कोरोना का प्रभाव सिर्फ कारोबारियों पर ही नहीं मंदिरों को मिलने वाले दान प्रवाह पर भी

कोरोना का प्रभाव सिर्फ कारोबारियों पर ही नहीं मंदिरों को मिलने वाले दान प्रवाह पर भी

कोरोना के कारण बंद मदिरों में प्रशासन ने एफडी तोड़वाकर दी कर्मचारियों को वेतन

राज्य में कोरोना की दूसरी लहर के आने के साथ ही राज्य के सभी मंदिरों के पट दर्शनार्थियों के लिए बंद कर दिए गए। ऐसे में संक्रमण में ढील के 58 दिन बाद सभी मंदिरों के कपाट आम जनता के लिए खुलते ही श्रद्धालुओं में उत्साह देखा गया। गुजरात में कोरोना संक्रमण और लॉकलॉक के बीच मंदिरों में होने वाले करोड़ों के दान प्रवाह रुक गया। कुछ मंदिरों में तो स्थिति ऐसी हो गई हैं कि मंदिर के कर्मचारियों को भुगतान करने के लिए सावधि जमा राशि को तोड़ना पड़ा।
गुजरात के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक अंबाजी मंदिर बंद होने से तीर्थयात्रियों पर निर्भर अंबाजी समेत सभी बाजार भी श्रद्धालुओं की अनुपस्थिति के कारण ठप हो गए। सामान्य दिनों में शक्तिधाम अंबाजी में कई महीनों तक तीर्थयात्रियों और पर्यटकों की चहल-पहल रहती थी लेकिन पिछले दो साल से कोरोना महामारी के चलते महीनों तक अंबाजी धाम मंदिर ठप पड़ा है. ऐसे में तीर्थयात्रियों के लिए बंद मंदिर में सामान्य रूप से मिलने वाले दान में काफी कमी आई थी।
कोरोना महामारी से पहले शामलाजी मंदिर को महीने में औसतन 15 से 20 लाख का दान मिलता था। ऐसे में कोरोना के कारण बंद मंदिर को दान नहीं प्राप्त हुआ। ऐसे में प्रति माह10 लाख रुपये से अधिक के खर्च के बीच इस साल केवल 4 लाख रुपये से 5 लाख रुपये के औसत राजस्व के कारण मंदिर प्रबंधन को मंदिर के कर्मचारियों को भुगतान करने के लिए एफ.डी. तोडवाना पड़ा।
वहीं डाकोर रणछोड़राय मंदिर के सूत्रों ने कहा कि मंदिर के खुले होने पर प्रतिदिन 8,000 से 10,000 आगंतुक आते थे। त्योहारों के दौरान लगभग 20 से 25 हजार आगंतुक दर्शन का लाभ उठाते हैं। कोरोना के कारण तीर्थयात्रियों और दर्शनार्थियों की संख्या कम हो गई और मंदिर 58 दिनों तक बंद रहा। मंदिर बंद होने के दौरान अनुमानित रूप से मिलने वाले 50,000 रुपये मासिक दान बंद हो गये।
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