भविष्य में पैदा होगा घोर जल संकट, करने होंगे संरक्षण के उपाय

विश्व जल दिवस पर विशेष

भविष्य में पैदा होगा घोर जल संकट, करने होंगे संरक्षण के उपाय

बलिया, 22 मार्च (हि. स.)। बलिया सहित पूर्वांचल के जिलों में भू-जल की स्थिति अभी बहुत खराब नहीं है, लेकिन उपभोग की यही स्थिति बनी रही तो बलिया सहित पूर्वांचल के जिलों में भविष्य में जल संकट की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

कुछ वर्ष पूर्व पूर्वांचल के आजमगढ़, बलिया, जौनपुर, गाजीपुर, चंदौली, वाराणसी, संत रविदास नगर, मिर्जापुर व सोनभद्र आदि जिलों में शुद्ध पुनर्भरण जल क्षमता एवं भू-गर्भ जल विकास स्तर ठीक था। लेकिन अब आजमगढ़, बलिया व गाजीपुर धूमिल सम्भावना क्षेत्र के अन्तर्गत आ गए हैं। जबकि जौनपुर, वाराणसी व संत रविदास नगर संभावना विहीन क्षेत्र के अन्तर्गत आ गए हैं। यानि कि इन तीनों जिलों में भू-जल दोहन को पूर्णतः प्रतिबंधित कर दिया जाना चाहिए। धूमिल संभावना क्षेत्र वाले जिलों में भी जल उपयोग को संतुलित किया जाना चाहिए। इन सभी जिलों में जल विदोहन करना प्रकृति के के खिलवाड़ है।

विश्व जल दिवस के अवसर पर पर्यावरणविद डा. गणेश पाठक ने कहा कि देश में लगभग 300 लाख हेक्टोमीटर भू-गर्भ जल उपलब्ध है। इसका 80 प्रतिशत तक हम उपयोग कर चुके हैं। यदि भू-जल विकास स्तर की दृष्टि से देखा जाय तो देश धूमिल संभावना क्षेत्र से गुजर रहा है, जो जल्दी ही संभावना विहिन क्षेत्र के अन्तर्गत आ जायेगा। ऐसे में निकट भविष्य में अपने देश में घोर जल संकट उत्पन्न हो सकता है। कहा कि यदि उत्तर प्रदेश में भू-गर्भ जल की स्थिति को देखें तो स्थिति बहुत अच्छी नहीं कही जायेगी। एक अध्ययन के अनुसार विगत वर्षों में उत्तर प्रदेश में भूजल का वार्षिक पुनर्भरण 68,757 मिलियन घन मीटर, शुद्ध दोहन 49483 मिलियन घन मीटर एवं भू-जल विकास 72.17 प्रतिशत रहा है। जबकि सुरक्षित सीमा 70 प्रतिशत है। वर्तमान समय में यह स्थिति और खराब हो गयी है। उन्होंने वाटर एड इण्डिया एवं अन्य स्रोतों का हवाला देते हुए कहा कि 2000 से 2010 के मध्य भारत में भू-जल दोहन 23 प्रतिशत बढ़ा है। विश्व में प्राप्त कुल भू-जल का 24 प्रतिशत अकेले भारत उपयोग करता है। इस तरह भू-जल उपयोग में भारत का विश्व में प्रथम स्थान है। फिर भी देश में एक अरब से अधिक लोग पानी की कमी वाले क्षेत्रों में रहते हैं। वर्तमान स्थिति को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि भविष्य में न केवल भारत में बल्कि विश्व में घोर जल संकट की स्थिति आने वाली है।

भू-जल में गिरावट के प्रमुख कारण

डा. गणेश पाठक बताते हैं कि वर्षा वितरण में असमानता, वर्षा में कमी, अधिकांश क्षेत्रों में सतही जल का आभाव, पेयजल आपूर्ति हेतु भू-जल का अधिक दोहन, सिंचाई हेतु भू-जल का अत्यधिक दोहन एवं उद्योगों में भू-जल का अत्यधिक उपभोग आदि भू-जल में गिरावट के प्रमुख कारण हैं।

भू-जल की कमी से उत्पन्न समस्याएं

डा. गणेश पाठक ने कहा कि भूजल की कमी से तमाम समस्याएं पैदा होंगी। इससे भूजल का स्तर निरन्तर नीचे की तरफ खिसकेगा। भू-जल में प्रदूषण की वृद्धि होगी। पेयजल आपूर्ति की समस्या में वृद्धि होगी। सिंचाई जल की कमी से कृषि पर भी प्रभाव पड़ेगा। भू-जल अत्यधिक लवणतायुक्त हो जाएगा। पेय जल आपूर्ति का भी घोर संकट उत्पन्न होगा। भू-जल की कमी एवं जल का प्रदूषित होना तथा आबादी वाले क्षेत्रों में जल आपूर्ति की कमी होना आदि भू-जल की कमी से उत्पन्न प्रमुख समस्याएं हैं।

भू-जल दोहन रोकने के उपाय

उन्होंने कहा कि भू-जल समस्या का एकमात्र उपाय भू-जल में हो रही कमी को रोकना है। प्रत्येक स्तर पर भू-जल के अनियंत्रित एवं अतिशय दोहन तथा शोषण एवं उपभोग पर रोक लगाना आवश्यक है। पुराने जल स्लैम को पुनर्जीवित करना होगा। जल ग्रहण क्षेत्रों में अधिक से अधिक वृक्षारोपण करना होगा। ताकि प्राकृतिक रूप से जल का पुनर्भरण होता रहे। जल बचत प्रक्रिया को अपनाना होगा। वर्षा जल का अधिक से अधिक संचयन करना होगा। जल आपूर्ति की सुरक्षित एवं संचयित प्रक्रिया अपनानी होगी।

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