सूरत : सरकारी कचहरियों में बाबू गलती करें तो उसमें सुधार के लिये पीछे पड़ जाएं!

सूरत : सरकारी कचहरियों में बाबू गलती करें तो उसमें सुधार के लिये पीछे पड़ जाएं!

वरिष्ठ महिला नागरिक के प्रमाण पत्र में हुई त्रुटि के लिये जानें कितनी मश्क्कत करनी पड़ी

वाकई सरकारी नौकरी करने वाले बड़े बेफिक्र होते हैं। नौकरी और हर महीने सैलेरी की गारंटी होने के कारण लाईफ बड़ी सैटल होती है। लाईफ सैटल हो इसमें किसी को कोई दिक्कत नहीं लेकिन सरकारी नौकरों में जिम्मेदारी का भाव, आम लोगों के प्रति सहानुभूति और सहयोग करने का भाव क्यों नहीं होता, यह समझ से परे हैं। वैसे आम लोगों को सरकारी कचहरियों में बाबुओं के दुर्व्यवहार या काम के प्रति लापरवाही के अनुभव होते रहते हैं। ऐसा ही वाकया सूरत के एक सिविक सेंटर में एक नागरिक के साथ हुआ। 
सूरत के वरिष्ठ नागरिक महावीर प्रसाद जैन ने अपनी धर्म पत्नी सुमित्रा जैन का वरिष्ठ नागरिक प्रमाण पत्र बनाने के लिये विगत दिनों शहर के न्यू कोर्ट परिसर के सामने स्थित सिविक सेंटर के संबंधित विभाग में आवेदन किया। चार दिनों बाद आवेदन के अनुरूप प्रमाण पत्र मिल गया। लेकिन उसमें लिपिक त्रुटि रह गई थी। बुजुर्ग महिला के नाम के आगे श्रीमती के स्थान पर श्री लिखा हुआ था। अब वरिष्ठ नागरिक प्रमाणपत्र जैसे दस्तावेज में ऐसी भूल स्वीकार्य तो हो नहीं सकती क्योंकि संभव है दस्तावेज के रूप में इसे कई जगहों पर इस्तेमाल करना पड़े और वहां ऐसी त्रुटि से दिक्कत भी हो सकती है। 
ऐसे में महावीरप्रसाद जैन ने सिविक सेंटर के उसी विभाग से संपर्क किया जहां से प्रमाण पत्र जारी हुआ था कि कहा कि श्रीमती की जगह श्री गलती से टाईल/प्रिंट हो गया है उसे सुधार लिया जाए। लेकिन सरकारी बाबू कहां एक बार में आम नागरिक की मदद को तैयार होते। बकौल महावीरप्रसाद, उन्हें उत्तर मिला कि स्त्री/पुरूष सभी को श्रीमान लिखने का नियम है! बात बनते न देख वे ऊपरी अधिकारी से मिले तो वहां से उत्तर मिला कि सोफ्टवेयर गांधीनगर से बना है और प्रमाणपत्र ऐसा ही मिलेगा। प्रार्थी द्वारा यह कहने पर कि यदि गांधीनगर से भूल चली आ रही है तो उसमें भी सुधार तो करवाना ही चाहिये। लेकिन कचहरी ने मामले को टाल दिया। 
सिविक सेंटर द्वारा जारी सुधारा हुआ प्रमाणपत्र
भुक्त भोगी क्या न करता। महावीरप्रसाद पूरा दिन विकास सदन में घूमे और पता चला कि सोफ्टवेर में श्रीमान/श्रीमती दोनों ही लिखने का ऑप्शन उपलब्ध होता है। वे फिर इस जानकारी के साथ ऊपरी अधिकारी के पास पहुंचे। काम करवाने पीछे पड़े महावीरप्रसाद की जिद्द के आगे अधिकारी झूकी और उन्होंने संबंधित क्लर्क को सूचना दी कि भूल सुधारी जाए। आखिरकार प्रार्थी को सुधारा हुआ प्रमाण पत्र दिया गया। 
यहां मुद्दा यह है कि आखिर कचहरी की ऐसी छोटी मानवीय भूलों के लिये भी नागरिक को अपना समय और पसीना क्यों बहाना पड़े? भूल मान लेने से कोई छोटा तो नहीं हो जाता। खैर, इस घटना से यही सबक मिलता है कि सरकारी कचहरी में यदि आपके साथ भी ऐसी कोई घटना हो जाए तो बाबुओं के पीछे पड़ जाईये और अपना काम पूरा करवाईये। 
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