शहरी जीवन पक्षियों के लिए नरक के सामना
स्वीडन (ईएमएस)। दुनिया में कई तरह के शोध होते रहे है लेकिन स्वीडन में पक्षियों पर शोध हुआ है। इस शोध के अनुसार युवा पक्षियों के लिए शहरी जीवन कठिन होता है लेकिन स्वीडन की एक प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी के शोध के मुताबिक अगर ऐसे पक्षी अपने पहले साल तक जीवित रह जाते हैं तो इन पर तनाव के प्रभावों की संभावना कम हो जाती है।जंगली जानवरों के लिए एक शहरी जीवन में खतरे और अवसर दोनों होते हैं। स्वीडन के विश्वविद्यालय में शोधकर्ताओं ने शहरी परिवेशों में इस विरोधाभासी स्थिति का सामना किया है। स्वीडन के शहर मलामो में युवा और प्रौढ़ स्तनपाई जीवों का अध्ययन कर शोधकर्ताओं ने उसी प्रजाति की ग्रामीण पक्षियों के साथ उनके अस्तित्व दर की तुलना की। इस अध्ययन में सामने आया कि शहरी वातावरण में बड़े स्तनपाई जीव एक विरोधाभास में रहते थे। एक तरफ जहां शहर में परिपक्व होना इन पक्षियों के लिए काफी कठिन है तो वहीं दूसरी ओर, यदि ऐसे पक्षी अपने पहले वर्ष तक जीवित रह जाते हैं,तो नकारात्मक प्रभाव कम हो जाते हैं और ऐसे लगता है कि पक्षी […]
स्वीडन (ईएमएस)। दुनिया में कई तरह के शोध होते रहे है लेकिन स्वीडन में पक्षियों पर शोध हुआ है। इस शोध के अनुसार युवा पक्षियों के लिए शहरी जीवन कठिन होता है लेकिन स्वीडन की एक प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी के शोध के मुताबिक अगर ऐसे पक्षी अपने पहले साल तक जीवित रह जाते हैं तो इन पर तनाव के प्रभावों की संभावना कम हो जाती है।जंगली जानवरों के लिए एक शहरी जीवन में खतरे और अवसर दोनों होते हैं। स्वीडन के विश्वविद्यालय में शोधकर्ताओं ने शहरी परिवेशों में इस विरोधाभासी स्थिति का सामना किया है। स्वीडन के शहर मलामो में युवा और प्रौढ़ स्तनपाई जीवों का अध्ययन कर शोधकर्ताओं ने उसी प्रजाति की ग्रामीण पक्षियों के साथ उनके अस्तित्व दर की तुलना की।
इस अध्ययन में सामने आया कि शहरी वातावरण में बड़े स्तनपाई जीव एक विरोधाभास में रहते थे। एक तरफ जहां शहर में परिपक्व होना इन पक्षियों के लिए काफी कठिन है तो वहीं दूसरी ओर, यदि ऐसे पक्षी अपने पहले वर्ष तक जीवित रह जाते हैं,तो नकारात्मक प्रभाव कम हो जाते हैं और ऐसे लगता है कि पक्षी साहसी हो जाते हैं। नए अध्ययन में एक तंत्र की भी पहचान की गई है जो शहरी और ग्रामीण इलाकों के पक्षियों के अस्तित्व में अंतर का अनुमान लगाती है। शोधकर्ताओं ने टेलोमरेस की जांच कर क्रोमोज़ोम की चरम सीमा पता लगाने का प्रयास किया है। टेलोमरेस जानवरों के साथ-साथ मानवों का शरीर में भी मौजूद होता है।