सूरत में भी हैं कश्मीर के विस्थापित पंडित परिवार, जानें एक ऐसे ही परिवार की दास्तां

सूरत में भी हैं कश्मीर के विस्थापित पंडित परिवार, जानें एक ऐसे ही परिवार की दास्तां

बॉक्सऑफिस पर फिलहाल फिल्म द कश्मीर फाइल्स फिल्म काफी धूम मचा रही है। फिल्म के रिलीज होने के बाद से ही हर किसी के जहन में कश्मीरी पंडितों पर किए गए अत्याचार फिर से ताजा हो गए है। कश्मीरी मुस्लिमों द्वारा प्रताड़ित किए गए पंडितों ने कश्मीर से पलायन कर देश के अन्य हिस्सों में आसरा लिया था। इन सभी में कई परिवार सूरत में आकर भी बसे थे। सूरत के उधना, अड़ाजन, पांडेसरा तथा हजीरा के कई इलाकों में कुल मिलाकर अभी भी 15 कश्मीरी पंडितों के परिवार रह रहे है। ऐसे में आज हम आपको पांडेसरा में रहने वाले किंगजी रैना द्वारा कश्मीर में हुये अत्याचारों की दर्दभरी दास्तान सुनाने जा रहे है।
स्थानीय वर्तमान पत्र संदेश को दिये एक इंटरव्यू में किंगजी रैना ने उनके साथ हुये अत्याचारों का वर्णन किया था। उनके ऊपर हुये अत्याचारों का उनके द्वारा ही किया गया वर्णन आज हम आपको बताने जा रहे है। किंगजी रैना ने बताया कि उनका जन्म उनका जन्म सन 1971 में कश्मीर के अनंतनाग जिले के डाइलगाँव में हुआ था। उनके पिता सरकारी स्कूल में नौकरी करते थे। अप्रैल 1990 में उनके चचेरे भाई तेजकिशन रैना का मेडिकल स्टोर में से अपहरण हो गया था। रात तक घर ना पहुँचने पर परिवार ने तेजकिशन को ढूँढना शुरू किया। दुकान पर पहुँचने पर दुकान खुली मिली पर वहाँ तेजकिशन नहीं मिला। पड़ोसियों ने बताया कि उसका कुछ नकाबपोश आतंकवादियों द्वारा अपहरण कर लिया गया था। 
परिवार ने तुरंत ही आतंकवादियों के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई। हालांकि पुलिस द्वारा कोई कार्यवाही नहीं कि गई। दो दिन तक उस पर प्रताड़ित करने के बाद आतंकवादियों ने उसे गाँव के बाहर फेंक दिया। इसके चलते उसे अस्पताल में भर्ती किया गया। किंगजी का एक भाई सिलांग रैना बीएसएफ़ में था। आतंकवादियों द्वारा उसकी हत्या कर देने की धमकी दी जाती थी। उन्होंने सिलांग के नौकरी छोड़ देने के लिए भी उन्हें धमकाया था। इन सभी से रैना परिवार काफी डर गया था। इसके चलते रातोरात वह ट्रक में बैठकर कश्मीर से जम्मू भाग गए थे। जहां रैना परिवार दो से तीन साल तक राहत कैंप में रहे। इसके बाद वह दिल्ली तथा सूरत सहित शहरों में बस गए।
आगे बताते हुये किंगजी रैना कहते है कि उनके परिवार के जम्मू पलायन करने के बाद गाँववालों ने घर को आग लगा दी थी। इसके बाद वह आज तक दाईलगाम नहीं गए है। रिश्तेदारों को मिलने के लिए वह जम्मू में जाते है। उनकी खेती की जमीन पर स्थानीय लोगों ने कब्जा जमा लिया है। 
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