
मध्य गुजरात की 'डगरी गाय' को मिली राष्ट्रीय पहचान, जानें खासियतें
By Loktej
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आनंद कृषि विश्वविद्यालय ने दिलाया मान्यता, छोटे खेत रखने वाले आदिवासी किसानों के लिए काफी किफ़ायती
मध्य गुजरात के आदिवासी क्षेत्र में पाई जाने वाली 'डगरी गाय' को अपने जाति के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त हुई है। गिर, कंकरेज और डांगी के बाद, डगरी राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान ब्यूरो (आईसीएआर) की गुजरात शाखा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) की राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त करने वाली गायों की चौथी स्वदेशी नस्ल बन गई है। आनंद कृषि विश्वविद्यालय (एएयू) के कुलपति डॉ के बी कथिरिया ने कहा, "2019 में हमने रिपोर्ट तैयार की और इसे एनबीएजीआर को सौंप दिया। इस नस्ल की अलग-अलग विशेषताएं हैं, जिसके कारण इसे राष्ट्रीय पहचान मिलनी चाहिए थी।"
आपको बता दें कि आनंद कृषि विश्वविद्यालय (एएयू) के कुलपति और अनुसंधान के निदेशक डॉ के बी कथिरिया ने पहली बार कुछ साल पहले दाहोद में क्षेत्र के दौरे के दौरान इस अनोखी नस्ल पर ध्यान दिया था। मान्यता देने के पहले एनबीएजीआर की विशेष समिति ने दो बार साइटों का दौरा किया था और फिर अपना विस्तृत विश्लेषण करने के बाद इस नस्ल को मान्यता दी। डॉ के बी कथिरिया ने कहा कि नस्ल को मान्यता देना गुजरात की पशुधन की जैव विविधता को दर्शाता है।
आपको बता दें कि राष्ट्रीय स्तर पर पहचाने जाने वाले पशुधन की कुल 175 नस्लों में से, गुजरात में गाय, भैंस, भेड़, बकरी, घोड़ा, ऊंट और गधे की नस्लों सहित 24 नस्लें हैं, जिन्हें स्वतंत्र नस्ल का दर्जा दिया गया है। यह गुजरात का बड़ा योगदान है। अन्य नस्लों की तुलना में यह गाय की नस्ल बहुत कम दूध देती है। प्रति दुग्ध चक्र में इसका दूध उत्पादन 300 से 400 लीटर तक सीमित है। इस नस्ल के बैल पहाड़ी इलाकों में खेती के लिए सबसे उपयुक्त हैं। साथ ही इसके छोटे आकार के कारण इसकी भूख की आवश्यकता कम है इसलिए यह छोटे खेत रखने वाले आदिवासियों के लिए अधिक किफायती है।
गुजरात सरकार के पशुपालन विभाग, आनंद कृषि विश्वविद्यालय और कच्छ स्थित NGO - सहजीवन द्वारा जानवरों के पोषण के साथ, उनके फेनोटाइपिक और आनुवांशिक लक्षण वर्णन का अध्ययन करके बिना मान्यता प्राप्त नस्लों का सर्वेक्षण किया जा रहा है, जिसके बाद राज्य सरकार के माध्यम से ऐसे नस्लों को मान्यता देने के लिए केंद्र सरकार के सामने प्रस्ताव प्रस्तुत किया जायेगा।