर्श से कही की भी टिकट बुक कर सकता है, अपनी पसंदीदा होटल में से खाना मांगा सकता है। घर बैठे-बैठे ही लाखों का व्यवहार कर सकता है। एक कॉल के माध्यम से अपनी सारी जरूरतों को पूरा कर सकता है। हालांकि कहते है ना की किसी भी चीज की अधिकता खराब होती है। मोबाइल का यह अधिक इस्तेमाल मनुष्य को काफी ज्यादा नुकसान पहुंचाता है। जब कोई व्यक्ति किसी चीज का अति प्रयोग करता है तो वह उसका आदी हो जाता है। तब व्यक्ति मानसिक रूप से बीमार हो जाता है। 
मोबाइल के अधिक इस्तेमाल से भी ऐसी ही समस्या सामने आ सकती है। जैसा की हमने देखा की कई लोग बिना मोबाइल के रह ही नहीं पाते है। ऐसे नोमोफोबिया से पीड़ित व्यक्ति के पास यदि फोन ना हो तो वह डर से पागल हो जाता है। कई बार हमें देखा है की बच्चों के घर होने पर माता-पिता उसे शांत रखने के लिए उसके हाथ में मोबाइल थमा देती है और जब उसे उसकी आदत हो जाती है तो उससे मोबाइल वापिस लेने पर वह चिढ़ने लगता है। बता दे की अधिक मोबाइल के इस्तेमाल से व्यक्ति की आँख सूखने लगती है, आंखो में खिंचाव का अनुभव होता है। आंखे सिकुड़ने भी लगती है। 
नोमोफोबिया से पीड़ित व्यक्ति व्यक्ति को फोन में घंटी बजने का भ्रम व्यक्ति को होता है और फिर वह फोन चेक करता है। साथ ही व्यक्ति यह भी जांच करता रहता कि रात को सोने के बाद भी फोन उसके बगल में पड़ा है या नहीं। अगर गलती से फोन किसी दूसरे व्यक्ति को छू जाता है, तो वह व्यक्ति क्रोधित हो जाता है। नोमोफोबिया से बचने के लिए लंबे समय तक फोन से दूर रहना चाहिए। परिवार या किसी अन्य बड़े से बातचीत में समय व्यतीत करना चाहिए। मन के विचारों को नियंत्रित करने का प्रयास करना चाहिए। छोटे बच्चों के साथ समय बिताएं या टहलने जाएं। इसके अलावा, अधिक पढ़ना चाहिए।
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