महाराष्ट्र की यह कंपनी बना रही है घोड़े की एंटीबोडी में से नई दवा, मात्र 72 घंटो में दूर होगा कोरोना

महाराष्ट्र की यह कंपनी बना रही है घोड़े की एंटीबोडी में से नई दवा, मात्र 72 घंटो में दूर होगा कोरोना

घोड़ों से इंजेक्ट कर के बनाए गए एंटीबॉडी से बनाई जा रही है कोरोना के संक्रमण को रोकने की दवा

महाराष्ट्र की कोल्हापुर स्थित एक स4 साल पुरानी बायोसायंस कंपनी कोरोना संक्रमण के इलाज के लिए एक नई दवा की टेस्टिंग कर रही है। यदि अपने सभी परीक्षणों पर यह दवा सही उतरी तो कोरोना के हल्के और मध्यम लक्षणवाले मरीजों के इलाज के लिए बनाई जाने वाली पहली स्वदेशी दवा होगी, जिसका इस्तेमाल कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए किया जाएगा। आरंभिक टेस्टिंग में दवाओं ने अच्छे परिणाम दिये है। 
इस दवा के इस्तेमाल से मात्र 72 से 90 घंटे में ही कोरोना संक्रमित मरीजों का RT-PCR रिपोर्ट नेगेटिव आने लगा है। कंपनी के अधिकारियों ने इस बारे में जानकारी दी है। फिलहाल इस दवा के ह्यूमन ट्रायल का पहला फेस चल रहा है, जो की अगस्त के अंत तक पूर्ण होने की आशा है। आइसेरा बायोलोजिकल जो की मात्र 4 साल पुरानी कंपनी है और एंटी सीरम प्रोडक्ट का उत्पादन करती है, जैसे की साँप के काटने पर इस्तेमाल की जाने वाली दवा, कुत्तों के काटने पर इस्तेमाल की जाने वाली दवा और डीप्थीरिया के इलाज में जरूरी दवा। 
इस काम में हालांकि कंपनी को सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की और से भी कुछ सहायता मिलती रहती है। इस दौरान कंपनी ने एक एंटीबोडी कॉकटेल का निर्माण किया है, जिसके इस्तेमाल से कोरोना के हल्के और मध्यम लक्षण वाले मरीजों में संक्रमण को रोका जा सकता है और शरीर में रहे वायरस को भी खतम कर देता है। ICMR के पूर्व निर्देशक और प्रोफेसर एन के गांगुली ने कहा की अभी तक तो यह दवा काफी आशा जागृत कर रहे है, अपर अभी भी ह्यूमन ट्रायल का इंतजार करना चाहिए। यदि यह दवा कारगर साबित होती है तो काफी फायदा हो सकता है। 
आइसेरा बायोलोजिक्स के डायरेक्टर नंदकुमार कदम ने कहा की दवा के कॉकटेल में कई विशिष्ट कोविड 19 न्यूट्रीलाइजिंग एंटीबॉडी शामिल है। जिसमें कई रसायनों के हटाकर शुद्ध किया गया है। इन खास कॉकटेल में घोड़ों से इंजेक्ट कर के बनाए हुये एंटीबॉडी का इस्तेमाल किया गया है। कंपनी को उचित एंटीजन को चुनने में  सीरम इन्स्टीट्यूट ने भी काफी सहायता की है। इसके साथ ही केमिकल चुनने में भी कंपनी ने काफी सहयोग किया था, जिसकी सहायता से यजमान शरीर में एंटीबोडी विकसित होते है। नंदकुमार ने कहा कि एंटीबोडी विकसित करने के लिए घोड़े का इस्तेमाल किया गया था, क्योन्न्कि बड़ा जानवर होने के नाते इसमें से काफी मात्रा में एंटीबोडी पैदा हो सकते थे।