मार्च से जून तक जायद मौसम में करे प्राकृतिक व जैविक खेती, सुधरेगी मिट्टी की सेहत

मानव स्वास्थ्य के साथ मिट्टी में बढ़ रहे प्रदूषण से मिलेगी निजात

मार्च से जून तक जायद मौसम में करे प्राकृतिक व जैविक खेती, सुधरेगी मिट्टी की सेहत

पूर्वी चंपारण,05अप्रैल (हि.स.)। देश में मुख्यतः तीन फसलों की बुआई होती है, जिसमे गर्मी के मौसम में मार्च से जून के बीच बुआई होने वाले फसल को जायद फसल कहा जाता है। यह रबी और खरीफ के बीच में किसानों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण सीजन है जिसमें किसान फसलों को लगाकर अतिरिक्त आमदनी प्राप्त कर सकते है। इस मौसम में ज्यादातर सब्जियां कद्दू, करेला, भिंडी, परवल, तरबूज, खरबूज, खीरा व ककड़ी आदि की खेती की जाती है। 

परसौनी कृषि विज्ञान केन्द्र के मृदा विशेषज्ञ डाॅ. आशीष राय ने बताया कि जायद फसलों की बुवाई अगर रसायनिक खाद के बजाय जैविक व प्राकृतिक अवयवो से तैयार खाद के प्रयोग से किया जाय तो किसान भाई इसके बेहतर परिणाम प्राप्त कर सकते है। उन्होने बताया कि जायद फसलों की विकास के लिए शुष्क मौसम के साथ मिट्टी में जैविक कार्बन मात्रा ज्यादा होना जरूरी है। अगर मिट्टी में पर्याप्त जैविक कार्बन होगे तो इन फसलो में फूल आने के लिए लंबी अवधि तक इंतजार नही करना पड़ेगा। ऐसे में किसान भाई जायद फसलो में रसायनिक खाद के अपेक्षा गाय के गोबर व जैविक खाद का प्रयोग करे। साथ ही जहरीले कीटनाशक दवाओ के बजाय प्राकृतिक अवयवो से तैयार कीटनाशी का प्रयोग करे।

जायद फसलो के बीजों के अंकुरण तथा बढ़वार के लिए 25 से 40 डिग्री तक तापमान उपयुक्त रहता है। जलोढ़ तथा दोमट मिट्टी आमतौर पर इन के लिए सबसे अच्छी मानी जाती हैं। इन फसलों में वर्षा या जल की आवश्यकता कम होती है, इन फसलो के लिए जैविक कार्बन यो कहे मिट्टी का उपजाऊ होना जरूरी है। साथ ही निराई गुड़ाई के माध्यम से खर पतवार का प्रबंधन जरूरी है। फसल के बढ़वार के हिसाब से 15-20 दिन में हल्की सिंचाई देने पर फसल की पैदावार बढ़िया होती है।

जायद फसलों का जीवनकाल कम अवधि का होता है, ऐसे में इन फसलो के साथ किसान भाई मिट्टी की गुणवत्ता तथा भूमि सुधार के लिए मूंग, उड़द जैसी दलहनी फसलों को भी लगा सकते है। डा.राय ने बताया कि परसौनी कृषि विज्ञान केंद्र ने गर्मी में उगाई जाने वाली सब्जियों में मुख्य रूप से खीरा को प्राकृतिक खेती के विभिन्न घटकों के द्वारा लगाया है। जिसका प्रशिक्षण भी केन्द्र से किसान भाई प्राप्त कर सकते है।

उन्होने कहा कि जलवायु अनुकूल प्राकृतिक व जैविक खेती के प्रशिक्षण का मुख्य उद्देश्य यह है, कि किसान भाई इससे प्रेरित होकर कम से कम अपने परिवार के लिए पंचगव्य और जीवामृत व घनामृत जैसे प्राकृतिक घटको के उपयोग से सब्जी का उत्पादन करे और उसका उपयोग करके अपना स्वास्थ्य और अपने परिवार के स्वास्थ्य के साथ ही मिट्टी में बढ रहे प्रदूषण को रोकते हुए मिट्टी की सेहत में सुधार कर सके।

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