गुजरात : आवारा मवेशियों पर नियंत्रण के कानून पर भाजपा में असमंजस, शहरी मतदाताओं को खुश रखें या मालधारी समाज को?

गुजरात : आवारा मवेशियों पर नियंत्रण के कानून पर भाजपा में असमंजस, शहरी मतदाताओं को खुश रखें या मालधारी समाज को?

सरकार इस कानून को वापस लेने के मूड में नहीं है, मात्र इस कानून में संशोधन पर विचार किया जा रहा है

सड़क पर आवारा घूम रहे मवेशी सरकार के गले की हड्डी बन चुके हैं। मवेशियों के कारण ट्राफिक जाम से लेकर सड़क दुर्घटनाएं जैसी समस्याएं पैदा हो रही है। इस पर सरकार और कोर्ट ने एक कड़े कानून की घोषणा कर दी है। हालांकि मालधारी समाज  द्वारा इस कानून का विरोध हो रहा है पर सरकार ने अपना रुख साफ कर दिया है कि किसी भी कीमत पर यह कानून वापस नहीं लिया जाएगा।
आपको बता दें 31 मार्च को विधानसभा में बहुमत के साथ लागू किए गए इस कानून को हाईकोर्ट ने स्वीकृति दे दी है तथा सरकार से इसके अमल तथा कड़ाई से पालन की घोषणा की है। वही इस कानून का विरोध होने पर भाजपा राज्य प्रमुख सी आर पाटिल ने इस कानून को लेकर विचार करने का आश्वासन दिया है। इसी कारण सरकार इस कानून को लेकर एक बार फिर से कोर्ट में है। हालांकि सूत्रों से पता चला है कि सरकार इस कानून को वापस लेने के मूड में नहीं है बल्कि मात्र इस कानून में संशोधन पर विचार किया जा रहा है लेकिन इस बात को लेकर भी दुविधा चल रही है।
इस परिस्थिति में सितंबर में इस नियम में संशोधन करके वापस इसे सदन में प्रस्तुत किया जाएगा। हालांकि अभी देखना है कि क्या सितंबर तक सरकार इस नियम को लागू कर इसका कड़ाई से पालन करते हैं या मालधारी समाज को खुश रखने के लिए इस कानून पर कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी। ऐसे में साफ है किस कानून को लेकर भाजपा में आपस में ही मतभेद देखा जा रहा है। एक तरफ जहां कुछ नेताओं का मानना है कि मवेशी एक बहुत बड़ी समस्या बन चुके हैं और इनके कारण आम आदमी से लेकर हर कोई तकलीफ उठा रहा है ऐसे में ये नियम सही है जबकि कुछ इस नियम को उचित नहीं मान रहे है।
बता दें कि आवारा पशुओं के मुद्दे पर मालधारी समुदाय में आक्रोश होने पर सरकार को पीछे हटना पड़ा है। सरकार और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष को आश्वस्त किया है कि यह कानून लागू नहीं होगा। इस संबंध में भाजपा की अनम्य नीति से जनता नाराज है। शहर में आवारा पशुओं की समस्या विकराल रूप ले चुकी है। अब सरकार के सामने ये बहुत बड़ी समस्या खड़ी है कि वो वह मालधारी समुदाय को खुश करें या शहरी मतदाताओं की।  इसे देखकर भाजपा को मालधरियों को मनाने में शहरी मतदाताओं का विश्वास खोना होगा।  दूसरी ओर, भाजपा मालधारी समुदाय का विरोध बर्दाश्त नहीं कर सकती।