मेडिसिन के क्षेत्र में तीच चिकित्सकों को नोबल पुरस्कार
स्टॉकहोम, 07 अक्टूबर (वेब वार्ता)। चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में इस वर्ष का नोबेल पुरस्कार अमेरिका की डॉ. मैरी ब्रन्को, डॉ. फ्रेड राम्सडेल और जापान के प्रसिद्ध इम्यूनोलॉजिस्ट डॉ. शिमोन सकागुची को प्रदान किया गया है। इन तीनों वैज्ञानिकों ने मानव प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यून सिस्टम) की कार्यप्रणाली को समझने में क्रांतिकारी योगदान दिया है। उनकी यह खोज “पेरिफेरल इम्यून टॉलरेंस” से जुड़ी है, जो बताती है कि मानव शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली अपनी ही स्वस्थ कोशिकाओं पर हमला क्यों नहीं करती।
इम्यून सिस्टम के ‘शांति रक्षकों’ की खोज
रायटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, जापान के शिमोन सकागुची ने 1990 के दशक में रेगुलेटरी टी-सेल्स की पहचान की थी। ये कोशिकाएं शरीर की प्रतिरक्षा क्रियाओं को नियंत्रित करती हैं ताकि इम्यून सिस्टम अपनी ही स्वस्थ कोशिकाओं पर हमला न करे। इन्हें इम्यून सिस्टम के “शांति रक्षक” कहा जाता है क्योंकि ये संतुलन बनाए रखने और ऑटोइम्यून रोगों को रोकने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
फॉक्सपी3 जीन की भूमिका उजागर की
अमेरिकी वैज्ञानिक मैरी ब्रन्को और फ्रेड राम्सडेल ने यह स्पष्ट किया कि टी-रेग्स कोशिकाओं का संचालन फॉक्सपी3 नामक जीन के माध्यम से होता है। यह जीन प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को संतुलित रखने के लिए आवश्यक है। अगर इस जीन में कोई गड़बड़ी होती है, तो शरीर का इम्यून सिस्टम अपनी ही कोशिकाओं को विदेशी समझकर उन पर हमला करने लगता है, जिससे गंभीर ऑटोइम्यून रोग उत्पन्न होते हैं। यह खोज चिकित्सा जगत के लिए मील का पत्थर सिद्ध हुई, क्योंकि इससे इन रोगों की पहचान, निदान और उपचार की दिशा में नई संभावनाएं खुलीं।
बीमारियों के उपचार में नई उम्मीद
इन वैज्ञानिकों की खोज ने चिकित्सा क्षेत्र को नई दिशा दी है। अब इस शोध के आधार पर कैंसर इम्यूनोथेरेपी, अंग प्रत्यारोपण (ट्रांसप्लांट) और ऑटोइम्यून बीमारियों के इलाज में अधिक सटीक और प्रभावी पद्धतियाँ विकसित की जा रही हैं। इस तकनीक से मरीजों को ऐसा उपचार मिल सकता है जिसमें साइड इफेक्ट्स कम हों और शरीर की स्वाभाविक रक्षा प्रणाली को नुकसान न पहुँचे।
मानवता के लिए नई उम्मीद
दुनियाभर में करोड़ों लोग ऐसे रोगों से पीड़ित हैं, जिनमें शरीर की अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली ही शरीर पर हमला करने लगती है। इन बीमारियों में रूमेटाइड आर्थराइटिस, ल्यूपस, मल्टीपल स्क्लेरोसिस जैसी स्थितियाँ शामिल हैं। अब इनकी चिकित्सा में यह शोध नई रोशनी लेकर आई है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कार्य न केवल वैज्ञानिक उत्कृष्टता का प्रतीक है, बल्कि आने वाले समय में लाखों मरीजों के लिए जीवनदायिनी उम्मीद भी बनेगा।