आयकर विभाग ने आकलन वर्ष 2025-26 के लिए आईटीआर फॉर्म 1, 4 किए अधिसूचित

आयकर विभाग ने आकलन वर्ष 2025-26 के लिए आईटीआर फॉर्म 1, 4 किए अधिसूचित

नयी दिल्ली, 30 अप्रैल (भाषा) आयकर विभाग ने आकलन वर्ष 2025-26 के लिए आईटीआर फॉर्म एक और चार को अधिसूचित किया है। इसे 50 लाख रुपये तक की कुल आय वाले व्यक्तियों और संस्थाओं द्वारा दाखिल किया जा सकता है।

अब एक वित्त वर्ष में 1.25 लाख रुपये तक का दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ (एलटीसीजी) पाने वाले व्यक्ति भी आईटीआर-1 दाखिल कर सकते हैं। पहले ऐसे लोगों को आईटीआर-2 दाखिल करना होता था।

अधिसूचना के अनुसार, 50 लाख रुपये तक की आय वाले व्यक्ति, एचयूएफ, कंपनियां और वित्त वर्ष 2024-25 (अप्रैल-मार्च) में व्यवसाय से तथा अन्य पेशेवर अर्जित आय के लिए आईटीआर दाखिल करना शुरू कर सकते हैं।

आईटीआर फॉर्म 1 (सहज) और आईटीआर फॉर्म 4 (सुगम) सरल फॉर्म हैं जो बड़ी संख्या में छोटे तथा मध्यम करदाताओं की जरूरतों के अनुरूप हैं।

‘सहज’ को ऐसे व्यक्ति द्वारा दाखिल किया जा सकता है, जिसकी वार्षिक आय 50 लाख रुपये तक हो और जो वेतन, एक मकान की संपत्ति, अन्य स्रोतों (ब्याज) तथा कृषि आय से 5,000 रुपये प्रति वर्ष तक की आय प्राप्त करता हो।

‘सुगम’ को ऐसे व्यक्तियों, हिंदू अविभाजित परिवारों (एचयूएफ) और कंपनियों(सीमित देयता भागीदारी (एलएलपी) के अलावा) द्वारा दाखिल किया जा सकता है, जिनकी कुल वार्षिक आय 50 लाख रुपये तक हो और व्यवसाय से व कोई पेशेवर आय हो।

आईटीआर-2 उन व्यक्तियों और एचयूएफ द्वारा दाखिल किया जाता है जिनकी आय, व्यवसाय या पेशेवर लाभ या प्राप्ति से नहीं होती है।

कर एवं परामर्श कंपनी एकेएम ग्लोबल के साझेदार (कर) संदीप सहगल ने कहा, ‘‘ केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने आकलन वर्ष 2025-26 के लिए आयकर रिटर्न (आईटीआर) फॉर्म में महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं, जिससे विशेष रूप से शेयर और म्यूचुअल फंड से दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ (एलटीसीजी) पाने वाले वेतनभोगी करदाताओं को लाभ होगा।’’

उन्होंने कहा, ‘‘ नवीनतम संशोधनों से व्यक्ति अब सरल आईटीआर-1 (सहज) या आईटीआर-4 (सुगम) फॉर्म का उपयोग कर सकते हैं...यदि धारा 112ए के तहत उनका एलटीसीजी 1.25 लाख रुपये से अधिक नहीं है और उनके पास आगे ले जाने या ‘सेट ऑफ’ करने के लिए कोई पूंजीगत घाटा नहीं है।’’

सहगल ने कहा, ‘‘ यह बदलाव, कर दाखिल करने की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करता है जिससे यह छोटे निवेशकों तथा वेतनभोगियों के लिए अधिक सुलभ तथा कम बोझिल हो जाता है। इससे समय पर और सटीक अनुपालन को बढ़ावा मिलता है।’’