सूरत : कोविड के बाद वीविंग इंडस्ट्रीज में डाइड यार्न खपत बढ़ी, 5 साल में 50 फीसदी की बढ़ोतरी
By Loktej
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सूरत से बांग्लादेश को 125 टन यार्न प्रति माह का निर्यात
पूरे देश में सिल्क सिटी के नाम से मशहूर सूरत में विभिन्न प्रकार के यार्न के इस्तेमाल से कोविड के बाद से विविग इंडस्ट्रीज द्वारा डाइड यार्न की खपत बढ़ गई है। वर्तमान में पूरे उद्योग की खपत लगभग 15000 टन प्रति माह है। यह खपत पिछले पांच साल में 50 फीसदी बढ़ी है। साड्री के उत्पादन में ट्रेंड बदलने से धीरे-धीरे डाइड यार्न का इस्तेमाल बढ़ा है। पारंपरिक सादे लूम्स के अलावा जेक ार्ड और रेपियर में डाइड यार्न की खपत भी बढ़ गई है। रेडीमेड गारमेंट में उपयोग में लिए जाने वाले नीटिंग फेब्रिक और फनशिंग में इस यार्न का उपयोग सबसे ज्यादा हो रहा है।
पांच साल पहले उद्योग में डाइड यार्न की खपत लगभग 10,000 टन प्रति माह थी। वर्तमान में यह खपत बढक़र 15000 टन से अधिक हो गई है। कोविड के बाद से उपयोगकर्ता बढ़े हैं। डाइड यार्न उत्पादक ने कहा कि दैनिक खपत 300-350 टन थी, जो बढक़र लगभग 600 टन हो गई है। सूरत में डाइड यार्न के इस्तेमाल करने वालों की संख्या में इजाफा हुआ है। इसके अलावा डाइड यार्न को सूरत से भी देश के उत्तर और दक्षिण के विभिन्न विविग केंद्रों में भेजा जा रहा है। इचलकरंजी, कोयंबटूर, सेलम, बेलगाम, अन्नामपिल्लई, बनारस, मऊ, पानीपत और लुधियाना के विविग उद्योग डाइड यार्न का इस्तेमाल कर रही है। इसके अलावा सूरत से हर महीने 100 से 125 टन बांग्लादेश का निर्यात किया जा रहा है।
सचिन जीआईडीसी के वीवर्स सूरत में सबसे ज्यादा डाइड यार्न का इस्तेमाल कर रहे हैं
मयूर गोलवाला ने कहा कि सचिन जीआईडीसी के वीवर्स सबसे ज्यादा डाइड यार्न का इस्तेमाल कर रहे हैं। 80 हजार मशीनों में से 60 हजार मशीनों में इस यार्न का इस्तेमाल होता हैं। 14 किलो की गुणवत्ता के साथ प्रति माह लगभग 900 करोड़ मीटर डाइड फेब्रिक का उत्पादन किया जाता है। सचिन के अलावा होजीवाला, पिपोदरा और सूरत शहर में डाइड यार्न का इस्तेमाल किया जाता हैं।
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