अरावली पहाड़ियों का संरक्षण: भारत की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखला को बचाना क्यों है जरूरी?
भारत की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखला, अरावली, आज एक गंभीर पारिस्थितिक संकट के मुहाने पर खड़ी है। उत्तर-पश्चिम भारत के पर्यावरण को संतुलित रखने में इस पर्वतमाला की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है, लेकिन बढ़ते मानवीय हस्तक्षेप और अवैध गतिविधियों ने इसके अस्तित्व पर खतरा पैदा कर दिया है। अरावली का संरक्षण अब केवल एक विकल्प नहीं, बल्कि एक अनिवार्य आवश्यकता बन गया है।
'विजन आईएएस' की एक रिपोर्ट के अनुसार, अरावली पहाड़ियों का महत्व इसके भौगोलिक विस्तार से कहीं अधिक है। यह पर्वत श्रृंखला थार मरुस्थल के विस्तार को रोकने के लिए एक प्राकृतिक अवरोध (barrier) के रूप में कार्य करती है। यदि अरावली का क्षरण इसी तरह जारी रहा, तो मरुस्थलीकरण की प्रक्रिया तेज हो सकती है, जिससे दिल्ली-एनसीआर सहित उत्तर भारत के विशाल मैदानी इलाकों में धूल भरी आंधियों और सूखे का खतरा बढ़ जाएगा।
रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि अरावली क्षेत्र जैव विविधता का एक समृद्ध केंद्र है और यह भूजल पुनर्भरण (groundwater recharge) के लिए एक महत्वपूर्ण 'कैचमेंट एरिया' के रूप में कार्य करता है। हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली जैसे राज्यों के लिए यह पर्वत श्रृंखला एक 'वाटर टावर' की तरह है, जो गिरते भूजल स्तर को थामने में मदद करती है। इसके अलावा, यह क्षेत्र कार्बन सोखने (carbon sink) का भी काम करता है, जो जलवायु परिवर्तन के दौर में वायु गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
हालांकि, अवैध खनन, अनियंत्रित शहरीकरण और वनों की कटाई ने अरावली के पारिस्थितिक तंत्र को भारी नुकसान पहुँचाया है। विशेषज्ञों का मानना है कि अरावली को बचाने के लिए सख्त कानूनी उपायों और सामुदायिक भागीदारी की आवश्यकता है। 'ग्रेट ग्रीन वॉल ऑफ इंडिया' जैसी पहल और सर्वोच्च न्यायालय के कड़े निर्देश इस दिशा में उम्मीद की किरण जगाते हैं। अरावली का संरक्षण न केवल वन्यजीवों के लिए, बल्कि करोड़ों लोगों के सुरक्षित और स्वस्थ भविष्य के लिए भी अनिवार्य है।
