
सूरत के उद्योगों के लिये प्रति दिन 700 टन कोयले की सप्लाई ने इस इलाके के पर्यावरण की ऐसी-तैसी कर रखी है!
By Loktej
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स्थानीय लोग हैं आक्रोशित, बार-बार प्रशासनिक हलकों में पेशकश के बाद भी समस्या का कोई हल नहीं
आज हर कोई विकास के लिए हमेशा ही उत्साहित रहता है। आम आदमी हो या कोई व्यापारी हर कोई अपने विकास के लिए हर संभव प्रयास करता है। हालांकि विकास की इस दौड़ में कई बार हम अपने पर्यावरण का ख्याल रखना भूल जाते है। सूरत में भी कुछ ऐसा ही देखने मिल रहा है। सूरत में विभिन्न उद्योगों के लिए जरूरी कोयला विदेश से मंगवाया जाता है और उसके बाद विभिन्न औद्योगिक इकाइयों में भेजा जाता है। विदेशों से मंगवाया हुआ यह कोयला शहर के मगदल्ला कोर्ट पर आता है और इसके बाद इकाइयों में जाता है। इकाइयों में भेजे जा रहे इस कोयले के कारण शहर का यह पूरा इलाका कोयले की काली राख़ से घिरता जा रहा है। हर दिन 700 से अधिक ट्रकों के आने जाने के कारण सड़क की स्थिति भी बिगड़ गई है। स्थानीय लोगों ने भी इस बारे में काफी शिकायत की है, हालांकि इसके बाद कोई भी निर्णय नहीं लिया जा रहा है।
सूरत शहर में टेक्सटाइल इंडस्ट्री सहित अलग-अलग इंडस्ट्री में कोयला पहुंचाए जाने के कारण कोयले की उड़ती काली धूल से शहर की बिल्डिंगे भी काली होने लगी है। सूरत नगर निगम हवाई अड्डे से डुमस और उधना मगदल्ला सड़कों को सुशोभित करने और शहर के वैभव में चार चांद लगाने का प्रयास करता है। लेकिन मनपा की इन कोशिशों के बीच मगदल्ला बंदरगाह सूरत की खूबसूरती काली टिली की तरह साबित हो रही है।
मगदल्ला बंदरगाह के सूत्रों के अनुसार, हर साल दिन के दौरान मगदल्ला बंदरगाह पर 5 मिलियन टन कोयला उतार दिया जाता है। कोयले को विभिन्न उद्योगों तक पहुंचाने के लिए प्रतिदिन 700 से अधिक ट्रक बंदरगाह के गोदाम से गुजरते हैं। जिससे आसपास के क्षेत्र के लोगों को भी काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है. मगदल्ला बंदरगाह पर कोयले के उतरने से सूरत शहर में तापी नदी पर भी प्रदूषण का असर पड़ रहा है। तापी नदी और अरब सागर के मुहाने में भी प्रदूषण फैल रहा है।
इस बारे में पर्यावरणशास्त्रीयों ने कई बार आवेदन किए, हालांकि इसके बाद भी पोर्ट पर लगातार कोयला उतर रहा है। कोयले से भरी हुई ट्रकों पर ताड़पत्री भी नहीं होती और यदि होती है तो वह भी फटीफूटी होती है। इसके चलते सड़क पर से गुजरने वाली ऐसी ट्रकों में से पूरे रास्ते में कोयले की भूकी नीचे गिरती जाती है। जिसके चलते सड़क के किनारों पर काली चादर फैलती जा रही है।
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