पुष्पा और आरआरआर जैसी फिल्मों से बॉलीवुड के छक्के छुड़ा देने वाली तेलुगू फिल्म इंडस्ट्री खुद के बड़े झमेले में फंस गई है। इसी कारण वहां के फिल्म निर्माता संघ ने 1 अगस्त से सभी फिल्मों की शूटिंग को रोकने का फैसला किया गया है।
निर्माताओं के अनुसार, पुष्पा और आरआरआर जैसी चुनींदा फिल्मों को छोड़कर अधिकांश फिल्मों को पिछले कुछ समय से भारी नुकसान हुआ है। फिर भी, सितारे उच्च कीमतों की मांग कर रहे हैं। संघ का मानना है कि स्टार्स को समय की मांग को देखते हुए अपनी भारी भरकम फीस कम करनी चाहिए। वहीं सिनेमाघरों में एक औसत फिल्म की टिकट की कीमत 100 रुपये से घटाकर 70 रुपये करने का प्रस्ताव है। मल्टीप्लेक्स की अधिकतम कीमत 150 रुपये से घटाकर 120 रुपये करने का प्रस्ताव है।
गौरतलब है कि साउथ सिनेमाज में टिकट की कीमत थिएटर नहीं बल्कि सरकार तय करती है। लेकिन ज्यादातर फिल्मों के लिए सरकार लगभग एक समान कीमत रखती है। प्रोड्यूसर्स का कहना है कि असल में फिल्म के बजट के हिसाब से अलग-अलग प्राइस रेंज होनी चाहिए। गौरतलब है कि जब आरआरआर रिलीज होने वाली थी तो इसकी कीमतों को थोड़ा ज्यादा रखने के लिए मेकर्स को हाथापाई करनी पड़ी थी।
निर्माताओं का यह भी कहना है कि मल्टीप्लेक्स एसोसिएशन ने कोविड के दौरान फिल्म रिलीज और ओटीटी रिलीज के बीच चार सप्ताह का अंतर रखने पर सहमति व्यक्त की थी, लेकिन अब इस अंतर को फिर से घटाकर आठ सप्ताह कर दिया गया है। सभी फिल्मों पर एक ही नियम लागू करना भी गलत है। छोटे बजट की फिल्म के लिए इस गैप को फिर से घटाकर चार हफ्ते कर देना चाहिए। प्रोड्यूसर्स गिल्ड ने तेलुगु सिनेमा की पूरी व्यवस्था में कुछ स्थायी बदलाव तय होने तक शूटिंग नहीं करने की अपील की है।
इस फैसले से पूरे दक्षिण भारत के बाजार और पूरे भारतीय बॉक्स ऑफिस पर असर पड़ सकता है क्योंकि देश में क्षेत्रीय फिल्मों के बॉक्स ऑफिस राजस्व का एक तिहाई तेलुगू सिनेमा अकेले है। अखिल भारतीय संग्रह के रूप में देखा जाए तो भी तेलुगु फिल्मों की हिस्सेदारी 12 से 15 प्रतिशत है। नए वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में भारतीय बॉक्स ऑफिस पर कुल कमाई का 55 प्रतिशत अकेले मूल तेलुगु फिल्मों ने अर्जित किया है।