जब पंचायत के निर्णय का विरोध करने के लिए बेटियों ने उठाई अपने पिता की अर्थी

जब पंचायत के निर्णय का विरोध करने के लिए बेटियों ने उठाई अपने पिता की अर्थी

सामाजिक कार्यक्रमों में मौजूद नहीं रहने के कारण पंचायत ने किया था जुर्माना, नहीं भर सका तो सभी को अर्थी उठाने से मना किया

एक और जहां देश सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ रहा है वहीं एक और आज भी समाज जात-पात के कुचक्र में से बाहर नहीं आ पाया है। आज भी समाज कई तरह की परंपराओं और रीति-रिवाजो से घिरा हुआ है, जिसका सही मायनों में कोई भी अर्थ नहीं है। कुछ ऐसे ही रीति-रिवाजों और परंपराओं क शिकार बना था महाराष्ट्र के चंद्रपुर में रहने वाला एक परिवार, जिसे समाज के कुछ नियमों की वजह से फरमान सुनाया गया था कि व्यक्ति के मृत्यु के बाद समाज का कोई भी सदस्य उसे कंधा देने नहीं जाएगा। जब समाज का कोई भी सदस्य पिता की मौत के बाद उन्हें कंधा देने आगे नहीं आया, तो खुद उनकी बेटियों ने यह जिम्मा उठाया। 
विस्तृत जानकारी के अनुसार, महाराष्ट्र के चंद्रपुर के भंगाराम वोर्ड में रहने वाले 58 वर्षीय प्रकाश ओगले का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। प्रकाश ओगले के परिवार में सात लड़कियां और दो लड़के हैं। बड़े परिवार और खराब परिस्थिति के कारण प्रकाश ओगले समाज के किसी भी सामाजिक कार्यक्रम में शामिल नहीं हो पाते थे। समाज में किसी के भी कार्यक्रम में शामिल ना होने पर उनके समाज के पंचायत ने उन पर जुर्माना लगाया। पर प्रकाश अपनी खराब परिस्थिति के कारण वह जुर्माना नहीं भर सके। जब प्रकाश की मौत हुई तो सभी को उसकी सूचना दी गई। पर पंचायत के निर्णय के कारण कोई भी रिश्तेदार उनके घर नहीं आया। 
(Photo Credit : aajtak.in)

जब पिता की अर्थी को कंधा देने के लिए कोई आगे नहीं आया तो उनकी पुत्री जयश्री ने आगे आकर अपनी बहनों को साथ लेकर अपने पिता को कंधा देकर पंचायत को करारा जवाब दिया। मृतक की पुत्री जयश्री ने बताया की उनके घर की आर्थिक हालत अच्छी नहीं थी, इसलिए ही वह किसी भी कार्यक्रम में नहीं जाते थे। क्योंकि किसी भी कार्यक्रम में जाने के लिए पैसे लगते थे। जिसके चलते पंचायत ने उनको जुर्माना किया था। पंचायत ने कहा की यदि आपको समाज में रहना है तो आपको जुर्माना भरना पड़ेगा। जिस पर उनके पिता ने जुर्माना भरने से मना कर दिया। जिसके चलते पंचायत ने उन्हें समाज से बहिष्कृत कर दिया। 
आगे बात करते हुये जयश्री ने बताया कि पंचायत के इसी निर्णय को जवाब देते हुये उन्होंने पिता क अंतिम संस्कार करने क निर्णय किया। आज 21वीं सदी में भी देश के कई हिस्से ऐसे है, जो समाज और जात-पात के बंधन से बंधे हुये है। कई बार पंचायतों द्वारा कुछ ऐसे भी फरमान सुना दिये जाते है, जो काफी क्रूर और पिछड़ी विचारधारा को दर्शाते है।