सूरत : डाईंग हाऊसों से होने वाले प्रदूषण के निवारण हेतु की गई ये वाली रिसर्च बड़ी रोचक है, जानिये

सूरत : डाईंग हाऊसों से होने वाले प्रदूषण के निवारण हेतु की गई ये वाली रिसर्च बड़ी रोचक है, जानिये

दो छात्रों द्वारा किया गया रंगाई प्रक्रिया के दौरान प्रदूषण की मात्रा को कम करने के लिए बैक्टीरिया की विशेष प्रजातियों पर अनोखा शोध फ्रंटियर्स इन एनवायर्नमेंटल साइंस जर्नल में हुआ प्रकाशित

सूरत के कपड़ा उद्योग में रंगाई प्रक्रिया के दौरान प्रदूषण की मात्रा को कम करने के लिए बैक्टीरिया की विशेष प्रजातियों पर दिलचस्प शोध किया गया है। दो छात्रों द्वारा किया गया शोध प्रसिद्ध फ्रंटियर्स इन एनवायर्नमेंटल साइंस जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
आपको बता दें कि वीर नर्मद साउथ गुजरात यूनिवर्सिटी के बायोसाइंस डिपार्टमेंट में कार्यरत रिसर्च फेलो मनोज गोधानिया और पी।पी।यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ। श्वेता परिमिता बेरा द्वारा ‘Microbial Remediation of Textile Dye Acid Orange by this Novel Bacterial Consortium SPB 92’  विषय पर' पर शोध किया है।
अपने शोध कार्य के संबंध में दोनों छात्रों ने कहा कि कपड़ा उद्योग की रंगाई प्रक्रिया के दौरान उत्पन्न होने वाला जहरीला प्रवाह प्रदूषण का एक प्रमुख स्रोत है। रंगाई उद्योग में, रंगाई प्रक्रिया के बाद बड़ी मात्रा में प्रदूषित बहिःस्राव जल का उपचार करना पड़ता है। हालांकि, यह महंगी प्रक्रिया है, इसलिए इसे बिना किसी उपचार के सीधे सीवर और नदी के पानी में छोड़ दिया जाता है। इससे जल प्रदूषण गंभीर और चिंताजनक रूप से फैल गया है। इसका तीन प्रकार के जीवाणुओं द्वारा आसानी से उपचार किया जा सकता है।
शोध कार्य के अंत में एक दिलचस्प निष्कर्ष निकला। रिसर्च फेलो मनोज गोधानिया ने कहा कि शोध ने साबित कर दिया कि गंदे, दूषित पानी का उचित उपचार स्यूडोमोनास, बैसिलस और कोकुरिया जैसे बैक्टीरिया की एक से अधिक चयनित प्रजातियों की मदद से किया जा सकता है। तकनीकी रूप से कहें तो इन तीन जीवाणुओं द्वारा जैव निम्नीकरण से पता चलता है कि इन सूक्ष्मजीवों द्वारा कपड़ा अपशिष्ट जल के उपचार की काफी संभावनाएं हैं। शोध के अनुसार, एसिड ऑरेंज डायना के बायोडिग्रेडेशन के परिणामस्वरूप बैक्टीरियल कंसोर्टियम एसपीबी के ऊष्मायन के बाद 23 घंटों के भीतर लगभग 86 प्रतिशत रंग बदल गया। यानी पानी का ठीक से इलाज किया गया।
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