दोस्ती का अनोखा उदाहरण हैं ये स्कूली बच्चे, अपने दिव्यांग दोस्त की लगातार करते हैं मदद

दोस्ती का अनोखा उदाहरण हैं ये स्कूली बच्चे, अपने दिव्यांग दोस्त की लगातार करते हैं मदद

व्हीलचेयर के पैसे नहीं है इसलिए घर से स्कूल और स्कूल से घर, अपने कंधे पर उठकर आते-जाते हैं ये दोस्त

आपने दोस्ती के कई उदाहरण देखे और सुने होंगे। आपने बहुत से दोस्तों को एक-दूसरे के लिए अपना सब कुछ निछावर करने वाले दोस्तों के बारे में सुना होगा। स्कूल के दिनों में हुई दोस्ती को सबसे अच्छा और मजबूत माना जाता हैं। दोस्ती का ऐसा ही एक उदाहरण बेंगलुरु में सामने आया हैं जिसमें एक दोस्त अपने एक अपंग दोस्त को अपनी पीठ पर लादकर स्कूल ले जाता है। स्कूल की सीढ़ियाँ चढ़ने हो या स्कूल से घर वापस आना सारा काम उसके खास दोस्त करते हैं।
जानकारी के अनुसार 16 साल की लक्ष्मीश नाइक अपने जन्म के ठीक एक साल बाद पोलियो का शिकार बन गया। बहुत गरीब परिवार वाले लक्ष्मीश नाइक के परिवार के पास व्हीलचेयर के पैसे नहीं थे। कई प्रयासों के बावजूद जब वह नहीं चल पाया तो मजबूरन इस तरह से जीवन जाने को मजबूर हो गया। ऐसे में उसके खास दोस्त उसका सबसे बड़ा सहारा बने। जिसने उसे एक सामान्य बच्चे की तरह जीने और अपनी विकलांगता का अनुभव न करने के लिए प्रोत्साहित किया। उसके साथ उसके दोस्तों का एक पूरा समूह रहता था।
(Photo : realgujarat.in)बेंगलुरु के  ईस्ट-वेस्ट पब्लिक स्कूल के छात्रों का एक पूरा समूह लगभग दस वर्षों से लक्ष्मीश को घर से स्कूल और स्कूल से घर लेकर आ जा रहा है। साथ ही छुट्टियों में सब उसके साथ खेलते हैं और काम में उसकी मदद करते हैं। उनके शिक्षिका ग्रेसी सितारा ने इन बच्चों की लगन और दोस्ती की पूरी कहानी सोशल मीडिया पर साझा की है। ग्रेसी को अपने छात्रों पर गर्व है।
इस बारे में शिक्षिका ग्रेसी सितारा कहती हैं "मैंने पिछले छह वर्षों से उनकी दोस्ती देखी है और मुझे खुशी है कि अन्य लोग इसे पढ़ने के बाद प्रेरित होंगे।" शिक्षक का कहना है कि बच्चों को पढ़ाने में, अंक लाए जाते हैं, लेकिन मानवता और मदद की भावना हर किसी में मौजूद नहीं है।
दिव्यांग लक्ष्मीश भी दोस्तों की तारीफ करते नहीं थकता। वो कहता हैं “मैं विश्वास नहीं कर सकता कि ये लोग नर्सरी से मेरी मदद कर रहे हैं। उनकी मदद से ही मैं इस मुकाम तक पहुंच सका हूं। मैंने हमेशा माना है कि चाहे कुछ भी हो जाए, मेरे दोस्त मेरी मदद करने के लिए तैयार रहेंगे। चाहे वह स्कूल का कार्यक्रम हो या दिन की नौकरी, मेरे दोस्त हमेशा मेरे लिए खड़े होते हैं।” लक्ष्मीश चाहता है कि उसके दोस्तों के नाम सुनहरे अक्षरों में लिखे जाएं। आज की स्वार्थी दुनिया में, ऐसे दोस्तों को ढूंढना मुश्किल है।
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