एसपी की मंजूरी के बिना वकीलों को समन नहीं भेज सकते जांच अधिकारी : उच्चतम न्यायालय
नयी दिल्ली, 31 अक्टूबर (भाषा) वकील-मुवक्किल विशेषाधिकार की रक्षा के उद्देश्य से एक महत्वपूर्ण फैसले में उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को जांच एजेंसियों को मुवक्किलों को सलाह देने के वास्ते वकीलों को मनमाने ढंग से तलब करने पर रोक लगाने के लिए कई निर्देश जारी किए और कहा कि जांच अधिकारी आपराधिक जांच में उन्हें तब तक नहीं बुला सकते जब तक कि पुलिस अधीक्षक की मंजूरी न हो।
ईडी द्वारा वकीलों को भेजे गए समन को खारिज करते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा कि यह उन आरोपियों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है जिन्होंने वकीलों को अपनी पैरवी के लिए चुना था।
भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) बी आर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन तथा न्यायमूर्ति एन वी अंजारिया की पीठ ने ईडी द्वारा धन शोधन जांच के सिलसिले में वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार और प्रताप वेणुगोपाल को तलब किए जाने के बाद स्वत: संज्ञान मामले में यह फैसला सुनाया।
पीठ की ओर से फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति चंद्रन ने कहा कि उसने वकीलों की सुरक्षा के लिए ‘‘नियम में छूट को सुसंगत बनाने’’ का अनुरोध किया है और जांच एजेंसियों के अनुचित दबाव से कानूनी पेशे की रक्षा के लिए नए निर्देश जारी किए हैं।
फैसले के मुख्य अंश सुनाते हुए न्यायाधीश ने कहा कि पीठ ने जांच एजेंसियों द्वारा समन जारी करने से पहले मजिस्ट्रेट की निगरानी की आवश्यकता को खारिज कर दिया है।
न्यायमूर्ति चंद्रन ने कहा, ‘‘हमने साक्ष्य नियम को प्रक्रियात्मक नियम के साथ सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास किया है और फिर निर्देश जारी किए हैं।’’
भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए) की धारा 132 का हवाला देते हुए फैसले में कहा गया है कि यह मुवक्किल को दिया गया विशेषाधिकार है, जिसके तहत वकील को गोपनीय रूप से किए गए किसी भी व्यावसायिक संचार का खुलासा नहीं करना चाहिए।
पीठ ने कहा, ‘‘आपराधिक मामलों में जांच अधिकारी (आईओ), संज्ञेय अपराध में प्रारंभिक जांच करने वाले थाना प्रभारी अधिकारी, मामले का विवरण जानने के लिए अभियुक्त की पैरवी करने वाले वकील को समन जारी नहीं करेंगे, जब तक कि यह बीएसए की धारा 132 के तहत किसी भी अपवाद के अंतर्गत शामिल न हो।’’
उसने कहा, ‘‘जब किसी अपवाद के तहत अधिवक्ता को समन जारी किया जाता है, तो उसमें विशेष रूप से उन तथ्यों को निर्दिष्ट किया जाएगा, जिनके कारण अपवाद का सहारा लेना पड़ा और यह पुलिस अधीक्षक के पद के वरिष्ठ अधिकारी की सहमति से जारी किया जाएगा, जो समन जारी होने से पहले अपवाद के संबंध में लिखित रूप में अपनी संतुष्टि दर्ज करेगा।’’
इसमें कहा गया है कि अधिवक्ताओं को जारी किए गए समन भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के तहत अधिवक्ता या मुवक्किल के कहने पर न्यायिक समीक्षा के अधीन होंगे।
इसमें कहा गया है कि दस्तावेज प्रस्तुत करने के संबंध में संबंधित न्यायालय ही पक्षों की सुनवाई के बाद दस्तावेज प्रस्तुत करने के आदेश तथा उनकी स्वीकार्यता के संबंध में किसी भी आपत्ति पर निर्णय करेगा।
फैसले में कहा गया है कि यदि कोई डिजिटल उपकरण प्रस्तुत किया जाता है, तो न्यायालय उस पक्ष को नोटिस जारी करेगा, जिसके संबंध में डिजिटल उपकरण से विवरण प्राप्त करने की मांग की जा रही है तथा किसी भी आपत्ति पर उसे तथा वकील को सुना जाएगा।
इसमें कहा गया है कि यदि आपत्तियों को खारिज कर दिया जाता है, तो उपकरण को पक्षकार और अधिवक्ता की उपस्थिति में खोला जा सकता है, जिन्हें उनकी पसंद के विशेषज्ञों की सहायता प्रदान की जाएगी।
इसमें कहा गया है, ‘‘डिजिटल उपकरण की जांच करते समय अन्य मुवक्किलों की गोपनीयता से समझौता नहीं किया जाएगा।’’
हालांकि, पीठ ने स्पष्ट किया कि ‘‘इन-हाउस वकील’’, जो अदालतों में वकालत नहीं कर रहे हैं, उन्हें बीएसए की धारा 132 के तहत दी गई सुरक्षा नहीं मिलेगी।
धारा 132 वकीलों के अपने मुवक्किलों के साथ पेशेवर संचार से संबंधित है।
उच्चतम न्यायालय ने 12 अगस्त को खुद को देश के सभी नागरिकों का ‘‘संरक्षक’’ बताया था और मामलों में मुवक्किलों का प्रतिनिधित्व करते समय जांच एजेंसियों द्वारा वकीलों को तलब किए जाने के संबंध में स्वत: संज्ञान मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
ईडी द्वारा दातार और वेणुगोपाल को तलब किए जाने के बाद न्यायालय ने इस मामले में सुनवाई शुरू की थी। दातार और वेणुगोपाल को समन भेजे जाने की ‘सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन’ (एससीबीए) और ‘सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन’ (एससीएओआरए) ने तीखी आलोचना की थी और इसे कानूनी पेशे को कमजोर करने के लिए ‘‘परेशान करने वाली प्रवृत्ति’’ बताया था।
विवाद के बाद ईडी ने 20 जून को आंतरिक निर्देश जारी कर अपने अधिकारियों को निदेशक की पूर्व स्वीकृति और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 132 के अनुपालन के अलावा धन शोधन के मामलों में वकीलों को तलब करने से रोक दिया था।

 
  