गुजरात में भारतीय जनता पार्टी की प्रचंड जीत के ये हैं कारण

गुजरात में भारतीय जनता पार्टी की प्रचंड जीत के ये हैं कारण

गुजरात विधानसभा चुनाव की गुरुवार को जारी मतगणना के बीच रूझान और परिणाम आने लगे हैं। स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ रहा है कि प्रदेश में भाजपा प्रचंड जीत की ओर बढ़ रही है। प्रचंड जीत का मतलब है प्रदेश की राजनीति के इतिहास की सबसे बड़ी जीत। भूतकाल में पीएम नरेन्द्र मोदी ने 127 सीटें साल 1992 में हासिल की थी, उससे भी अधिक सीटें इस बार मिलने जा रही हैं। ‌अभी जिस प्रकार के रूझान चल रहे हैं, संभव है कि प्रदेश में सर्वाधिक 149 सीटें जीतने का तत्कालीन कांग्रेसी मुख्यमंत्री माधवसिंह सोलंकी का रिकॉर्ड इस बार टूट जाए। 


गुजरात में भाजपा की इस प्रचंड जीत के नायक हर हाल में पीएम नरेन्द्र मोदी ही हैं। कहा जा सकता है कि इस बार भी प्रदेश में पीएम मोदी का जादू चला है। प्रदेश भर में उन्होंने जिस प्रकार रैलियों और रोड़ शो की ‘कारपेट बॉमिंग’ की, उससे विरोधियों और खास कर इस बार काफी जोर-आजमाइश कर रही आम आदमी पार्टी की एक न चली। पीएम मोदी ने दक्षिण गुजरात के आदिवासी अंचल सहित सूरत शहर और अहमदाबाद में विशाल रोड़ शो किये। उनकी सभाओं में जनमेदनी उमड़ रही थी। प्रदेश की जनता के समक्ष चुनाव पीएम मोदी की भाजपा और अन्य दलों के उम्मीदवारों में करना था। ऐसे में जनता के सामने विकल्प शीशे की तरह  साफ था। प्रदेश की सभी 182 सीटों में लोगों ने सिर्फ और सिर्फ पीएम मोदी का चेहरा देखकर वोट किया। 


इसके अलावा इस बार प्रदेश में भाजपा ने एक और बड़ा दांव खेला था। कई सीटों पर पार्टी ने नो-रिपिट थियरी अपनाई। कई दिग्गजों के पत्ते काटे और नये चेहरों को मैदान में उतारा। 


इस बार प्रदेश में त्रिकोणीय मुकाबला रहा। आम आदमी पार्टी की एंट्री के बाद कुछ हलकों में चर्चा थी कि भाजपा समेत कांग्रेस को नुकसान होगा। लेकिन नतीजे साफ बता रहे हैं कि आप ने कांग्रेस पार्टी को सर्वाधिक नुकसान पहुंचाया। आप ने न सिर्फ कांग्रेस को नुकसार पहुंचाया लेकिन इतना बड़ा झटका दिया है कि कांग्रेस पार्टी प्रदेश में विरोधी दल बनने के लिये आवश्यक सीटों का आंकड़ा भी जुटाती नजर नहीं आ रही है। आम आदमी पार्टी ने तो प्रदेश में कुछ सीटों पर विजयी प्राप्त कर अपनी उपस्थिति दर्ज करवा ली है और संभव है कि प्रदेश में उसे जीतने मत मिले हैं, उससे उसकी राष्ट्रीय पार्टी बनने की आवश्यकता की भरपाई भी हो जायेगी। लेकिन दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी का तो सूपड़ा ही साफ होता दिख रहा है।


भारतीय जनता पार्टी ने कुछ कुटनीतिक चालें चली जिनका उन्हें लाभ होता दिखा। अल्पेश ठाकोर और हार्दिक पटेल इस बार भाजपा खेमे से चुनाव लड़े। इससे ठाकोर और पाटीदार वोट बैंक के भाजपा के प्रति रूझान कायम रह सका। वहीं इस बार भाजपा ने कई प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों और नेताओं को चुनाव प्रचार के लिये मैदान में उतार दिया था। हर विधानसभा क्षेत्र में डोर-टू-डोर प्रचार हो रहा था। इसी का नतीजा है कि देश के विभिन्न प्रांतों से आकर प्रदेश में बसे लोगों को भी भाजपा अपने खेमे में कायम रख पाई।


केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी इस बार खूब मेनहत की। एक प्रकार से कहा जा सकता है कि चुनाव प्रचार के समय वे लगातार कई दिनों में प्रदेश में रहे और सभाओं-रोड शो के माध्यम से जनसंपर्क करते रहे और परदे के पीछे नेताओं-कार्यकर्ताओं के साथ चुनावी रणनीति पर काम करते रहे। कुछ क्षेत्रों में उभरे बगावती सूरों को भी समय रहते नाप लिया गया। भाजपा के जमीन स्तर के कार्यकर्ताओं ने भी बूथ स्तर पर जनसंपर्क करके लोगों के साथ तारतम्य बैठाये रखा।