इस बुजुर्ग महिला ने मात्र घरेलू इलाज से कोरोना को हराया, उम्र 100 से भी अधिक

इस बुजुर्ग महिला ने मात्र घरेलू इलाज से कोरोना को हराया, उम्र 100 से भी अधिक

हर दिन फलों के ज्यूस के साथ लेती थी एक प्लेट बरफ के टुकड़े, स्वातंत्र्य की लड़ाई में भी लिया था हिस्सा

कोरोना के कारण हर किसी में एक अजीब तरह का डर फ़ेल गया है। हर किसी को बस एक ही चिंता सता रही है की यदि वह कोरोना संक्रमित हो जाएगे तो क्या होगा। कई ऐसे में भी मामले सामने आए है, जहां कई लोग तो मात्र कोरोना के डर के कारण ही मृत्यु को प्राप्त हुये है। ऐसे में अहमदाबाद के नारणपूरा में रहने वाली और स्वातंत्र्य संग्राम में हिस्सा लेने वाली कमला बेन भावसार उन सभी लोगों के लिए एक प्रेरणास्त्रोत है। 
साल 1918 में खंबात में पैदा हुई कमलाबेन को अप्रैल के अंत में कोरोना हुआ था। डॉक्टरों की सलाह और कोरोना की गाइडलाइन के अनुसार, उन्हें इंजेक्शन भी दिये गए थे। हालांकि उनकी उम्र ज्यादा होने के कारण सभी ने उनसे खाने का आग्रह किया था, पर इसके बावजूद भी उन्होंने बिलकुल भी खाना नहीं खाया। हालांकि इन सब के विपरीत उन्होंने परिवार से बरफ के टुकड़ों का सेवन करने की मांग की थी। परिवार के काफी मना करने के बावजूद उन्होंने हर दिन बरफ के टुकड़ों के साथ फलों का ज्यूस पीना चालू रखा। हर दिन एक प्लेट बरफ के टुकड़े चूसना उनका नित्यक्रम बन गया था। 
अपनी माता के बारे में बात करते हुये उनके पुत्र और बहू ने बताया कि जब उनकी माँ कोरोना संक्रमित हुई तो उन सबको चिंता होने लगी। क्योंकि एक तो उनकी उम्र भी काफी ज्यादा थी। उन सबको यह चिंता सताये जा रही थी, कोरोना के कारण उनकी माँ बचेगी या नहीं। पर उन सबकी चिंताओं के बीच फिलहाल वह कोरोनामुक्त है और काफी स्वस्थ भी है।
कमलाबेन खंबात, बोरसद और अहमदाबाद के स्वातंत्र्य के लिए होने वाले कार्यक्रमों में भाग भी लिया था। स्वतंत्रता के कार्यक्रमों में भाग लेने के चलते उन्होंने अपनी शिक्षिका की नौकरी भी छोड़ दी थी। हालांकि बाद में उन्हें फिर से उसी स्कूल में पढ़ाने का आमंत्रण भी मिला था, जिस स्कूल को उन्होंने छोड़ा था। अपने ठीक होने के बारे में बताते हुए कमलाबेन बताती है कि कोरोना से मुक्ति होने का सबसे बड़ा कारण उनका सकारात्मक मनोबल है। उन्होंने कहा कि उन्होंने अपने पूरे जीवनकाल में कभी भी कोई नकारात्मक चीज नहीं सोची। वह तो अभी 151 साल तक जीना चाहती है।