एआई (Artificial intelligence) के युग में भी शिक्षा का आधार – शिक्षक ही"
शिक्षक दिवस पर विशेष – शिक्षाविद् कमल किशोर दाधीच से बातचीत
नई दिल्ली, 5 सितंबर। शिक्षक दिवस के अवसर पर शिक्षाविद् कमल किशोर दाधीच से यह जानना दिलचस्प है कि क्या एआई और डिजिटल उपकरण शिक्षा में शिक्षक का स्थान ले सकते हैं। उनका कहना है—“तकनीक सहायक हो सकती है, लेकिन गुरु-शिष्य परंपरा का स्थान कोई मशीन नहीं ले सकती।”
प्रश्न: शिक्षा की परंपरा प्राचीन काल से आज तक कैसे बदली?
उत्तर: प्राचीन समय में आश्रम और गुरुकुल शिक्षा के केंद्र थे। विद्यार्थी गुरु के सान्निध्य में रहकर व्यावहारिक और पारंपरिक शिक्षा प्राप्त करते थे। धीरे-धीरे पाठशालाएँ और विद्यालय आए, लेकिन एक बात स्थिर रही—शिक्षक और शिष्य का सीधा संवाद। यही संपर्क शिक्षा का असली आधार है।
प्रश्न: क्या डिजिटल शिक्षा वही जुड़ाव दे सकती है जो शिक्षक देते हैं?
उत्तर: नहीं। जब तक आँखों से आँखों का संपर्क न हो, शिक्षा अधूरी रहती है। शिक्षक अपनी भावभंगिमाओं और व्यक्तित्व से विद्यार्थियों को प्रभावित करते हैं। इलेक्ट्रॉनिक उपकरण केवल सूचना दे सकते हैं, प्रेरणा और मार्गदर्शन नहीं।
प्रश्न: एआई और डिजिटल उपकरणों से क्या खतरे हो सकते हैं?
उत्तर: कृत्रिम बुद्धिमत्ता आज सहायक है, पर इसके अति प्रयोग से विद्यार्थियों की सोचने की क्षमता, लेखन की गति और रचनात्मकता प्रभावित हो सकती है। आने वाले समय में यह शिक्षा को सिर्फ सूचना तक सीमित कर सकता है।
प्रश्न: क्या भविष्य में विद्यालय और शिक्षक अप्रासंगिक हो सकते हैं?
उत्तर: तकनीक अस्थायी रूप से आकर्षक लग सकती है, लेकिन इसका स्थायित्व संदिग्ध है। शिक्षा का केंद्र कभी छोटे उपकरणों में पूरी तरह कैद नहीं हो सकता। जिस तरह गुरुकुल का स्थान विद्यालयों ने लिया, वैसे ही शिक्षक की भूमिका हमेशा बनी रहेगी।
प्रश्न: गुरु की प्रासंगिकता को आप कैसे परिभाषित करेंगे?
उत्तर: कबीरदास ने कहा है—“गुरु बिन ज्ञान कहाँ से पाऊँ।” यही सत्य है। शिक्षक ही वह शक्ति है जो अज्ञानता से निकालकर शिक्षा के उजाले की ओर ले जाता है। वह अनगढ़ बालक को तराशकर समाजोपयोगी नागरिक बनाता है।
निष्कर्ष
एआई और डिजिटल साधन शिक्षा में सहायक हैं, परंतु मार्गदर्शक की भूमिका सिर्फ शिक्षक निभा सकते हैं। हर युग में गुरु की प्रासंगिकता रही है, है और आगे भी रहेगी।