सोमनाथ के पास आया है 1800 साल पुराना प्राचीन दशावतार मंदिर, मात्र वराह स्वरूप की मूर्ति ही बची

सोमनाथ के पास आया है 1800 साल पुराना प्राचीन दशावतार मंदिर, मात्र वराह स्वरूप की मूर्ति ही बची

सातवीं सदी में मंदिर के बनाए गए होने की व्यक्त की जा रही है संभावना

भारत भर में 9 सितंबर को दशावतार वराह भगवान की जयंती मनाई जाती है। ऐसे में आज हम आपको गुजरात में आए दशावतार मंदिर के बारे बताने जा रहे है। भव्य वास्तु कला और नकाशीकाम वाला यह मंदिर तकरीबन 1800 साल पुराना है और यहाँ हर साल ज्येष्ठ महीने की कृष्ण पक्ष की एकादशी को वराह एकादशी के नाम से पूजा जाता है। 
सोमनाथ से 12 किलोमीटर दूर आए कदवार का यह दशावतार मंदिर पूर्वाभिमुख मंदिर की चोटी पर आया है। मंदिर का गर्भगृह चोरस आकार है और इतने सालों के बाद मंदिर में मात्र एक वराह अवतार की मूर्तियाँ ही बची है। वराह की यह मूर्ति 3 फिट ऊंची और तकरीबन 1.5 फिट चौड़ी है। मूर्ति की देहाकृति मानव की है और उसे दो हाथ है, जबकि उनके बाएँ कंधे पर पृथ्वी माता बैठी है। 
मंदिर के परिसर में अन्य अवतार भी अंकित है। यह मंदिर गुप्त काल में बनाया गया होने का अननुमान है। इतिहासकर्ता के अनुसार, यह मंदिर सातवीं सदी में बनाया गया होगा। मंदिर में गर्भगृह के आसपास प्रदक्षिणा भी की जा सकती है। मंदिर में चार स्तंभ है। गर्भगृह में वराह की मूर्ति दायीं और आई है। मंदिर के बाहर वामन, परशुराम और बलराम के पुराने चित्र भी दिखाई दे रहे है। 
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जब ब्रहमाजी सृष्टि के सर्जन में व्यस्त थे तभी एक दैत्य ने अचानक ही पृथ्वी को पाताल लोक तक ले गया। पृथ्वी को जल में डूबी हुई देखकर ब्रहमाजी ने पृथ्वी को बाहर निकालने के लिए अपने नासिका छिद्र में से एक वराह को बाहर निकाला। वराह देखते ही देखते काफी बड़ा हो गया और चारों लोक में उसकी गर्जना सुनाई देने लगी। इस अवतार को वराह स्वरूप को भगवान विष्णु का तीसरा अवतार माना गया। वराह अवतार ने जल में डूबी पृथ्वी को अपने दाँतो के बीच रखकर उसे पानी के बाहर लाये और दैत्य हिरण्यकश्यप का संहार किया। 
कई लोगों का मानना है की इस मंदिर को मौर्य युग में बनाया गया होगा। मंदिर के अंदर के हिस्से में शिवलिंग, हनुमान और गणेशजी की मूर्तियाँ भी आई है। सोमनाथ महादेव मंदिर के टुरिस्ट फेरेलीटी सेंटर के एक विशाल संकुल में प्राचीन सोमनाथ मंदिर के शिल्प अवशेषों का संग्रहालय आया हुआ है। इसमें भगवान के दशों अवतार की भव्य मूर्ति सभी को प्रभावित करती है। यहाँ मूर्ति शिल्प के साथ लिखा गया है कि भगवान के दस अवतारों में से वराह का अवतार काफी विशेष है। इस अवतार का मुख्य हेतु पृथ्वी को बचाने का था।