सूरत : ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने भगवान गणेश व उनकी दोनों पत्नियां रिद्धि सिद्धि पर पुष्प वर्षा कर दिया आशीर्वाद

सूरत :  ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने भगवान गणेश व उनकी दोनों पत्नियां रिद्धि सिद्धि पर पुष्प वर्षा कर दिया आशीर्वाद

श्री आदर्श रामलीला ट्रस्ट द्वारा नारद मोह की मंचन के साथ रामलीला का आगाज

श्री आदर्श रामलीला ट्रस्ट सूरत के तत्वधान में वृंदावन की श्रीहित राधावल्लभ रासलीला मंडली के कलाकार रासाचार्य स्वामी त्रिलोकचंद शर्मा के सानिध्य में वेसू स्थित रामलीला मैदान में प्रथम दिन रामलीला का मंचन किया गया। सर्वप्रथम  लीला मंचन के मुख्य अतिथि  स्वामी त्रिलोकचंद शर्मा  द्वारा दीप प्रज्वलन कर आरती पूजन, गणेश वंदना व लक्ष्मी नारायण के पूजन के पश्चात कार्यक्रम की शुरुआत की गई।
 ट्रस्ट  के अध्यक्ष बाबूलाल मित्तल, मंत्री अनिल अग्रवाल एवं अन्य पदाधिकारियों ने अतिथियों का पंचांग,पुष्पहार एवं पटका पहना कर सम्मान किया। मुख्य स्टेज से 15 फीट की ऊंचाई पर प्रभु ब्रह्मा, विष्णु, महेश जी ने बैठकर स्टेज पर विराजमान भगवान श्री गणेश व उनकी दोनों पत्नियां रिद्धि सिद्धि पर फूल बरसा कर आशीर्वाद दिया। यह दृश्य बहुत ही मनमोहक था।
 

नारद मोह की लीला का मंचन किया गया


वृंदावन की श्रीहित राधावल्लभ रासलीला मंडली के  प्रशिक्षित कलाकारों और आर्टिस्ट ने आधुनिक लाइट और साउंड के माध्यम से अपनी कला का जादू बिखेरा।  नारद मोह की लीला का मंचन करते हुए सर्वप्रथम दर्शाया गया कि नारदजी हिमालय की वादियों में तपस्या के लिए निकलते हैं। घोर तपस्या करते देख देवताओं के राजा इंद्र को डर हो जाता है कि कहीं नारदजी उनका राज्य ना हड़पना चाह रहे हैं। इसी डर के चलते नारदजी की तपस्या को भंग करने के उद्देश्य से देवताओं के राजा इंद्र तीन बाण वाले कामदेव को भेजते हैं। कामदेव अपने प्रयास में असफल रहते हैं। दर्शाया गया कि नारदजी तपस्या पूर्ण कर शंकर भगवान के पास आते हैं और उन्हें कामदेव के ऊपर अपनी विजय हासिल करने का वर्णन करते हैं। शंकर भगवान उनका वर्णन सुन नारद जी को समझाते हैं कि उनकी भाषा में अहम का प्रयोग हो रहा है उनमें अभिमान के अंकुर फूटने लगे हैं उन्हें समझाते हैं कि इस भाषा का प्रयोग विष्णु भगवान के पास जाकर ना करें। 
रामलीला स्थल पर ट्रस्ट के पदाधिकारी एवं अन्य महानुभाव


नारद जी का अहंकार खत्म करने को भगवान विष्णु ने एक नगर बसाकर राजा की पुत्री के विवाह के लिए स्वयंवर की रचना की


नारद भगवान उनकी अनसुनी कर विष्णुजी के पास पहुंचते हैं और उन्हें भी अपने अहंकार की भाषा में कामदेव के ऊपर विजय का वर्णन करते हैं। भगवान विष्णु उन्हें अनसुना करते हैं परंतु बाद में वह नारद को प्रेम भी करते थे और उनके अभिमान के अंकुर को फूटने नहीं देना चाहते थे।  नारद जी का अहंकार खत्म करने को भगवान विष्णु ने एक नगर बसाकर राजा की पुत्री के विवाह के लिए स्वयंवर की रचना की। नारद जी वहां पहुंच कन्या के रूप को देखकर मोहित हो जाते हैं और भगवान का स्मरण करते हुए अपने रूप को सुंदर बनाने की मांग करते हैं। स्वयंवर में कन्या वहां मौजूद भगवान के गले में माला डाल देती है, जिसे देख नारदजी गुस्से में आ जाते हैं।   
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