सूरत : सरकार ने पेसा एक्ट में ग्राम सभा के अधिकार हटाकर आदिवासियों के साथ घोर अन्याय किया : कांग्रेस का आरोप

सूरत : सरकार ने पेसा एक्ट में ग्राम सभा के अधिकार हटाकर आदिवासियों के साथ घोर अन्याय किया : कांग्रेस का आरोप

कांग्रेस नेता तुषार चौधरी ने कहा आदिवासियों में दिख रही है चिंता, जनजातियों को बार-बार गुमराह किया

सरकार झूठे वादे कर रही है जो भविष्य में आदिवासियों के लिए बहुत अच्छा होगा: तुषार चौधरी
पेसा अधिनियम 2017 में अधिनियमित किया गया था। ग्राम सभा को राज्य सरकार का अधिकार प्राप्त था। ऐसा लगता है कि इसे इससे हटा दिया गया है। कांग्रेस नेता तुषार चौधरी ने कहा कि ग्राम सभा की पूर्व स्वीकृति के बिना कोई भी सरकारी परियोजना स्वीकृत नहीं की जाती है। भूमि अधिग्रहण या अन्य मामलों की स्वीकृति के लिए ग्राम सभा का अनुमोदन आवश्यक है। गुजरात में पेसा अधिनियम में ग्राम सभा को कोई शक्ति नहीं दी गई है। इसे पेसा अधिनियम 1996 के अनुसार लागू किया जाना चाहिए। कांग्रेस शासित राज्य ऐसे हैं जहां पेसा अधिनियम में ग्राम सभा को सबसे अधिक शक्ति दी गई है। सरकार को आदिवासियों के हितों पर विचार करना आवश्यक है। आदिवासी बहुत संघर्ष के साथ अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं। सरकार झूठे वादे कर रही है कि सिर्फ बड़े प्रोजेक्ट की बात कहकर जमीन अधिग्रहण कर आदिवासियों का भविष्य बहुत अच्छा होगा।
वन भूमि कानूनों से आदिवासियों को नुकसान हो रहा है। केंद्र सरकार आने वाले दिनों में वन भूमि पर नए कानून लाने की कोशिश कर रही है। आने वाले दिनों में लोकसभा के अंदर वन भूमि कानून पारित होने जा रहा है। इसको लेकर आदिवासियों में पहले से ही चिंता है।
अंबाजी धाम यात्रा अधिनियम ने 8 आदिवासी गांवों के विस्थापन का फैसला किया है। अंबाजी माता की तीर्थ यात्रा के नाम पर आदिवासियों के वहां विस्थापित होने की संभावना है। केवड़िया में जिस तरह से नोटिफिकेशन एरिया बनाया गया है। इसी तरह यदि अंबाजी धाम यात्रा अधिनियम के तहत अधिसूचना को समान कर दिया जाता है, तो आदिवासियों के साथ बहुत अन्याय होगा। जनजातियों पर विस्थापन का संकट आसन्न है।
कांग्रेस नेता तुषार चौधरी ने कहा कि सूरत में मिले क्षेत्र ने करोबारी में आदिवासियों को समायोजित करने की रणनीति पर फैसला किया है। जिस तरह की सरकार ने पांच साल शासन किया है और आदिवासियों के साथ अन्याय किया है। इससे एक बात तो साफ है कि आदिवासी भारतीय जनता पार्टी से अलग-थलग पड़ गए हैं और इसीलिए अब विधानसभा चुनाव से पहले उन्हें मनाने के लिए कई तरह के बयानबाजी कर रहे हैं। केवल राष्ट्रपति आदिवासि समाज से बनाकर आदिवासियों का दिल जीत लेना ही काफी नहीं है, बल्कि जमीनी स्तर पर आदिवासियों के उत्थान के लिए कड़ी मेहनत करना भी काफी है। आदिवासियों को बार-बार गुमराह करने वाली भारतीय जनता पार्टी को आदिवासी सबक सिखाएंगे।
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